पेड़ का दुर्भाग्य ! दूसरे दिन होश आने पर स्क्विड को अपनी गलती का एहसास तो हुआ पर उसने पेड़ की जंजीरें खोलने नहीं दी। वह इससे लोगों को एक संदेश देना चाहता था कि अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जाने पर किसी का भी ऐसा ही हश्र होगा। उसके बाद देश का बंटवारा हो गया ! पाकिस्तान भी आजाद हो गया पर पेड़ के नसीब में आजादी नहीं लिखी थी ! वहाँ के लोगों ने उसे यथावत रहने दिया ! उनके अनुसार यह पेड़ अंग्रेजों के जुल्म का एक प्रमाण है............!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की आग को चाहे जैसे भी बुझा-दबा दिया गया हो पर उसकी तपन को अंग्रेज ताउम्र महसूस करते रहे ! भारतीय जांबाजों का हौसला, उनका रणकौतुक, देश के लिए कुछ भी कर गुजरने, किसी भी हद तक चले जाने का माद्दा, उनकी दिलेरी, उनकी निर्भीकता ने अंग्रेजों की नींद हराम कर उनके मन में एक डर सा स्थापित कर दिया था ! वे सदा किसी अनहोनी की वजह से आशंकित व भयभीत से रहने लगे थे ! इसी डर के चलते उनकी निर्दयता, नृशंसता, दमन, जुल्म ओ सितम दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहे थे ! उनके अत्याचारों की बातें सुनकर आज भी रूह कांप जाती है। उनकी खब्त या झक्क का कोई पारावार नहीं था ! उसी सनक का एक उदाहरण अपनी दुर्दशा की गाथा का बखान करता, एक पेड़ आज भी जंजीरों में कैद खड़ा है ! बात बहुत ही अजीब है, पर सच है !
घटना 1898 की है ! अभी देश का विभाजन नहीं हुआ था ! गर्मियां विदाई लेने लगीं थीं, बरसात दस्तक दे रही थी ! ऐसी ही एक उमस भरी शाम के धुंधलके में अफगानिस्तान की सीमा से लगे सूबा ए सरहद, खैबर पख्तूनख्वाह (अब पाकिस्तान में) की लंडी कोटल नामक जगह के आर्मी कैंटोनमेंट में जेम्स स्क्विड नाम का एक अफसर नशे में धुत हवाखोरी कर रहा था ! तभी जोर की हवा चली, जिससे वहां स्थित एक विशाल बरगद का पेड़ झूमने लगा ! पेड़ को इस तरह डोलते देख, नशे में चूर स्क्विड को लगा कि वह उस पर आक्रमण करने के लिए बढ़ रहा है ! डर से भयभीत हो उसने चिल्ला कर अपने सार्जेंट को आदेश दिया कि पेड़ को तुरंत अरेस्ट कर लिया जाए। इसके बाद वहां तैनात सिपाहियों ने पेड़ को जंजीरों में जकड़ दिया।
पेड़ का दुर्भाग्य ! दूसरे दिन होश आने पर स्क्विड को अपनी गलती का एहसास तो हुआ पर उसने पेड़ की जंजीरें खोलने नहीं दी। वह इससे लोगों को एक संदेश देना चाहता था कि अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जाने पर किसी का भी ऐसा ही हश्र होगा। उसके बाद देश का बंटवारा हो गया ! पाकिस्तान भी आजाद हो गया पर पेड़ के नसीब में आजादी नहीं लिखी थी ! वहाँ के लोगों ने उसे यथावत रहने दिया ! उनके अनुसार यह पेड़ अंग्रेजों के जुल्म का एक प्रमाण है। इससे लोगों को और आने वाली नस्लों को भी इस बात का अंदाजा होता रहे कि किस तरह अंग्रेज हम लोगों पर जुल्म ढाया करते थे।
पार्क में इस पेड़ को जंजीरों में बंधे करीब सवा सौ साल बीत चुके हैं ! अब तो इसे दर्शनीय स्थल बना दिया गया है ! लोग दूर दूर से इसे देखने आते हैं ! इसके साथ ही उन्होंने पेड़ पर एक तख्ती भी लटका दी जिस I AM UNDER ARREST के साथ ही पूरा किस्सा भी लिखा हुआ है। अंग्रेज चले गए, लेकिन ये पेड़ आज भी वैसे ही अविचल खड़ा है, अंग्रेजी हुकूमत के काले इतिहास और गुलामी के दिनों की डरावनी यादों और आम इंसान की मजबूरियों को याद दिलाता !
@सभी चित्र अंतरजाल के सौजन्य से
10 टिप्पणियां:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२०-०५-२०२२ ) को
'कुछ अनकहा सा'(चर्चा अंक-४४३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी
मान देने हेतु हार्दिक आभार🙏
अंग्रेज़ी हुकूमत में पेड़ को गिरफ़्तार किया गया था, आज भी हालात कुछ ख़ास बदले नहीं हैं.
सज़ा तो आमतौर पर बेक़सूर को ही मिलती है.
वाह!गगन जी ,बहुत खूब ! आपकी इस जानकारी के लिए धन्यवाद ।मैं तो इस बात से अभी तक अनभिज्ञ थी । धन्यवाद ।
बहुत ही बढ़िया जानकारी साझा की सर आपने पढ़कर मन द्रवित हो गया। हम क्यों नहीं बदलना चाहते, क्यों देखे वो दिन आज पेड़ को आजाद कर देना चाहिए।दिलों में खोफ़ रखना कहीं आज के नेताओ की चाह तो नहीं।
गज़ब लिखा आपने पढ़वाने हेतु हार्दिक आभार।
सादर
गोपेश जी
शुभकामनाएं 🙏🏻
शुभा जी
हार्दिक आभार🙏
अनीता जी
उसे शायद अंग्रेजो के अत्याचार और जुल्मों का प्रतीक बना कर रखा गया है जिससे आने वाली पीढ़ियों को उस काले इतिहास की एक झलक मिलती रहे
इस अनजानी सी जानकारी को सामने लाने के लिए बहुत-बहुत आभार
हार्दिक आभार आपका, कदम जी
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