बुधवार, 19 मई 2021

तैयार रहिए, हवा खरीदने के लिए

''24 दिसंबर 2015 की पोस्ट जो आज सही साबित हो रही है "

कुछ सालों पहले बोतल बंद पानी का चलन शुरू हुआ था, जो अब करोड़ों-अरबों का खेल बन चुका है। डरा-डरा कर पानी को दूध से भी मंहगा कर दिया गया है। वही खेल अब हवा को माध्यम बना खेला जाएगा। तरह-तरह की "जगहों" के नाम से हवा की बोतलों की कीमतें निर्धारित होंगी ! डरे और आशंकित लोग बिना सोचे-समझे-परखे, सेहत के नाम पर कुछ भी सूँघते नज़र आऐंगे। पानी में तो फिर भी बोतल में कुछ भरना पड़ता है, पर इसमें तो हरड़-फिटकरी के बिना ही तिजोरी भरने का मौका मिल जाएगा ! लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब बच्चों के बैग में पानी की बोतल के साथ ही हवा की बोतल भी दिखने लग जाएगी.............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

इंसान को प्रकृति ने पांच नेमतें मुफ्त में दे रखीं हैं। धरती, पानी, अग्नि, वायु और आकाश। जिनके बिना जीवन का अस्तित्व ही नहीं बचता। जैसी की कहावत है, माले मुफ्त दिले बेरहम, हमने इन पंचतत्वों की कदर तो की ही नहीं उलटा उनका बेरहमी से शोषण जरूर किया ! धरती का दोहन तो सदियों से हम करते आ रहे हैं, जिसकी अब अति हो चुकी है। दूसरा जल, यह जानते हुए भी कि इसके बिना जीवन नामुमकिन है, उसको जहर बना कर रख दिया गया है। बची थी हवा तो उसका हाल भी बेहाल होता जा रहा है। विडंबना यह है कि हालात को सुधारने के बजाए अभी भी हम अपने कुकर्मों से बाज नहीं आ रहे हैं !

खबर आ गयी है कि चीन में शुद्ध हवा को डिब्बों में भर कर बेचने का उपक्रम शुरू हो चुका है। वैसे जापान में बहुत पहले से आक्सीजन बूथ लग चुके हैं। पर उनमें और अब में फर्क है। तो अब लगता नहीं है कि हमारे "समझदार" रहनुमा शहरों पर छाई जानलेवा दूषित वायु को साफ़ करने के लिए कोई सख्त और सार्थक कदम उठाएंगे। क्योंकि निकट भविष्य में कौडियों को ठोस सोने में बदलने के मौके हाथ लगने वाले हैं। जिसे रसूखदार कभी भी हाथ से जाने नहीं देंगें। क्योंकि सब जानते हैं कि जरुरत हो न हो, अपने आप को आम जनता से अलग दिखलवाने की चाहत रखने वाले हमारे देश में भरे पड़े हैं। कुछ सालों पहले जब बोतल बंद पानी का चलन शुरू हुआ था तो घर-बाहर-होटल-रेस्त्रां में इस तरह का पानी पीना "स्टेटस सिंबल" बन गया था। जो अब करोड़ों-अरबों का खेल बन चुका है। डरा-डरा कर पानी को दूध से भी मंहगा कर दिया गया है। कारण भी है दूध की उपलब्धता सिमित है और हर एक के लिए आवश्यक भी नहीं है, इसलिए आमदनी की गुंजायश कम थी। पर पानी तो जीवन का पर्याय है और अथाह है। सिर्फ साफ़ बोतल और ढक्कन लगा होना चाहिए फिर कौन देखता है कि उसमें भरा गया द्रव्य कहां से लिया गया है। वही खेल अब हवा के माध्यम से खेला जाएगा। तरह-तरह की "जगहों" के नाम से हवा की बोतलों की कीमतें निर्धारित होंगी ! डरे और आशंकित लोग बिना सोचे-समझे-परखे सेहत के नाम पर कुछ भी सूँघते नज़र आऐंगे। पानी में तो फिर भी बोतल में कुछ भरना पड़ता है, पर इसमें तो हरड़-फिटकरी के बिना ही तिजोरी भरने का मौका मिल जाएगा ! लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब बच्चों के बैग में पानी की बोतल के साथ ही हवा की बोतल भी दिखने लग जाएगी।

बात है डर की ! इंसान की प्रजाति सदा से ही डरपोक या कहिए आशंकित रहती आई है। अब तो डर हमारी 'जींस' में पैबस्त हो चुका है। इसी भावना का फायदा उठाया जाता रहा है और उठाया जाता रहेगा। सुबह होते ही  विभिन्न मिडिया के डराने का व्यापार शुरू हो जाता है। अरे क्या खा रहे हो, यह खाओ और स्वस्थ रहो ! ओह हो ! क्या पी रहे हो इसमें जीवाणु हो सकते हैं ! ये डब्बे वाला पियो ! अरे, ये कैसा कपड़ा पहन लिया, ये पहनो ! आज जिम नहीं गए ! हमारे यंत्र घर में ही लगा लो ! ये बच्चों-लड़कियों जैसा क्या लगा लेते हो, अपनी चमड़ी का ख्याल रखो ! आज फलाने को याद किया, तुम्हारे ग्रह ढीले हैं! कल ढिमकाने के दर्शन जरूर करने हैं ! आज प्रदूषण की मात्रा जानलेवा है ! ऐसा करोगे तो वैसा हो जाएगा, वैसा करोगे तो ऐसा ही रह जाएगा। यानी जब तक आदमी सो नहीं जाता यह सब नाटक चलता ही रहता है। आज कल हवा से डराने का मौसम चल रहा है ! हो सकता है कि भविष्य में शुरू किए जाने या होने वाले व्यवसाय के लिए हवा बाँधी जा रही हो  !!! 

8 टिप्‍पणियां:

Anita ने कहा…

हवा भी अगर बिकने लगी तो मानवजाति का भविष्य खतरे में है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी
हवा यानी आक्सीजन, दिख ही रहे हैं हालात

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा बुधवार (19-05-2021 ) को 'करोना का क़हर क्या कम था जो तूफ़ान भी आ गया। ( चर्चा अंक 4070 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रवीन्द्र जी
सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार । स्नेह बना रहे

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

जी इस दुनिया में जो न बिक जाए वो कम है.... हवा खरीदने का भी एक फैड है.... हाँ, हमारे हाथ में केवल ये है कि जितना हो सके पेड़ लगायें...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बिल्कुल सही बात, विकास जी

Kadam Sharma ने कहा…

Drawani w chintajanak sachchai

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कदम जी
फिर भी कोई सुधरने को तैयार नहीं है

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