भिखारी तो दोनों ही थे, फर्क सिर्फ इतना था कि एक मजबूर हो कर मांग रहा था और दूसरा मजबूर करवा कर ! एक को देख मन में करुणा, दया का भाव जागृत होता था तो दूसरे को देख नफ़रत, घृणा और क्षोभ ! एक को कुछ दे कर किसी की जेब पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ रहा था जबकि दूसरे को देने से पूरे देश की अर्थ व्यवस्था डांवाडोल हो रही थी ............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
प्रदेश से आरक्षण की मांग को ले कर रैली को राजधानी तक जाना था। उन तीनों ने भी मुफ्त में खाने-पीने और राजधानी की सैर का मौका लपक लिया। शहर पहुंचते ही पुलिस से मुठभेड़ हुई ! ट्रैक्टर-ट्रालियां, दो पहिया, छोटी गाड़ियां, टपरे-छकड़े सब रोक दिए गए ! नतीजतन नारेबाजी, चक्का जाम. आगजनी, तोड़-फोड़ आदि तो होनी ही थी ! इस सब से मची अफरातफरी के बाद सरकार कसमसाई ! आरक्षण पर आश्वासन और फौरी तौर पर मुफ्त का राशन-पानी-बिजली-मंहगाई भत्ते की घोषणा हुई। भीड़ वापस !
ये तीनों भी रैली और अपनी सफल यात्रा पर इतराते अपने वाहन की खोज में मटरगस्ती कर रहे थे कि एक भिखारी ने अपनी भूख का हवाला दे कर उनसे कुछ देने का अनुरोध किया ! एक-दो बार टालने के बाद तीनों भड़क उठे, ''शर्म नहीं आती भीख मांगते ? कुछ काम क्यों नहीं करते ? मुफ्त में खाने की आदत पड़ गयी है ! चलो आगे जाओ !!''
भिखारी तो दोनों ही थे, फर्क सिर्फ इतना था कि एक मजबूर हो कर मांग रहा था और दूसरा मजबूर करवा कर ! एक को देख मन में करुणा, दया का भाव जागृत होता था तो दूसरे को देख नफ़रत, घृणा और क्षोभ ! एक को कुछ दे कर किसी की जेब पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ रहा था जबकि दूसरे को देने से पूरे देश की अर्थ व्यवस्था डांवाडोल हो रही थी !!
#हिन्दी_ब्लागिंग
प्रदेश से आरक्षण की मांग को ले कर रैली को राजधानी तक जाना था। उन तीनों ने भी मुफ्त में खाने-पीने और राजधानी की सैर का मौका लपक लिया। शहर पहुंचते ही पुलिस से मुठभेड़ हुई ! ट्रैक्टर-ट्रालियां, दो पहिया, छोटी गाड़ियां, टपरे-छकड़े सब रोक दिए गए ! नतीजतन नारेबाजी, चक्का जाम. आगजनी, तोड़-फोड़ आदि तो होनी ही थी ! इस सब से मची अफरातफरी के बाद सरकार कसमसाई ! आरक्षण पर आश्वासन और फौरी तौर पर मुफ्त का राशन-पानी-बिजली-मंहगाई भत्ते की घोषणा हुई। भीड़ वापस !
ये तीनों भी रैली और अपनी सफल यात्रा पर इतराते अपने वाहन की खोज में मटरगस्ती कर रहे थे कि एक भिखारी ने अपनी भूख का हवाला दे कर उनसे कुछ देने का अनुरोध किया ! एक-दो बार टालने के बाद तीनों भड़क उठे, ''शर्म नहीं आती भीख मांगते ? कुछ काम क्यों नहीं करते ? मुफ्त में खाने की आदत पड़ गयी है ! चलो आगे जाओ !!''
भिखारी तो दोनों ही थे, फर्क सिर्फ इतना था कि एक मजबूर हो कर मांग रहा था और दूसरा मजबूर करवा कर ! एक को देख मन में करुणा, दया का भाव जागृत होता था तो दूसरे को देख नफ़रत, घृणा और क्षोभ ! एक को कुछ दे कर किसी की जेब पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ रहा था जबकि दूसरे को देने से पूरे देश की अर्थ व्यवस्था डांवाडोल हो रही थी !!
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-02-2019) को "यादों का झरोखा" (चर्चा अंक-3241) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, स्नेह बना रहे
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/02/2019 की बुलेटिन, " निदा फ़जली साहब को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शिवम जी, आपका और ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक धन्यवाद
एक टिप्पणी भेजें