आज देश में दो ही ऐसी राजनितिक पार्टियां हैं जिनका कुछ न कुछ आधार पूरे देश में है। इनमें भी पहले नंबर पर कांग्रेस है, जिसके समर्पित कार्यकर्त्ता देश के कोने-कोने में आस्था की अलख जगाए बैठे हैं। पर उसके अदूरदर्शी नेता इसका फायदा न उठा सिर्फ मोदी के पीछे पड़े हुए हैं ठीक उसी तरह जैसे इंदिरा जी को हराने के लिए विपक्ष ने जान लगा दी थी। पर इंदिरा जी ने पलट कर उनकी भाषा में जवाब देने के बदले काम पर ध्यान दिया; नतीजा क्या रहा ! सहानुभूति की लहर चली, सकल अवाम उस अकेली महिला के पीछे जा खड़ा हुआ। आज भी वही हालात हैं जैसे कभी इंदिरा गांधी के नाम पर वोट मिलता था, आज वोट मोदी जी के नाम पर पड़ता है। उनकी लोकप्रियता की टक्कर में कोई नहीं दिखता। ऐसी कोई पार्टी दिखती ही नहीं जो अकेली भाजपा को चुनौती दे पा रही हो। जो राष्ट्रीय पार्टी उसे चुनौती देने वाली थी, उसका हाल देख कर दुःख होता है.........
#हिन्दी_ब्लागिंग
अभी पूरा देश अजीब से संक्रमण काल से गुजर रहा है। सारे काम, योजनाएं, समस्याएं सब ठप्प हैं ! अवाम त्रस्त है पर सरकार और विपक्ष किसी को यदि कोई चिंता है तो सिर्फ यही कि किसी भी प्रकार 2019 में सत्ता हमें हासिल करनी ही है। नेता मुतमइन हैं कि देश कहीं जा नहीं रहा और देशवासियों का क्या है ऐसे ही चिल्लाते रहते हैं, उनकी तो आदत ही है; उसके लिए बस बीच-बीच में जरा सी आश्वासनों की खुराक और नौटंकी दिखाते रहने की जरुरत होती है और अभी चल रही नौटंकी का नाम है 2019 के चुनाव !
#हिन्दी_ब्लागिंग
अभी पूरा देश अजीब से संक्रमण काल से गुजर रहा है। सारे काम, योजनाएं, समस्याएं सब ठप्प हैं ! अवाम त्रस्त है पर सरकार और विपक्ष किसी को यदि कोई चिंता है तो सिर्फ यही कि किसी भी प्रकार 2019 में सत्ता हमें हासिल करनी ही है। नेता मुतमइन हैं कि देश कहीं जा नहीं रहा और देशवासियों का क्या है ऐसे ही चिल्लाते रहते हैं, उनकी तो आदत ही है; उसके लिए बस बीच-बीच में जरा सी आश्वासनों की खुराक और नौटंकी दिखाते रहने की जरुरत होती है और अभी चल रही नौटंकी का नाम है 2019 के चुनाव !
2019 के साल को पक्ष-विपक्ष ऐसे पेश कर रहा है जैसे उन दिनों कोई भारी क्रांति होने वाली हो। अंदर-अंदर ही सब हिले हुए हैं पर अपनी नेतागिरी बनाए रखने के लिए जमानत जब्त करवाने वाले, हाशिए पर धकेले गए, बिना कद वाले, जनाधार विहीन, जिद्दी, अक्खड़ हर तरह के लोग ऐसा दिखला रहे हैं कि जीतेंगे तो बस वही ! पर हताशा में जिस तरह विपक्ष बार-बार एक-जुट होने की दुहाई दे रहा है उससे आम जनता को यह संदेश भी मिल रहा है कि वर्तमान सरकार बरजोर है और उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता इसके अलावा वह 1977, 1989 व 1996 का इतिहास भी तो देख ही चुकी है, विफल गठबंधनों का ! आज मतदाता जागरूक है वह जानता है, समझता है और देख चुका है कि यदि केंद्र में एक ही दल की सरकार न हो तो क्या होता है !
आज भाजपा अगले साल के लिए निश्चित क्यूँ है ? इसके दो-तीन पुख्ता कारण हैं। अगले साल युवा पीढ़ी के करीब 10-11 करोड़ नए सदस्य पहली बार वोट डालेंगे। जरुरी नहीं है कि सभी भाजपा की तरफ ही जाएंगे पर आज के युवा की सोच बदल रही है, इनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिनके अभिभावकों ने भी युद्ध की विभीषिका नहीं देखी है और यह पीढ़ी अपने भविष्य को ले कर बहुत सचेत है। झूठे वायदों, प्रलोभनों या छद्म देश-भक्ति के झुनझुने से इन्हें बहलाया नहीं जा सकता। इन्हें ठोस प्रमाण चाहिए हर चीज का। देश प्रेम है पर उसकी अपनी जगह है, यह पीढ़ी किसी तरह का अंध-प्रेम नहीं पालती। उनके लिए आज वसुधैव कुटुम्ब्कम है, अपने भविष्य को संवारने के लिए वे कभी भी और कहीं भी जा सकते है। इसका एक अजीब छोटा सा, पर सोचने लायक उदाहरण पिछले दिनों मिला जब "फिल्म राजी" की नायिका को देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर जान जोखिम में डालने की बात अदिकांश युवा होती पीढ़ी के गले नहीं उतरी, उनको यह कोरी कल्पना लगी कि सिर्फ देश के लिए इतना बड़ा कदम कोई कैसे उठा सकता है ! अब इसके लिए किसे दोष दें, हमारी शिक्षा पद्द्यति को या परवरिश को ! एक और बात, वह पीढ़ी भी तेजी से ख़त्म होती जा रही है जो आज तक कांग्रेस के इतिहास और उसके योगदान से पूरी तरह वाकिफ थी और सोनियाजी के सादे पहिरावे और सर पर पड़े पल्लू से सदा प्रभावित हो उन्हें अपने बीच का ही मान उनके प्रति समर्पित रहती आई थी। इसके साथ सत्ता के लिए हर दल की खींच-तान तो अपनी जगह है ही। इसके साथ ही साफ़ दिख रहा है कि पूरा विपक्ष मोदी सरकार की कमियों, कमजोरियों का जितना चाहे हल्ला मचा ले जनता का वोट अभी भी मोदी जी को ही मिल रहा है।
आज देश में दो ही ऐसी राजनितिक पार्टियां हैं जिनका कुछ न कुछ आधार पूरे देश में है। इनमें भी पहले नंबर पर कांग्रेस ही है, जिसके समर्पित कार्यकर्त्ता देश के कोने-कोने में आस्था की अलख जगाए बैठे हैं। पर उसके अदूरदर्शी नेता इसका फायदा न उठा सिर्फ मोदी के पीछे पड़े हुए हैं ठीक उसी तरह जैसे इंदिरा जी को हराने के लिए विपक्ष ने जान लगा दी थी। हर तरह से उन्हें नीचा दिखने बदनाम करने की कोशिश की गयी थी, पर इंदिरा जी ने पलट कर उनकी भाषा में जवाब देने के बदले काम पर ध्यान दिया; नतीजा क्या रहा ! सहानुभूति की लहर चली, सकल अवाम उस अकेली महिला के पीछे जा खड़ा हुआ और उन्होंने जबरदस्त विजय प्राप्त की। आज भी वही हालात हैं सभी मानते हैं कि जैसे कभी इंदिरा गांधी के नाम पर वोट मिलता था, आज वोट मोदी जी के नाम पर पड़ता है। विपक्ष कितना भी झुठलाए पर अभी जितने भी सर्वे आ रहे हैं उनमें मोदी की लोकप्रियता की टक्कर में कोई नहीं दिखता। दूर-दूर तक ऐसा नजर नहीं आ रहा कि कोई राष्ट्रीय पार्टी भाजपा को चुनौती दे रही हो. जो राष्ट्रीय पार्टी उसे चुनौती देने वाली थी, उसका हाल तो सारा देश देख रहा है। जिसके पास कभी लोग आकर सरकार बनाने मदद मांगते थे, वही अब तीसरे-चौथे स्थान पर खड़ी हो, हर हाल में, किसी भी शर्त, पर खुद को गठबंधन में शामिल कर लेने की चिरौरी-विनती कर रही है।
ऐसा नहीं ही कि हर कसौटी पर वर्तमान सरकार खरी ही उतरी हो, अपने को एक अलग सी पार्टी का दंभ भरने वाले दल को उसकी महत्वकांक्षाओं, जिद और सदा अपराजेय रहने-दिखाने की कामना ने और दलों के बराबर ला खड़ा कर दिया है। बात फिर भी संभली हुई थी पर कर्नाटक के नाटक ने छवि धूमिल ही की है। पर चाहे जो हो 2019 की सूई अभी भी मोदी जी की तरफ ही झुकी दिखाई पड़ रही है। विपक्ष को यदि कुछ हासिल करना है, दौड़ में बने रहना है तो उसे अपनी लालसा, अपना दंभ, अपना अड़ियलपन छोड़ एकजुटता निभानी होगी नहीं तो फिर इतिहास तो अपने को सदा दोहराता ही रहा है !
आज भाजपा अगले साल के लिए निश्चित क्यूँ है ? इसके दो-तीन पुख्ता कारण हैं। अगले साल युवा पीढ़ी के करीब 10-11 करोड़ नए सदस्य पहली बार वोट डालेंगे। जरुरी नहीं है कि सभी भाजपा की तरफ ही जाएंगे पर आज के युवा की सोच बदल रही है, इनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिनके अभिभावकों ने भी युद्ध की विभीषिका नहीं देखी है और यह पीढ़ी अपने भविष्य को ले कर बहुत सचेत है। झूठे वायदों, प्रलोभनों या छद्म देश-भक्ति के झुनझुने से इन्हें बहलाया नहीं जा सकता। इन्हें ठोस प्रमाण चाहिए हर चीज का। देश प्रेम है पर उसकी अपनी जगह है, यह पीढ़ी किसी तरह का अंध-प्रेम नहीं पालती। उनके लिए आज वसुधैव कुटुम्ब्कम है, अपने भविष्य को संवारने के लिए वे कभी भी और कहीं भी जा सकते है। इसका एक अजीब छोटा सा, पर सोचने लायक उदाहरण पिछले दिनों मिला जब "फिल्म राजी" की नायिका को देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर जान जोखिम में डालने की बात अदिकांश युवा होती पीढ़ी के गले नहीं उतरी, उनको यह कोरी कल्पना लगी कि सिर्फ देश के लिए इतना बड़ा कदम कोई कैसे उठा सकता है ! अब इसके लिए किसे दोष दें, हमारी शिक्षा पद्द्यति को या परवरिश को ! एक और बात, वह पीढ़ी भी तेजी से ख़त्म होती जा रही है जो आज तक कांग्रेस के इतिहास और उसके योगदान से पूरी तरह वाकिफ थी और सोनियाजी के सादे पहिरावे और सर पर पड़े पल्लू से सदा प्रभावित हो उन्हें अपने बीच का ही मान उनके प्रति समर्पित रहती आई थी। इसके साथ सत्ता के लिए हर दल की खींच-तान तो अपनी जगह है ही। इसके साथ ही साफ़ दिख रहा है कि पूरा विपक्ष मोदी सरकार की कमियों, कमजोरियों का जितना चाहे हल्ला मचा ले जनता का वोट अभी भी मोदी जी को ही मिल रहा है।
आज देश में दो ही ऐसी राजनितिक पार्टियां हैं जिनका कुछ न कुछ आधार पूरे देश में है। इनमें भी पहले नंबर पर कांग्रेस ही है, जिसके समर्पित कार्यकर्त्ता देश के कोने-कोने में आस्था की अलख जगाए बैठे हैं। पर उसके अदूरदर्शी नेता इसका फायदा न उठा सिर्फ मोदी के पीछे पड़े हुए हैं ठीक उसी तरह जैसे इंदिरा जी को हराने के लिए विपक्ष ने जान लगा दी थी। हर तरह से उन्हें नीचा दिखने बदनाम करने की कोशिश की गयी थी, पर इंदिरा जी ने पलट कर उनकी भाषा में जवाब देने के बदले काम पर ध्यान दिया; नतीजा क्या रहा ! सहानुभूति की लहर चली, सकल अवाम उस अकेली महिला के पीछे जा खड़ा हुआ और उन्होंने जबरदस्त विजय प्राप्त की। आज भी वही हालात हैं सभी मानते हैं कि जैसे कभी इंदिरा गांधी के नाम पर वोट मिलता था, आज वोट मोदी जी के नाम पर पड़ता है। विपक्ष कितना भी झुठलाए पर अभी जितने भी सर्वे आ रहे हैं उनमें मोदी की लोकप्रियता की टक्कर में कोई नहीं दिखता। दूर-दूर तक ऐसा नजर नहीं आ रहा कि कोई राष्ट्रीय पार्टी भाजपा को चुनौती दे रही हो. जो राष्ट्रीय पार्टी उसे चुनौती देने वाली थी, उसका हाल तो सारा देश देख रहा है। जिसके पास कभी लोग आकर सरकार बनाने मदद मांगते थे, वही अब तीसरे-चौथे स्थान पर खड़ी हो, हर हाल में, किसी भी शर्त, पर खुद को गठबंधन में शामिल कर लेने की चिरौरी-विनती कर रही है।
ऐसा नहीं ही कि हर कसौटी पर वर्तमान सरकार खरी ही उतरी हो, अपने को एक अलग सी पार्टी का दंभ भरने वाले दल को उसकी महत्वकांक्षाओं, जिद और सदा अपराजेय रहने-दिखाने की कामना ने और दलों के बराबर ला खड़ा कर दिया है। बात फिर भी संभली हुई थी पर कर्नाटक के नाटक ने छवि धूमिल ही की है। पर चाहे जो हो 2019 की सूई अभी भी मोदी जी की तरफ ही झुकी दिखाई पड़ रही है। विपक्ष को यदि कुछ हासिल करना है, दौड़ में बने रहना है तो उसे अपनी लालसा, अपना दंभ, अपना अड़ियलपन छोड़ एकजुटता निभानी होगी नहीं तो फिर इतिहास तो अपने को सदा दोहराता ही रहा है !
5 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-05-2017) को "उफ यह मौसम गर्मीं का" (चर्चा अंक-2982) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया शास्त्री जी, स्नेह बना रहे
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन रास बिहारी बोस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
हर्ष जी, आत्मीयता ऐसे ही बनी रहे
सुमन जी, कुछ अलग सा पर सदा स्वागत है
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