मेरे नाम में आंकड़े जरूर "36" के हैं पर प्रेम से भरे मेरे मन की यही इच्छा है कि मैं सारे देश में एक ऐसे आदर्श प्रदेश के रूप में जाना जाऊं, जहां किसी के साथ भेद-भाव नहीं बरता जाता हो, जहां किसी को अपने परिवार को पालने में बेकार की जद्दोजहद नहीं करनी पडती हो, जहां के लोग सारे देशवासियों को अपने परिवार का सदस्य समझें। जहां कोई भूखा न सोता हो, जहां तन ढकने के लिए कपडे और सर छुपाने के लिए छत सब को मुहैय्या हो। मेरा यह सपना दुर्लभ भी नहीं है। यहां के रहवासी हर बात में सक्षम हैं। यूंही उन्हें #छत्तीसगढिया_सबले_बढिया का खिताब हासिल नहीं हुआ है .....................................
#हिन्दी_ब्लागिंग
से किशोरावस्था में पदार्पण करने का साल। कुछ कर गुजरने का साल, सपनों को हकीकत में बदलने के लिए जमीन तैयार करने का साल है। आज सुबह से ही आपकी शुभकामनाएं, प्रेम भरे संदेश और भावनाओं से पगी बधाईयां पा कर अभिभूत हूं। मुझे याद रहे ना रहे पर आप सब को मेरा जन्म-दिन याद रहता है यह मेरा सौभाग्य है। किसी देश या राज्य के लिए सत्रह साल समय का बहुत बड़ा काल-खंड नहीं होता। पर मुझे संवारने-संभालने, मेरे रख-रखाव, मुझे दिशा देने वालों ने इतने कम समय में ही मेरी पहचान देश ही नहीं विदेशों में भी बना कर एक मिसाल कायम कर दी है।मुझे इससे कोई मतलब नहीं है कि मेरी बागडोर किस पार्टी के हाथ में है, जो भी यहां की जनता की इच्छा से राज सँभालता है उसका लक्ष्य एक ही होना चाहिए कि छत्तीसगढ के वासी अमन-चैन के साथ, एक दूसरे के सुख-दुख के साथी बन, यहां बिना किसी डर, भय, चिंता या अभाव के अपना जीवन यापन कर सकें। मेरा सारा प्रेम, लगाव, जुडाव सिर्फ और सिर्फ यहां के बाशिंदों के साथ ही है।
वन-संपदा, खनिज, धन-धान्य से परिपूर्ण मेरी रत्न-गर्भा धरती का इतिहास दक्षिण-कौशल के नाम से रामायण और महाभारत काल में भी जाना जाता रहा है। वैसे यहां एक लंबे समय तक कल्चुरी राज्यवंश का आधिपत्य रहा है। पर मध्य प्रदेश परिवार से जुडे रहने के कारण मेरी स्वतंत्र छवि नहीं बन पाई थी और देश के दूसरे हिस्सों के लोग मेरे बारे में बहुत कम जानकारी रखते थे। आप को भी याद ही होगा जब मुझे मध्य प्रदेश से अलग अपनी पहचान मिली थी तो देश के दूसरे भाग में रहने वाले लोगों को मेरे बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, जिसके कारण देश के विभिन्न हिस्सों में मेरे प्रति अभी भी कई तरह की भ्रांतियां पनपी हुई हैं। अभी भी लोग मुझे एक पिछडा प्रदेश और यहां के आदिवासियों के बारे में अधकचरी जानकारी रखते है। इस धारणा को बदलने में समय तो लगा, मेहनत करनी पड़ी, जितने भी साधन उपलब्ध थे उनका उचित प्रयोग किया गया, धीरे-धीरे तस्वीर बदलने लगी जिसका उल्लेख यहां से बाहर जाने वालों से या बाहर से यहां घूमने आने वाले लोगों की जुबानी देशवासियों में होने लगा।अब यहां से बाहर जाने वालों से या बाहर से यहां घूमने आने वाले लोगों को मुझे देखने-समझने का मौका मिलता है तो उनकी आंखें खुली की खुली रह जाती हैं। उन्हें विश्वास ही नहीं होता कि युवावस्था के द्वार पर खड़ा मैं, इतने कम समय में, सीमित साधनों के और ढेरों अडचनों के बावजूद इतनी तरक्की कर पाया हूं। वे मुझे देश के सैंकडों शहरों से बीस पाते हैं। मुझे संवारने-संभालने, मेरे रख-रखाव, मुझे दिशा देने वालों ने इतने कम समय में ही मेरी पहचान देश ही नहीं विदेशों में भी बना कर एक मिसाल कायम कर दी है।
कईयों की जिज्ञासा होती है मेरी पहचान अभी सिर्फ सत्रह सालों की है उसके पहले क्या था? कैसा था? तो उन सब को नम्रता पूर्वक यही कहना चाहता हूं कि जैसा था वैसा हूं यहीं था यहीं हूं। फिर भी सभी की उत्सुकता शांत करने के लिए कुछ जानकारी बांट ही लेता हूं। सैंकडों सालों से मेरा विवरण इतिहास में मिलता रहा है। मुझे दक्षिणी कोसल के रूप में जाना जाता रहा है। रामायण काल में मैं माता कौशल्या की भूमि के रूप में ख्यात था। मेरा परम सौभाग्य है कि मैं किसी भी तरह ही सही प्रभू राम के नाम से जुडा रह पाया। कालांतर से नाम बदलते रहे, अभी की वर्तमान संज्ञा "छत्तीसगढ" के बारे में विद्वानों की अलग-अलग राय है। कुछ लोग इसका कारण उन 36 किलों को मानते हैं जो मेरे अलग-अलग हिस्सों में कभी रहे थे, पर आज उनके अवशेष नहीं मिलते। कुछ जानकारों का मानना है कि यह नाम कल्चुरी राजवंश के चेडीसगढ़ का ही अपभ्र्ंश है।
भारतीय गणराज्य में 31 अक्टूबर 1999 तक मैं मध्य प्रदेश के ही एक हिस्से के रूप में जाना जाता था। पर अपने लोगों के हित में, उनके समग्र विकास हेतु मुझे अलग राज्य का दर्जा प्राप्त हो गया। इस मुद्दे पर मंथन तो 1970 से ही शुरु हो गया था, पर गंभीर रूप से इस पर विचार 1990 के दशक में ही शुरु हो पाया जिसका प्रचार 1996 और 1998 के चुनावों में अपने शिखर पर रहा जिसके चलते अगस्त 2000 में मेरे निर्माण का रास्ता साफ हो सका। इस ऐतिहासिक घटना का सबसे उज्जवल पक्ष यह था कि इस मांग और निर्माण के तहत किसी भी प्रकार के दंगे-फसाद, विरोधी रैलियों या उपद्रव इत्यादि के लिए कोई जगह नहीं थी।हर काम शांति, सद्भावना, आपसी समझ और गौरव पूर्ण तरीके से संपन्न हुआ। इसका सारा श्रेय यहां के अमन-पसंद, भोले-भाले, शांति-प्रिय लोगों को जाता है जिन पर मुझे गर्व है। आज मेरे सारे कार्यों का संचालन मेरी "राजधानी रायपुर" से संचालित होता है। समय के साथ इस शहर में तो बदलाव आया ही है पर राजधानी होने के कारण बढती लोगों की आवाजाही, नए कार्यालय, मंत्रिमंडलों के काम-काज की अधिकता इत्यादि को देखते हुए नए रायपुर का निर्माण भी शुरू हो चुका है। अभी की राजधानी रायपुर से करीब बीस की. मी. की दूरी पर यह मलेशिया के "हाई-टेक" शहर पुत्रजया की तरह निर्माणाधीन है। जिसके पूर्ण होने पर मैं गांधीनगर, चंडीगढ़ और भुवनेश्वर जैसे व्यवस्थित और पूरी तरह प्लान किए गए शहरों की श्रेणी में शामिल हो जाऊंगा।
मुझे कभी भी ना तो राजनीति से कोई खास लगाव रहा है नाहीं ऐसे दलों से। मेरा सारा प्रेम, लगाव, जुडाव सिर्फ और सिर्फ यहां के बाशिंदों के साथ ही है। कोई भी राजनीतिक दल आए, मेरी बागडोर किसी भी पार्टी के हाथ में हो उसका लक्ष्य एक ही होना चाहिए कि छत्तीसगढ के वासी अमन-चैन के साथ, एक दूसरे के सुख-दुख के साथी बन, यहां बिना किसी डर, भय, चिंता या अभाव के अपना जीवन यापन कर सकें। मेरे नाम में आंकड़े जरूर "36" के हैं पर प्रेम भरे मेरे मन की यही इच्छा है कि मैं सारे देश में एक ऐसे आदर्श प्रदेश के रूप में जाना जाऊं, जो देश के किसी भी कोने से आने वाले देशवासी का स्वागत खुले मन और बढे हाथों से करने को तत्पर रहता है। जहां किसी के साथ भेद-भाव ना बरता जाता, जहां किसी को अपने परिवार को पालने में बेकार की जद्दोजहद नहीं करनी पडती, जहां के लोग सारे देशवासियों को अपने परिवार का समझ, हर समय, हर तरह की सहायता प्रदान करने को तत्पर रहते हैं। जहां कोई भूखा नहीं सोता, जहां तन ढकने के लिए कपडे और सर छुपाने के लिए छत मुहैय्या करवाने में वहां के जन-प्रतिनिधि सदा तत्पर रहते हैं। मेरा यह सपना कोई बहुत दुर्लभ भी नहीं है क्योंकि यहां के रहवासी हर बात में सक्षम हैं। यूंही उन्हें "छत्तीसगढिया सबसे बढिया" का खिताब हासिल नहीं हुआ है।
मेरे साथ ही भारत में अन्य दो राज्यों, उत्तराखंड तथा झारखंड भी अस्तित्व में आए हैं और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हैं। मेरी तरफ से आप उनको भी अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करें, मुझे अच्छा लगेगा। फिर एक बार आप सबको धन्यवाद देते हुए मेरी एक ही इच्छा है कि मेरे प्रदेश वासियों के साथ ही मेरे देशवासी भी असहिष्णुता छोड़ एक साथ प्रेम, प्यार और भाईचारे के साथ रहें। हमारा देश उन्नति करे, विश्व में हम सिरमौर हों।
जयहिंद।
@सभी चित्र अंतरजाल से, साभार
14 टिप्पणियां:
वाह्ह...गगन जी बहुत सुंदर,ज्ञानवर्द्धक जानकारी,बहुत सुंदर तस्वीरों के साथ।
बहुत आभार आपका जानकारी साझा करने के लिए।
शुभ कामनाएँ अट्ठारहवीं सालगिरह पर
सादर
यशोदा छत्तिसगढ़िया
नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 02-11-2017 को प्रातः 4:00 बजे प्रकाशनार्थ 839 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
श्वेता जी,
हार्दिक धन्यवाद
यशोदा जी,
सदा स्वागत है
रवीन्द्र जी,
स्नेह बना रहे
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 87वां जन्म दिवस - अब्दुल कावी देसनवी - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
हर्ष जी,
हार्दिक आभार
वाकई, सबसे बढ़िया, छत्तीसगढ़िया। बधाई! बधाई!! बधाई!!!
बहुत ही सराहनीय लेख ! क्या ख़ूब मानवीयकरण किया है एक दिलचस्प यात्रा छत्तीसगढ़। वाह !
विश्वमोहन जी,
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है
ध्रुव जी,
सदा स्वागत है
एक सुंदर ब्लॉग का बहुत ही सुंदर लेख। बहुत उम्दा। wahh
अमित जी,
हार्दिक धन्यवाद
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