रविवार, 22 मई 2022

रुस्तम ए हिंद गामा, कुश्ती का पर्याय, जीत की मिसाल

ऐसे ही एक दिन जब गामा अखाड़े पहुंचे तो वहां सिर्फ एक ही आदमी को कसरत करते पाया। उस व्यक्ति ने गामा को देखते ही कहा कि आओ गामा भाई, आज कुछ जम कर कुश्ती की जाए। गामा मान गए ! काफी देर की कुश्ती के बाद ना हीं वह व्यक्ति गामा को पछाड़ सका ना हीं गामा उसे। थोड़ी देर बाद उस आदमी ने गामा की पीठ पर जोर से अपना हाथ मार कर कहा "गामा, मैं तुझसे बहुत खुश हूं। जा आज से तुझे दुनिया में कोई नहीं हरा पाएगा। तेरी इस पीठ को कोई भी कभी भी किसी भी अखाड़े की जमीन को नहीं छुआ पाएगा।" ऐसा कह कर वह आदमी गायब हो गया............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

आज एक ऐसे भारतीय पहलवान का जन्म दिन है जो अपने जीवन काल में कभी भी कोई कुश्ती का मुकाबला नहीं हारा ! विश्व विजेता गामा एक ऐसा नाम, जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है, जो जीते जी किंवदंती बन गया था। कुश्ती की दुनिया में गामा पहलवान का कद कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जन्मदिन के मौके पर गूगल ने भी डूडल बनाकर उन्हें सम्मान दिया है। एक दौर था, जब किसी भी शख्स की ताकत को बताने के लिए रोज पांच हजार बैठक और तीन हजार दंड लगाने वाले गामा के नाम का इस्तेमाल होता था।  घर-घर में यह नाम गूंजा करता था।

 


अमृतसर के एक गांव झब्बोवाल में 22 मई 1878 में पैदा हुए गामा का असली नाम गुलाम मोहम्मद बक्श बट्ट था। उनके वालिद भी कुश्ती के खिलाड़ी थे। इसलिए उनकी तालीम घर पर ही हुई। दस साल की उम्र में पहली बार कुश्ती लड़ी थी। परन्तु ख्याति तब मिली जब 1890 में जोधपुर के राजदरबार में आयोजित दंगल में उन्होंने वहाँ आए सारे के सारे पहलवानों को मात दे दी ! जोधपुर के महाराजा भी इस बालक की चपलता और कुशलता देख दंग रह गए ! जो आगे चल कर रुस्तम ए हिंद, रुस्तम ए जमां और द ग्रेट गामा कहलाया !  
उन्नीस साल के होते-होते उन्होंने देश के सभी पहलवानों को हरा दिया था ! 1910 से शुरू हुए विदेश भ्रमण पर उनके सामने सारे विदेशी दिग्गज चित्त हो गए ! एक से एक बड़े नाम, विश्वविजेता, दुनिया के कुश्तीगीर गामा के आगे बौने सिद्ध होते चले गए ! दुनिया भर के पहलवानों को चित्त कर जब स्वदेश लौटे तो उन्हें रुस्तम ए हिंद की उपाधि से नवाजा गया। अपने तक़रीबन 52 साल की कुश्ती की जीवन यात्रा में वह एक बार भी किसी से नहीं हारे। दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई। दुनिया भर के पहलवानों को कई-कई बार हरा कर जीवनपर्यंत अपराजित रहे। पर समय से पराजित हो उनके जीवन के आखिरी दिन कुछ मुश्किल में ही बीते ! 23 मई 1960 में 82 साल की उम्र में उनका निधन हो गया !

कुश्ती की दुनिया में गामा पहलवान का कद कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जन्मदिन के मौके पर गूगल ने भी डूडल बनाकर उन्हें सम्मान दिया है

 इतना बड़ा पहलवान होने के बावजूद वह एक सीधा-साधा, सरल ह्रदय, जाति-धर्म के पक्षपात से दूर, मिलनसार, सादगी पंसद, घमंड से कोसों दूर रहने वाला तथा नियमों का कठोरता से पालन करने वाला इंसान था। आंधी हो, तूफान हो, ठंड हो या गर्मी वह कभी भी अखाड़े जाने मे चूक नहीं करता था। बिना नागा सबेरे चार बजे वह जोर आजमाने अखाड़े मे पहुंच जाता था। इतने बड़े और महान खिलाड़ी के साथ कई किस्से जुड़े हुए हैं। उन्हीं में से एक लोकविश्वास और अनुश्रुति है कि उनके साथ दिव्य आत्माएं कुश्ती लड़ा करती थीं। 

 
कहते हैं कि सुबह सबेरे जब वह वे अखाड़े जाते थे तो वहाँ पहले से उपस्थित लोग उन्हें कुश्ती लड़ने का आह्वान करते थे, जिसमें अक्सर गामा को हार मिलती थी ! पर इससे विचलित ना हो गामा और अधिक मेहनत करने लगते थे ! ऐसे ही एक दिन जब गामा अखाड़े पहुंचे तो वहां सिर्फ एक ही आदमी को कसरत करते पाया। उस व्यक्ति ने गामा को देखते ही कहा कि आओ ! गामा भाई, आज कुछ जम कर कुश्ती की जाए। गामा मान गए ! काफी देर की कुश्ती के बाद ना हीं वह व्यक्ति गामा को पछाड़ सका ना हीं गामा उसे। थोड़ी देर बाद उस आदमी ने गामा की पीठ पर जोर से अपना हाथ मार कर कहा "गामा, मैं तुझसे बहुत खुश हूं। जा आज से तुझे दुनिया में कोई नहीं हरा पाएगा। तेरी इस पीठ को कोई भी कभी भी किसी भी अखाड़े की जमीन को नहीं छुआ पाएगा।" ऐसा कह कर वह आदमी गायब हो गया। 
पत्नी वजीर बेगम के साथ 
जनश्रुति है कि उस दिन गामा को समझ आया कि महीनों वह जिनके साथ कुश्ती के दांव-पेंच आजमाते रहे, वे दिव्य आत्माएं थीं। दतिया राज्य के पुराने महल के अंदर सैयदवली की मजार है, लोगों का विश्वास है कि वही स्वंय गामा को दांव-पेंच मे माहिर करने के लिए उनके साथ जोर आजमाया करते थे। जो भी हो यह बात तो बिलकुल सही है कि कुश्ती का पर्याय और जीत की मिसाल बन चुके गामा का ना तो कोई सानी था और शायद कभी हो भी नहीं सकेगा ! उनके पांच बेटे और चार बेटियां थीं ।उनकी पोती कलसूम पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज नवाज शरीफ की पत्नी हैं ।  

गुरुवार, 19 मई 2022

गिरफ्तारी एक पेड़ की

पेड़ का दुर्भाग्य ! दूसरे दिन होश आने पर स्क्विड को अपनी गलती का एहसास तो हुआ पर उसने पेड़ की जंजीरें खोलने नहीं दी। वह इससे लोगों को एक संदेश देना चाहता था कि अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जाने पर किसी का भी ऐसा ही हश्र होगा। उसके बाद देश का बंटवारा हो गया ! पाकिस्तान भी आजाद हो गया पर पेड़ के नसीब में आजादी नहीं लिखी थी ! वहाँ के लोगों ने उसे यथावत रहने दिया ! उनके अनुसार यह पेड़ अंग्रेजों के जुल्म का एक प्रमाण है............!!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की आग को चाहे जैसे भी बुझा-दबा दिया गया हो पर उसकी तपन को अंग्रेज ताउम्र महसूस करते रहे ! भारतीय जांबाजों का हौसला, उनका रणकौतुक, देश के लिए कुछ भी कर गुजरने, किसी भी हद तक चले जाने का माद्दा, उनकी दिलेरी, उनकी निर्भीकता ने अंग्रेजों की नींद हराम कर उनके मन में एक डर सा स्थापित कर दिया था ! वे सदा किसी अनहोनी की वजह से आशंकित व भयभीत से रहने लगे थे ! इसी डर के चलते उनकी निर्दयता, नृशंसता, दमन, जुल्म ओ सितम दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहे थे ! उनके अत्याचारों की बातें सुनकर आज भी रूह कांप जाती है। उनकी खब्त या झक्क का कोई पारावार नहीं था ! उसी सनक का एक उदाहरण अपनी दुर्दशा की गाथा का बखान करता, एक पेड़ आज भी जंजीरों में कैद खड़ा है ! बात बहुत ही अजीब है, पर सच है !


घटना 1898 की है ! अभी देश का विभाजन नहीं हुआ था ! गर्मियां विदाई लेने लगीं थीं, बरसात दस्तक दे रही थी ! ऐसी ही एक उमस भरी शाम के धुंधलके में अफगानिस्तान की सीमा से लगे सूबा ए सरहद, खैबर पख्तूनख्वाह (अब पाकिस्तान में) की लंडी कोटल नामक जगह के आर्मी कैंटोनमेंट में जेम्स स्क्विड नाम का एक अफसर नशे में धुत हवाखोरी कर रहा था ! तभी जोर की हवा चली, जिससे वहां स्थित एक विशाल बरगद का पेड़ झूमने लगा ! पेड़ को इस तरह डोलते देख, नशे में चूर स्क्विड को लगा कि वह उस पर आक्रमण करने के लिए बढ़ रहा है ! डर से भयभीत हो उसने चिल्ला कर अपने सार्जेंट को आदेश दिया कि पेड़ को तुरंत अरेस्ट कर लिया जाए। इसके बाद वहां तैनात सिपाहियों ने पेड़ को जंजीरों में जकड़ दिया।

पेड़ का दुर्भाग्य ! दूसरे दिन होश आने पर स्क्विड को अपनी गलती का एहसास तो हुआ पर उसने पेड़ की जंजीरें खोलने नहीं दी। वह इससे लोगों को एक संदेश देना चाहता था कि अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जाने पर किसी का भी ऐसा ही हश्र होगा। उसके बाद देश का बंटवारा हो गया ! पाकिस्तान भी आजाद हो गया पर पेड़ के नसीब में आजादी नहीं लिखी थी ! वहाँ के लोगों ने उसे यथावत रहने दिया ! उनके अनुसार यह पेड़ अंग्रेजों के जुल्म का एक प्रमाण है। इससे लोगों को और आने वाली नस्लों को भी इस बात का अंदाजा होता रहे कि किस तरह अंग्रेज हम लोगों पर जुल्म ढाया करते थे।
पार्क में इस पेड़ को जंजीरों में बंधे करीब सवा सौ साल बीत चुके हैं ! अब तो इसे दर्शनीय स्थल बना दिया गया है ! लोग दूर दूर से इसे देखने आते हैं ! इसके साथ ही उन्होंने पेड़ पर एक तख्ती भी लटका दी जिस I AM UNDER ARREST के साथ ही पूरा किस्सा भी लिखा हुआ है। अंग्रेज चले गए, लेकिन ये पेड़ आज भी वैसे ही अविचल खड़ा है, अंग्रेजी हुकूमत के काले इतिहास और गुलामी के दिनों की डरावनी यादों और आम इंसान की मजबूरियों को याद दिलाता ! 

@सभी चित्र अंतरजाल के सौजन्य से 

सोमवार, 16 मई 2022

मेरे पास एक आइडिया है

आयडिया आते हैं और गायब हो जाते हैं ! एक ही  पल में उन को पहचानने, समझने और प्रयोग में ले आने की जरुरत होती है ! ये एक तरह से इलेक्ट्रॉनिक संचार प्रणाली की तरह हैं, जो हमारे चारों ओर लगातार घूमते-विचरते तो रहते हैं पर क्लिक तभी करते हैं जब टीवी ऑन किया जाता है ! पर फर्क यह है कि टीवी सिग्नल कोई भी मॉनिटर ऑन कर पकड़ सकता है पर आइडिया को लपकने के लिए जुनून होना जरुरी है ! उठते-बैठते, सोते-जागते, खाते-पीते, नहाते-धोते, हर समय उसकी आहट पर कान लगे होने चाहिए ! कहते हैं ना कि पता  नहीं ईश्वर किस  रूप में दर्शन दे  दें ! उसी तरह विचार भी अच्छे-बुरे, छोटे-बड़े किसी भी रूप में कभी भी कौंध सकते हैं............!   

#हिन्दी_ब्लागिंग 

मेरे पास एक आइडिया है !"

टीवी सीरियलों में, फिल्मों में या रोजमर्रा की जिंदगी में अक्सर यह जुमला सुनाई पड़ जाता है ! क्या होता है यह आयडिया या विचार ! जो कभी-कभी जिंदगी तक बदल देता है ! जिसकी जरुरत बड़े-बड़े साइंसदा, उद्यमी, नेताओं, कारोबारियों से लेकर आम इंसान या कहिए बच्चों-छात्रों तक को रहती है ! यह कहाँ से आता है ! कब आता है ! कैसे आता है ! सोचा जाए तो इसको ले कर ढेरों प्रश्न सामने आ खड़े होते हैं ! 

ऐसी मान्यता है कि हर इंसान की जिंदगी में एक ना एक बार सौभाग्य जरूर दस्तक देता है ! उस क्षण को को पकड़ने और पहचानने की लियाकत होनी चाहिए ! वही हालत विचारों की भी है, ये भी आते हैं और उसी समय  गायब भी हो जाते हैं ! बस एक ही पल में उस को पहचानने, समझने और प्रयोग में ले आने की जरुरत होती है ! ये एक तरह से इलेक्ट्रॉनिक संचार प्रणाली की तरह होते हैं, जो हमारे चारों ओर लगातार घूमते-विचरते तो रहते हैं पर क्लिक तभी करते हैं जब टीवी ऑन किया जाता है ! जिस तरह किसी खास प्रोग्राम को उसके समय पर ही देखा जा सकता है वैसे ही विचारों को भी उचित समय पर लपकना पड़ता है ! पर इतना फर्क भी है कि टीवी सिग्नल कोई भी पकड़ सकता है पर आइडिया को लपकने के लिए जुनून होना जरुरी है ! उसको लपकने के लिए सदा तैयार होना चाहिए ! उठते-बैठते, सोते-जागते, खाते-पीते, नहाते-धोते, हर समय उसकी आहट पर कान लगे होने चाहिए ! कहते हैं ना कि पता नहीं ईश्वर किस रूप में दर्शन दे दें ! उसी तरह विचार भी अच्छे-बुरे, छोटे-बड़े किसी भी रूप में कौंध सकता है ! 


दुनिया के इतिहास में दसियों ऐसे उदाहरण मौजूद हैं, जब सही समय में सही विचार को सही समय पर लपक, सही दिशा में उसका उपयोग कर दुनिया को चमत्कृत कर रख दिया गया हो ! इसमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय और उल्लेखित न्यूटन और सेव, आर्कमिडीज की नग्नावस्था में दौड़, इलियास होवे का स्वप्न में खुद को नोक पर बने छिद्र वाले भालों से कौंचा जाना, विल्हेल्म कोनराड द्वारा X-ray की पहचान, बेंजामिन फ्रैंकलिन का आकाशीय बिजली का प्रयोग हैं ! इनके पहले भी सेव-आम-अमरूद पेड़ों से गिरते ही रहते थे ! बिजली चमकती ही रहती थी ! पानी भरे बर्तन में किसी चीज के गिरने से पानी उसके लिए जगह बना उसे हल्का महसूस करवाता ही था ! इन विचारों को ही उपयोग में ला, हमारे ऋषि-मुनियों-आचार्यों ने अध्ययन के सरलीकरण की विविध विधियां ईजाद की हुई थीं। अपने विचारों को ही उपदेश बना उन्होंने मानव को सुखी-स्वस्थ-प्रसन्न रहने का मार्ग प्रशस्त किया था !

                                
कहावत है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है, पर आविष्कार को जन्म देने के लिए विचारों की कोख की जरुरत पड़ती है ! बड़े-बड़े आविष्कारों को जाने दें, विचारों के कौंधने से सैंकड़ों ऐसी खोजें हुई है जिन्होंने हमारे कई दुष्कर कार्यों को सरल बना दिया है ! आप सोचिए यदि जूते के तस्मों के सिरे पर लगे एग्लेट न होते तो जूतों में फीता डालने में कितना समय व्यर्थ जाता ! वर्षों पहले हार्वे केनेडी मोमबत्ती की रौशनी में अपने जूतों में लेस डालने की कोशिश कर रहा था, अचानक उसके फीते के सिरे पर पिघला मोम गिर कर जम गया, बिखरे फीते के कडा होते ही उसे जूते में पिरोना आसान हो गया ! इसे देख हार्वे के दिमाग में आए आयडिया ने करोड़ों लोगों का बहुमूल्य समय बचाने में मदद की ! 

         
बहुत पीछे ना जाएं ! अभी कुछ ही वर्षों में ऐसी सैंकड़ों ईजादें हुई हैं जिन्होंने समाज का रहन-सहन-चलन बदल डाला है ! फिर चाहे वह यू ट्यूब हो, फेस बुक हो, ट्विटर हो ! अमेजन हो ! घर पहुँच सेवाएं हों, चाय-कॉफी के स्टालों की चेन हो, फलों-सब्जियों, रोजमर्रा में काम आने वाली चीजों की पैंकिग हो, विज्ञापनों को लुभावना बनाना हो, मेडिकल हेल्प हो, कहाँ तक गिनाएं ! सब कुछ किसी ना किसी आयडिया के क्लिक हो किसी के दिमाग की बत्ती जलने का ही परिणाम है ! आज जो नए-नए स्टार्ट-अप रोज चलन में आ रहे हैं यह सब नए-नए विचारों का ही तो खेल है !

                                          

हमारी हर अड़चन नए आयडिया की जननी होती है ! पर ऐसा भी नहीं है कि आपने सोचा और आयडिया आ गया ! कभी तो दिनों-हफ़्तों तक कुछ नहीं सूझता और कभी पल भर में दिमाग की बत्ती जल जाती है ! पर कोशिश सदा सकारात्मक सोच की होनी चाहिए ! अपनी अड़चन को दूर करने का ख्याल सदा बना रहना चाहिए ! हमारा अवचेतन भी समस्या का हल ढूंढने में हमारी सहायता करता है ! ठीक उसी तरह जैसे आप सुबह निश्चित समय पर उठने का याद कर सोते हैं और बिना किसी बाहरी सहायता के आपकी नींद ठीक उसी समय खुल जाती है ! इसी तरह कभी-कभी अवचेतन से हमें अपनी अड़चनों का हल भी मिल जाता है ! वैसे कभी-कभी विफल विचार में से भी नया विचार उभर आता है ! 

                                           

अधिकतर यह कहा-सुना जाता है कि शरीर को स्वस्थ रखने, तनाव-मुक्त रहने, चिंताओं से निजात पाने या ध्यान इत्यादि के लिए दिलो-दिमाग का विचार शून्य होना जरुरी है ! पर इसके साथ ही दुनिया को चलायमान बनाए रखने, सुविधायुक्त बनाने, रोजमर्रा की अड़चनों से छुटकारा पाने के लिए सकारात्मक व सृजनात्मक विचारों का प्रवाह भी उतना ही जरुरी है ! अब यह हम पर है कि हम कैसे सही ताल-मेल बिठा कर अपना, समाज का और देश का भला कर पाते हैं ! 

मंगलवार, 10 मई 2022

नाम भले ही आम हो, बात हर खास है

दुनिया में सबसे मंहगा बिकने वाला, जापान के मियाजाकी स्थान पर उगाया जाने वाला, इसी नाम से प्रसिद्ध मियाजाकी आम है ! यह अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में दो लाख सत्तर हजार रूपए किलो तक बिका है। आमों की किस्मों का रंग हरा-पीला या हल्का गुलाबी लाल होता है पर मियाजाकी का रंग गहरा लाल या बैंगनी होता है। इसका आकार डायनासॉर के अण्डों की तरह होता है।सुना गया है कि मध्य प्रदेश के एक दंपत्ति ने इस किस्म को उगाया है ! इसे चोरी से बचाने के लिए उन्होंने सात शिकारी कुत्तों के साथ चार गार्ड का पहरा अपने बागीचे में लगाया हुआ है.................!

#हिन्दी_ब्लागिंग    

यूं तो गर्मियां ज्यातातर परेशान ही करती हैं। पर ढेर सारी परेशानियों के बावजूद कई मायनों में अहम, यह ऋतु अपने साथ एक अनोखा तोहफा भी ले कर आती है ! जिसका सिला तो किसी भी तरह नहीं दिया जा सकता ! वह बेमिसाल उपहार है फलों के राजा आम के रूप में ! जो ग्रीष्म ऋतु में ही, आ कर दिल ओ दिमाग को तृप्ति प्रदान करता है। अपने देश के इस राष्ट्रीय फल की अनगिनत विशेषताएं हैं ! आम होते हुए भी यह स्वादिष्ट और पौष्टिकता से भरपूर फल इतना खास है कि प्रकृति की इस नियामत को शायद ही कोई इंसान नापसंद करता हो ! यह अकेला फल है जो आम और खास हर तरह के लोगों को समान रूप से प्रिय है !  बेर से कुछ बड़े, गमले में भी लग जाने वाली, आम्रपाली से लेकर साढ़े तीन किलो वजन की नूरजहां जैसी किस्मों तक फैले इस अनोखे फल की बात  ही कुछ अलग सी और निराली है !

हथेली पर आम्रपाली 
आम आम्रपाली 
नूरजहां 
आम नूरजहां 

आम दुनिया के सबसे लोकप्रिय फलों में से एक है। यह न सिर्फ एक फल है बल्कि कई देशों की संस्कृति और इतिहास का हिस्सा है। सैंकड़ों प्रजातियों के साथ दुनिया में बहुतायद में उगाई जाने वाली एक फसल। भारत में आम पहली बार 5 हजार साल पहले उगाए गए थे। माना जाता है कि उसका मूल म्यामांर, बांग्लादेश (आज के) और उत्तर पूर्वी भारत के बीच है। दुनिया भर में तकरीबन 500 प्रकार के आम पाए जाते हैं। उनकी प्रजातियां अलग हैं। जापानी मियाजाकी दुनिया के सबसे महंगे आमों में से एक है। बांग्लादेश ने आम के पेड़ को 2019 में अपना राष्ट्रीय पेड़ घोषित किया है। अपनी सुगंध, मिठास, स्वाद तथा अपने दैवीय रस के कारण खास मुकाम हासिल करने वाला आम भारत में फलों का राजा कहलाता है। क्या बच्चा क्या बूढ़ा, क्या युवक क्या जवान, शायद ही कोई ऐसा हो जो इसे पसंद न करता हो। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक उपजने वाले इस तोहफे के तरह-तरह के नाम हैं, हापुस, अल्फांसो, चौसा, सिंदूरी, हिमसागर, सफेदा, गुलाबखास, दशहरी, लंगड़ा, केसर, बादामी, तोतापरी, बैगनपल्ली, नूरजहां, मुलगोबा, इत्यादि-इत्यादि-इत्यादि ! प्रत्येक की अपनी सुगंध, अपना स्वाद ! किसी से किसी की कोई तुलना नहीं ! हर एक अपने आप में लाजवाब, बेमिसाल, अतुलनीय !   

लंगड़ा आम 
अलफांसो या हापुस 

गुलाबखास या सिंधूरी 

हिमसागर 
आम के फल के अलावा उसका पेड़ भी अत्यंत उपयोगी होता है ! यह दीर्घजीवी, सघन तथा एक विशाल वृक्ष होता है। जो भारत में दक्षिण में कन्याकुमारी से उत्तर में हिमालय की तराई तक (3,000 फुट की ऊँचाई तक) तथा पश्चिम में पंजाब से पूर्व में आसाम तक आसानी से पाया जाता है। अनुकूल वातावरण और परिस्थितियों में यह औसतन 50 से 60 फिट की ऊंचाई तक का पादप है ! पर कोई-कोई वृक्ष 90  फिट तक की ऊंचाई तक भी पहुँच जाता है। इसकी सघनता पशु-पक्षियों को बहुत रास आती है। हमारी संस्कृति, परंपराओं, धार्मिक अनुष्ठानों, दैनिक दिनचर्याओं में इसका हर अंग सदियों से रचा-बसा है ! हमारे वेद-पुराणों ने भी इसे बेहद पवित्र व उपयोगी माना है ! 



 
इसकी लोकप्रियता का इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि इस आम के लिए साल में खास दिन मुकर्रर किए गए हैं ! जी हाँ ! 22 जुलाई से दो दिवसीय मैंगो उत्सव का आयोजन देश की राजधानी दिल्ली में हर साल किया जाता है ! इस दिन देश के 50 चुनिंदा आम के उत्पादक किसानों को उत्सव में आमंत्रित किया जाता है, जो अपनी 550 से भी ज्यादा किस्मों को आम के प्रेमियों की खातिर पेश करते हैं। जो लोग सोचते हैं कि आम की दस-पंद्रह किस्में होती होंगी, उनकी आँखें इतने तरह के आमों को देख खुली की खुली रह जाती हैं। हालांकि राष्ट्रीय आम दिवस का इतिहास और उत्पत्ति अज्ञात है ! पर भारत की लोक कथाओं और धार्मिक समारोहों से इसका अटूट संबंध है। आम के बाग को बुद्ध को तोहफे में देने का ब्यौरा मिलता है ! आम के फूलों को मंजरी कहा जाता है, संस्कृत के इस शब्द का अर्थ छोटे गुच्छों में उगने वाले फूल होता है। इससे भी इस फल की भारतीय जड़ों का संकेत मिलता है। वैसे भी गर्मियों में उपजने वाले इस फल का विवरण हमारे ग्रंथों में 5000 साल पहले तक के समय में उपलब्ध है।  





दुनिया में सबसे मंहगा बिकने वाला, जापान के मियाजाकी स्थान पर उगाया जाने वाला, इसी नाम से प्रसिद्ध मियाजाकी आम है ! यह अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में दो लाख सत्तर हजार रूपए किलो तक बिका है। आमों की किस्मों का रंग हरा-पीला या हल्का गुलाबी लाल होता है पर मियाजाकी का रंग गहरा लाल या बैंगनी होता है। इसका आकार डायनासॉर के अण्डों की तरह होता है। सुना गया है कि मध्य प्रदेश के एक दंपत्ति ने इस किस्म को उगाया है ! इसे चोरी से बचाने के लिए उन्होंने सात शिकारी कुत्तों के साथ चार गार्ड का पहरा अपने बागीचे में लगाया हुआ है। भारत का सबसे मंहगे आम का श्रेय कोहितूर नाम की किस्म को जाता है, जो सिर्फ बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में उगाई जाती है ! इसकी कीमत तकरीबन 1500/- प्रति नग यानी पीस है। अलफांसो अकेला आम है जो तौल कर और गिन कर भी बेचा जाता है ! लंगड़ा आम के बाद यह देश का सबसे मीठा आम भी है। इसको हापुस भी कहा जाता है।
सबसे मंहगा आम मियाजाकी 

 मियाजाकी 

भारत का सबसे मंहगा आम, कोहितूर 
दशहरी 
सफेदा 
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर भी आम की एक किस्‍म विकसित की गई है। आम की सबसे ज्‍यादा 300 किस्‍में उगाने वाले लखनऊ स्थित मलिहाबाद निवासी कलीमुल्‍ला साहब ने खुद 13 किस्में विकसित कर प्रत्येक का नाम किसी न किसी खास शख्सियत के नाम पर रखा है। इनमें से एक खास किस्म का नाम मोदी जी के नाम पर नमो रखा है ! इनकी किस्मों की सूची में सचिन, ऐश्वर्या, अनारकली, नयनतारा, अखिलेश जैसे लोग शामिल हैं। कलीमुल्‍ला अपने आमों को इन्हीं नामों से एक्‍सपोर्ट भी करते हैं ! वैसे भी भारत अपने आम की 1.90 करोड़ लाख टन की उपज और उसका निर्यात करने वाला दुनिया का सिरमौर देश है ! भारत दुनिया का 41 फीसदी आम का उत्पादन करता है. वहीं, 50 देशों को 5276.1 करोड़ टन आम एक्सपोर्ट करता है.इतनी भारी-भरकम उपज का सबसे ज्यादा उत्पादन उत्तर प्रदेश  है जो सकल उपज का तक़रीबन एक चौथाई भाग की हिस्सेदारी निभाता है !
आम, नमो 
नए हाईब्रीड आम 

कलीमुल्ला नर्सरी 
आम की नई प्रजाति 
अब ऐसा है कि भले ही इस सैकड़ों प्रजाति वाले आम का नाम आम हो पर इसकी कथा आम ना हो कर खास और अपरंपार है यानि आम अनंत, आम कथा अनंता ! जिसे एक साथ समेटना नामुमकिन ना सही पर मुश्किल जरूर है ! इसलिए अभी मौसम है, आम की बहार है, मौका है, दस्तूर भी है तो इस अनुपम, दिव्य फल के मधुर रस का लुत्फ उठाएं और प्रकृति को इस अनुपम उपहार के लिए धन्यवाद प्रेषित करें !     

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