वैज्ञानिकों और यहां के कर्मचारियों की अथक मेहनत और लगन का ही परिणाम है कि आपको यहां पौधों की ऐसी-ऐसी जातियां-प्रजातियां फलते-फ़ूलते मिलेंगी जिनका आपने या तो नाम ही नहीं सुना होगा या फिर नाम ही सुना होगा। कुछ तो ऐसी भी प्रजातियां हैं जिनके पूर्वज लाखों-लाख साल पहले डायनासॉर्स के जमाने में भी अस्तित्व में थे ....
आजकल लगता है कि शरीर धीरे-धीरे शंटिंग करते, माल गाडी के डिब्बे जैसा होता जा रहा है। इंजिन आ कर धकेल दे तो चलते चले जाओ नहीं तो लाख इच्छा होते हुए भी कहीं जाने का समय यूँ ही टल जाता है। बहुत दिनों से, यह पढने के बाद कि, दिल्ली से लगे यू. पी. के #नोएडा इलाके में बने #बॉटैनिकलगार्डेन में पौधों की अद्भुत किस्में हैं, वहां जाने की इच्छा थी। पर सीधी मेट्रो होने के बावजूद बस ऐसे ही समय निकलता गया ! पर अब जब मौसम ने कोंचा कि भइया देख लो, हफ्ते-दस दिन के बाद मत कहना कि धूप तेज हो गयी है ! तो बिना इंजिन का इंतजार किए, जी को मना, निकल लिया गया।
|
मेट्रो स्टेशन |
मेट्रो के बॉटैनिकल गार्डेन स्टेशन से #बी.जी.आई.आर. यानी
BOTANICAL GARDEN OF INDIAN REPUBLIC नामक इस वनस्पति उद्यान का मुख्य द्वार बमुश्किल सौ गज की दूरी पर है। जबकि मेट्रो रेल इसके ऊपर से ही आगे जाती है।
|
महऋषि चरक प्रतिमा |
नोएडा के सेक्टर
"38 A" में करीब
160 एकड़ में फैले इस बाग़ पर
2002 में काम शुरू हुआ था। जो कि इस इलाके के मौसम, जलवायु व परिवेश को देखते हुए एक भागीरथ या दुस्साहसिक प्रयत्न ही कहा जाएगा। वैज्ञानिकों और यहां के कर्मचारियों की अथक मेहनत और लगन का ही परिणाम है कि आपको यहां पौधों की ऐसी-ऐसी जातियां-प्रजातियां फलते-फ़ूलते मिलेंगी जिनका आपने या तो नाम ही नहीं सुना होगा या फिर नाम ही सुना होगा। कुछ तो ऐसी भी प्रजातियां हैं जिनके पूर्वज लाखों-लाख साल पहले डायनासॉर्स के जमाने में भी अस्तित्व में थे जैसे
Skeleton fork, Bare naked, Horse Tail इत्यादि।
|
कल्पवृक्ष |
|
सफ़ेद चंदन का पेड़ |
|
लाखों साल पहले के फर्न का वंशज, हॉर्स टेल |
|
कदली पादप |
उद्यान को कई भागों में बाँट कर उसी हिसाब से संरक्षण, रोपण तथा संवर्धन किया गया है। जिनमें फल, फूल, औषधि और प्राचीन पौधों की देखभाल-सार-संभाल की जाती है। यहीं यदि बेशकीमती चंदन के पेड़ मिलेंगे तो कल्पवृक्ष जैसा अनमोल और दुर्लभ वृक्ष भी दिखाई देगा, यदि 15 से 20 फुट का केले का पादप दिखेगा तो वर्षों-वर्ष पुरानी वंशावली वाला कैक्टस भी नज़र आ जाएगा। सिर्फ यहीं आपको बिलकुल अंजान, दुर्लभ हरे रंग के गुलाब को देखने का सुयोग भी मिल पाएगा। सही पढ़ा "हरे रंग का गुलाब" ! जिसे पौधों की दुनिया में Rosa Chinensis Viridiflora के नाम से जाना जाता है। कहते हैं इसकी खोज कोई 300-350 वर्ष पहले हुई थी। इस असाधारण पौधे में पंखुडियों की जगह कली के बाहर हरे रंग की पत्तियों की संरचना होती है। सुंगध भी गुलाब जैसी भीनी न होकर कुछ तीखी होती है।
|
हरे गुलाब का पौधा |
जैसा कि मुझे बताया गया यहां तकरीबन 250 ऐसे औषधीय पौधों पर अन्वेषण किया जा रहा
है जिनका उल्लेख हमारे प्राचीन ग्रन्थों में मिलता हैं और इनसे मनुष्य की करीब आठ श्रेणियों की बिमारियों को ठीक करने में सहायता मिल सकती है। फिलहाल पूरे देश से तरह-तरह के सैकड़ों जातियों-प्रजातियों के पौधे यहां ला उन्हें रोपित कर उनकी देख-भाल की जा रही है और भविष्य में एक वृहदाकार मानव देह का खाका बना, उसके हर अंग में वहां होने वाली बिमारी को ठीक करने वाले पौधे लगाए जाएंगे जिससे लोगों का ज्ञान बढ़ सके। कुछ ऐसा ही उद्यान से अंदर आते ही कुछ दूरी पर भारत का 68' x 61.4' का एक नक्शा बनाया गया है जिसमें हर प्रदेश को विभिन्न रंग के पौधों से अलग-अलग दर्शाया गया है। पर एक कमी रह गयी है कि उसकी स्थिति और बनावट की वजह से उसकी तस्वीर आसानी से नहीं खींची जा सकती।
|
उद्यान के ऑफिस से प्राप्त पौधों द्वारा बनाया गया नक्शा |
उस दिन धूप तो तेज थी ही वहां कोई सेमीनार भी चल रहा था, जिससे किसी जानकार का साथ नहीं मिल पा रहा था, गार्डों की जानकारी भी सिमित थी। बीते ठंड के मौसम के कारण पूरे उद्यान में जैसे सूखा पसरा पड़ा था पर मुख्य भाग को बड़े जतन से सँभाला जा रहा है यह साफ़ दिखलाई पड़ रहा था। कुछ देर बाद वहीँ के एक सज्जन श्री मानवर सिंह ने वहां के प्रमुख "केयर टेकर" श्री राजपाल सिंह से मिलवाया जिन्होंने घूम-घूम कर तरह-तरह के पौधों की जानकारी से अवगत करवाया। उनका तहे-दिल से शुक्रगुजार हूँ।
देश के अन्य पुराने वनस्पति उद्यानो से तो अभी इसकी तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि यह बाग़ अभी अपने शैशव काल में ही है, जिसे विकसित होने में दसियों वर्षों का सहयोग चाहिए होगा। उस पर विपरीत जलवायू भी इसकी बढ़त में कहीं ना कहीं अड़चन तो डालेगी ही पर यहां कार्यरत समर्पित कर्मचारी-गण हर परिस्थिति का सामना करने को तत्पर दिखते हैं जिससे साफ़ मालुम पड़ता है कि आने वाले समय में यह उद्यान अपने-आप में एक खासियत होगा।
15 टिप्पणियां:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जमशेद जी टाटा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
सुन्दर प्रस्तुति।
हर्षवर्धन जी, आभार
सुशील जी, स्नेह बना रहे
सुन्दर प्रस्तुति और चित्र.सार्थक प्रयास करने वालों को साधुवाद
Onkar ji, sadaa swagat hai
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (05-03-2017) को
"खिलते हैं फूल रेगिस्तान में" (चर्चा अंक-2602)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
शास्त्री जी, हार्दिक धन्यवाद
चित्रों के साथ बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
Jayanti ji, sadaa swagat hai
वाह बहुत बढ़िया
मानव जी, हार्दिक थन्यवाद
सुमन जी, सदा स्वागत है
वाह !!
बहुत सुन्दर...।
मेरा लिंक है http://eknayisochblog.blogspot.in
सुधा जी, "कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है
एक टिप्पणी भेजें