शनिवार, 22 मई 2021

उपनाम यानी सरनेम

जिस उपनाम को इंसान की सही शिनाख्त, उसकी सहूलियत, उसकी ठोस पहचान के लिए प्रयोग में लाया गया था ! समय के साथ उसी पर समाज को तोड़ने, उसे विभाजित करने, ऊँच-नीच में दरार, जाति-वर्ग की दिवार खड़ी करने का आरोप लगने लग गया ! आज मांग उठने लगी है कि अवाम अपने नाम के साथ लगने वाले उपनाम को खारिज कर दे ! उससे मुक्ति पा ले ! उसको अपने से दूर कर दे  ! जिससे समाज में समरसता आ सके...............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

एक होता है नाम ! जो किसी भी व्यक्ति की प्रमुख पहचान होता है। दूसरा होता है उपनाम, किसी नाम के साथ जुड़ा वह शब्द जो उस नाम की जाति या किसी विशेषता को व्यक्त करता है। आज देश-विदेश में कहीं भी देखा जाए तो हर इंसान के नाम के साथ एक उपनाम, का होना आम बात हो गई है। इसकी जरुरत क्यों पड़ी ! यह भी जिज्ञासा का प्रश्न है ! इसका जवाब तो यही लगता है कि मनुष्यों की बढ़ती आबादी और उनका किसी भी कारण, कहीं भी होने वाला स्थानांतरण ही इसका मुख्य कारण होगा। क्योंकि जब जनसंख्या कम थी, तब लोगो की पहचान उनके नाम से या ज्यादा से ज्यादा पिता का नाम जोड़कर हो जाती थी। लेकिन जब आबादी बढ़ी और एक ही नाम के कई व्यक्ति होने लगे या फिर कोई इंसान अपनी जगह छोड़ किसी दूसरे स्थान पर जा कर रहने लगा तो सबकी अलग-अलग पहचान के लिए नाम को कुछ ख़ास बनाना जरुरी हो गया ! तब उपनाम की रचना हुई। जो आगे चल कर हमारी जाति, धर्म या समुदाय का भी प्रतिनिधित्व करने लगा।  

जिस उपनाम को इंसान की सही शिनाख्त, उसकी सहूलियत के लिए, उसकी ठोस पहचान के लिए बनाया गया था ! समय के साथ उसी पर समाज को तोड़ने, उसे विभाजित करने, ऊँच-नीच में दरार डालने, जाति-वर्ग की दिवार खड़ी करने का आरोप लगने लग गया 

दुनिया की तो छोड़ें ! आज हमारे देश में ही वंश, गोत्र , जातियों, उपजातियों, कर्मों, जगहों, पूर्वजों, उपाधियों और ना जाने किस-किस से जुड़े अनगिनत उपनाम चलन में हैं। जबकि हमारे ग्रंथों इत्यादि में नाम के साथ सिर्फ वंश का जुड़ा होना पाया जाता रहा है, जैसे सूर्यवंश, चन्द्रवंश या मौर्यवंश इत्यादि ! वैसे एक उपनाम (तखल्लुस) और भी होता है जिसे ज्यादातर कवि, शायर, लेखक या कलाकार अपनी रचनाओं में अपने नाम के साथ जोड़ लेते हैं ! पर इसमें आदमी की सही पहचान छिप जाती है ! कई बार तो यह असली नाम पर भी भारी पड़  जाता है।  

उपनामों की शुरुआत कब और कैसे हुई यह एक वृहद खोज का विषय है ! एक अंदाज सा लगाया जा सकता है कि जब समय के गुजरने के साथ ही इंसान को भी अपनी जीविका या अन्य उद्देश्यों के लिए दुनिया भर में स्थानांतरित होना पड़ता रहा होगा और काल-परिस्थियों-मजबूरियों से उसका कायाकल्प भी होता चला गया होगा ! ऐसे में उसे अपनी सही और ठोस पहचान बनाए रखने के लिए किसी विशेषण की जरुरत महसूस हुई होगी ! जिसके तहत विभिन्न विशेषताओं वाले उपनामों का प्रादुर्भाव हुआ होगा ! पर बढ़ती आबादी, अंतर्जातीय संबंधों, अलग-अलग परिवेशों, परिस्थियों या मजबूरियों से नाम-उपनाम भी बदलते चले गए होंगे। उनमें भी घाल-मेल हो गया होगा ! जिसके परिणाम स्वरूप आज कई उपनाम ऐसे मिलते हैं जो किसी भी मजहब के मानने वाले के हो सकते हैं, जैसे; पटेल, शाह, राठौर, राणा, सिंह इत्यादि ! 

पर जिस उपनाम को इंसान की सही शिनाख्त, उसकी सहूलियत के लिए, उसकी ठोस पहचान के लिए बनाया गया था ! समय के साथ उसी पर समाज को तोड़ने, उसे विभाजित करने, ऊँच-नीच में दरार डालने, जाति-वर्ग की दिवार खड़ी करने का आरोप लगने लग गया ! आज मांग उठने लगी है कि अवाम अपने नाम के साथ लगने वाले उपनाम को खारिज कर दे ! उससे मुक्ति पा ले ! उसको अपने से दूर कर दे ! जिससे एक समान समाज का निर्माण हो सके !   

19 टिप्‍पणियां:

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है सर आपने।

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

कई जगह उपनाम गाँव के नाम पर भी होता है। वैसे उपनाम से उतना फर्क नहीं पड़ता है लेकिन अगर उपनाम एक कारण एक वर्ग को कम और एक खुद को बड़ा मानने लगे तो यह उपनाम बेचारा बदनाम हो जाता है। आप उपनाम हटा भी देंगे तो भेद बना रहेगा और इसे दर्शाने का कोई दूसरा तरीका लोग खोज लिया करेंगे।

योगेश मित्तल ने कहा…

रोचक पोस्ट। कहते हैं नाम में क्या रखा है। यहाँ कहना पड़ेगा उपनाम में बहुत कुछ रखा है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवम जी
हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी
सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विकास जी
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

योगेश जी
आपका सदा स्वागत है

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

उपनाम के प्रारम्भ होने की कथा अच्छी लगी ।

शुक्रिया

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संगीता जी
अनेकानेक धन्यवाद

Kadam Sharma ने कहा…

Umda jankari

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

धन्यवाद, कदम जी

रेणु ने कहा…

सच है गगन जी | ये उपनाम अराजकता , जातीयता और साम्प्रदायिकता के मूल में बहुधा रहे हैं |अच्छा लिखा आपने \ आभासी दुनिया में भी इसका ख़ासा दखल और वर्चस्व दिखाई देता है |

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रेणु जी
जी! देखिए ना, देखते-देखते कैसे चीजों के महत्व बदल जाते हैं

Onkar ने कहा…

बहुत बढ़िया

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ओंकार जी
हार्दिक आभार

शुभा ने कहा…

वाह!सुंदर व सटीक ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनेकानेक धन्यवाद, शुभा जी

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

सारगर्भित लेख ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आभार, जिज्ञासा जी

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