इस नाम के पड़ने की वजह का कारण खोजने पर पता चला कि किसी समय यहां मछली पकड़ने में उपयोग होने वाली "डिंगा" यानी नौकाओं की मरम्मत की जाती थी। जिसके लिए उन्हें उल्टा कर उनके पेंदे के बाहरी हिस्से में कोलतार लगा सूखने के लिए छोड़ दिया जाता था। फिर उनको दुरुस्त कर काम लायक बनाया जाता था। इसलिए उस इलाके में 1970 के दशक तक सैंकड़ों डींगियाँ या डोंगियां उल्टी पड़ी रहती थीं, इसीलिए इस इलाके का नाम उल्टो डिंगा पड़ गया था जो समय के साथ उल्टो डांगा और फिर हिंदी में उल्टा डांगा हो गया। कुछ सालों पहले तक रात को लोग इधर आने से झिझकते थे, पर आज यह शहर के व्यस्ततम और समृद्ध इलाकों में से एक है ...............!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
आज अखबार में किसी खबर के साथ एक अनोखा नाम जुड़ा देख बहुत कुछ पुराना याद आ गया। जिंदगी का एक बड़ा भाग बंगाल में बीतने के कारण आज कई ऐसे नाम जेहन में आने लगे जिनसे रोज ही आमना-सामना हुआ करता था पर वे अजीब नहीं लगे थे कभी ! शायद रोज-रोज देखते सुनते आदत सी पड़ गयी थी। चूँकि वर्षों स्कूल-कालेज फिर रोजगार के लिए लोकल ट्रेन ने अजीबो-गरीब स्टेशनों से परिचित करवाया सो उन्हीं का बखान पहले। अब तो भीड़-भाड़ बढ़ने से रेलवे ने और महानगरों की तरह कई जगहों से गाड़ियां चलाना शुरू कर दिया है पर तब के कलकत्ता के दो प्रमुख स्टेशन हुआ करते थे; पहला - हावड़ा; दुसरा - सियालदह। अब जब मुखियों के नाम ही ऐसे थे तो उनके पारिवारिक सदस्यों के नाम तो अजीब होने ही थे, लिलुआ, बेलूर, बाली, दमदम, बेलघरिया, खरदा इत्यादि, जो आज तक वैसे ही चले आ रहे हैं।
ऐसा ही एक स्टेशन है "उल्टाडांगा जंक्शन" जो उत्तरी चौबीस परगना या बैरकपुर की तरफ जाने पर सियालदह के बाद पहला स्टेशन है, अब इसका नाम बदल कर विधान नगर रोड हो जाने के बावजूद यह पुराने नाम से ही ज्यादा जाना जाता है। उस समय यह नाम कभी अजीब नहीं लगा था पर अब ध्यान देने पर विचित्र लगता है ! आज यह कोलकाता के सबसे भीड़-भाड़ वाली जगहों में से एक है। इसका स्टेशन सड़क से करीब तीस फीट ऊपर है और इसके पास नीचे से कोलकाता की सर्कुलर रेल गुजरती है इसीलिए यह जंक्शन कहलाता है। यह शहर के उत्तर-पूर्वी इलाके में, साल्ट-लेक के पास स्थित है।
उल्टा डांगा जैसे नाम के पड़ने की वजह का कारण खोजने पर पता चला कि किसी समय यहां मछली पकड़ने में उपयोग होने वाली "डिंगा" यानी नौकाओं की मरम्मत की जाती थी। जिसके लिए उन्हें उल्टा कर उनके पेंदे के बाहरी हिस्से में कोलतार लगा सूखने के लिए छोड़ दिया जाता था। फिर उनको दुरुस्त कर काम लायक बनाया जाता था। इसलिए उस इलाके में 1970 के दशक तक सैंकड़ों डींगियाँ या डोंगियां उल्टी पड़ी रहती थीं, इसीलिए इस इलाके का नाम उल्टो डिंगा पड़ गया था जो समय के साथ उल्टो डांगा और फिर हिंदी में उल्टा डांगा हो गया। अब तो यह कोलकाता के समृद्ध इलाकों में से एक है हालांकि अब इसका नाम बदल कर विधान नगर रोड कर दिया गया है पर यह अभी भी अपने पुराने नाम से ही ज्यादा जाना जाता है। पहले यहां इक्का-दुक्का लोकल गाड़ियां ही रुका करती थीं पर अब लोग इसका इस्तमाल मुख्य स्टेशन सियालदह से भी ज्यादा करने लगे हैं क्योंकि अब यहां से कोलकाता के किसी भी भाग में जाना ज्यादा सुविधाजनक हो गया है बनिस्पत मुख्य स्टेशन के।
उल्टा डांगा कोई अपने आप में इकलौता अनोखा नाम नहीं है, यदि आप देश के विभिन्न भागों में घूमने-फिरने निकलें, चाहे रेल से या सड़क मार्ग से और आप उत्सुकता से राह में आने वाली जगहों को देख रहे हों तो रास्ते में आपको ऐसे-ऐसे नाम देखने-पढ़ने को मिलेंगे कि आप हैरत में पड़ जाएंगे कि यह कैसा नाम है ? हम में से ज्यादातर लोग सफर करते हुए ऐसे नाम पढते हैं, चौंकते हैं और मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाते है।
#हिन्दी_ब्लागिंग
आज अखबार में किसी खबर के साथ एक अनोखा नाम जुड़ा देख बहुत कुछ पुराना याद आ गया। जिंदगी का एक बड़ा भाग बंगाल में बीतने के कारण आज कई ऐसे नाम जेहन में आने लगे जिनसे रोज ही आमना-सामना हुआ करता था पर वे अजीब नहीं लगे थे कभी ! शायद रोज-रोज देखते सुनते आदत सी पड़ गयी थी। चूँकि वर्षों स्कूल-कालेज फिर रोजगार के लिए लोकल ट्रेन ने अजीबो-गरीब स्टेशनों से परिचित करवाया सो उन्हीं का बखान पहले। अब तो भीड़-भाड़ बढ़ने से रेलवे ने और महानगरों की तरह कई जगहों से गाड़ियां चलाना शुरू कर दिया है पर तब के कलकत्ता के दो प्रमुख स्टेशन हुआ करते थे; पहला - हावड़ा; दुसरा - सियालदह। अब जब मुखियों के नाम ही ऐसे थे तो उनके पारिवारिक सदस्यों के नाम तो अजीब होने ही थे, लिलुआ, बेलूर, बाली, दमदम, बेलघरिया, खरदा इत्यादि, जो आज तक वैसे ही चले आ रहे हैं।
ऐसा ही एक स्टेशन है "उल्टाडांगा जंक्शन" जो उत्तरी चौबीस परगना या बैरकपुर की तरफ जाने पर सियालदह के बाद पहला स्टेशन है, अब इसका नाम बदल कर विधान नगर रोड हो जाने के बावजूद यह पुराने नाम से ही ज्यादा जाना जाता है। उस समय यह नाम कभी अजीब नहीं लगा था पर अब ध्यान देने पर विचित्र लगता है ! आज यह कोलकाता के सबसे भीड़-भाड़ वाली जगहों में से एक है। इसका स्टेशन सड़क से करीब तीस फीट ऊपर है और इसके पास नीचे से कोलकाता की सर्कुलर रेल गुजरती है इसीलिए यह जंक्शन कहलाता है। यह शहर के उत्तर-पूर्वी इलाके में, साल्ट-लेक के पास स्थित है।
स्टेशन का विहंगम दृश्य, पीछे साल्ट लेक का इलाका |
प्लेटफार्म |
उल्टा डांगा जैसे नाम के पड़ने की वजह का कारण खोजने पर पता चला कि किसी समय यहां मछली पकड़ने में उपयोग होने वाली "डिंगा" यानी नौकाओं की मरम्मत की जाती थी। जिसके लिए उन्हें उल्टा कर उनके पेंदे के बाहरी हिस्से में कोलतार लगा सूखने के लिए छोड़ दिया जाता था। फिर उनको दुरुस्त कर काम लायक बनाया जाता था। इसलिए उस इलाके में 1970 के दशक तक सैंकड़ों डींगियाँ या डोंगियां उल्टी पड़ी रहती थीं, इसीलिए इस इलाके का नाम उल्टो डिंगा पड़ गया था जो समय के साथ उल्टो डांगा और फिर हिंदी में उल्टा डांगा हो गया। अब तो यह कोलकाता के समृद्ध इलाकों में से एक है हालांकि अब इसका नाम बदल कर विधान नगर रोड कर दिया गया है पर यह अभी भी अपने पुराने नाम से ही ज्यादा जाना जाता है। पहले यहां इक्का-दुक्का लोकल गाड़ियां ही रुका करती थीं पर अब लोग इसका इस्तमाल मुख्य स्टेशन सियालदह से भी ज्यादा करने लगे हैं क्योंकि अब यहां से कोलकाता के किसी भी भाग में जाना ज्यादा सुविधाजनक हो गया है बनिस्पत मुख्य स्टेशन के।
उल्टा डांगा कोई अपने आप में इकलौता अनोखा नाम नहीं है, यदि आप देश के विभिन्न भागों में घूमने-फिरने निकलें, चाहे रेल से या सड़क मार्ग से और आप उत्सुकता से राह में आने वाली जगहों को देख रहे हों तो रास्ते में आपको ऐसे-ऐसे नाम देखने-पढ़ने को मिलेंगे कि आप हैरत में पड़ जाएंगे कि यह कैसा नाम है ? हम में से ज्यादातर लोग सफर करते हुए ऐसे नाम पढते हैं, चौंकते हैं और मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाते है।
देश भर में हजारों-लाखों ऐसे विचित्र नाम हैं, जगहों के, कि बाहरी इंसान इन्हें पहली बार देख-सुन कर सोचता ही रह जाता है कि ऐसा क्यों ? ऐसे नामों में इंसानी रिश्तों के अलावा जानवरों के नाम तक का उपयोग किया हुआ मिलता है। जैसे भैंसा गांव, गुड़ गांव, काला बकरा, बिल्ली जंक्शन, कुत्ता, दीवाना, छाता, लूला नगर, सिंगापूर, झंझारपुर, लिलुआ, बेलूर, रिसरा, बैंडल, बाप, साली, नाना, जेठानी इत्यादि, इत्यादि, इत्यादि। यदि ऐसे नामों की लिस्ट बनाई जाए तो पता नहीं कितने पन्नों का ग्रंथ बन कर तैयार हो जाए ! कुछ नाम तो ऐसे भदेस हैं जिनको लिस्ट में संकोचवश शामिल भी नहीं किया जा सकता। पता नहीं वहाँ के लोग ऐसे नामों को बदलवाने की चेष्टा क्यों नहीं करते हैं ?
ऐसा नहीं है कि ऐसे नाम बड़े शहरों से दूर-दराज इलाकों में ही हों ! आप अपने शहर या इलाके में भी खोजेंगे तो आप को दसियों ऐसे नाम मिल जाएंगे, पर फर्क यही है कि रोज-रोज उनसे दो-चार होते रहने के कारण वे हमें अजीब से नहीं लगते, हमें उनकी आदत पड़ जाती है।
ऐसे ही किसी अनोखे और मशहूर नाम के साथ फिर कभी.......... !
ऐसे ही किसी अनोखे और मशहूर नाम के साथ फिर कभी.......... !
4 टिप्पणियां:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन हिंदी पत्रकारिता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-06-2018) को "साला-साली शब्द" (चर्चा अंक-2988) (चर्चा अंक 2731) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हर्ष जी, आपका और ब्लॉग बुलेटिन का सदा आभार रहेगा
शास्त्री जी, ऐसे ही स्नेह बना रहे
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