गुरुवार, 8 सितंबर 2016

हजार सावन झेल चुकी, गणेश प्रतिमा

इस क्षेत्र में एक कैलाश गुफा भी है, मान्यता है कि परशूरामजी तथा गणेशजी का युद्ध इसी जगह हुआ था, लगता है उसी प्रसंग को स्थाई करने के लिए इस प्रतिमा की रचना की गयी होगी। पहाड़ी के नीचे के गांव का नाम फरसपाल होना भी इस मान्यता की पुष्टि करता है

हमारा देश इतनी विविधताओं से भरा पड़ा है कि उनको देखने समझने में वर्षों लग जाएं। इसका प्रमाण हैं वे लाखों पर्यटक जो विदेशों में हमारे बारे में किए जाते दुष्प्रचारों या फैली हुई भ्रांतियों के बावजूद भारत आने का लोभ संवरण नहीं कर सकते।  हजारों ऐसी अनजानी-अनदेखी विरासतें, धरोहरें, सम्पदाएँ बिखरी पड़ी हैं जिनकी खोज और जानकारी पाना अभी भी बाकी है। 

ऐसा ही एक स्थान है, छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के दंतेवाड़ा से करीब  25-30 की. मी. की दूरी पर ढोलकल नामक जगह पर, घने जंगलों में करीब तीन हजार फीट ऊँची एक पहाड़ी के सिरे पर स्थापित, छह फिट की ग्रेनाइट पत्थर से तराशी गयी भगवान् गणेश की मूर्ति। ऐसी मान्यता है कि दसवीं शताब्दी में छिंदक नागवंशी राजाओं द्वारा इस  कलात्मक प्रतिमा की स्थापना की गयी थी। ऐसा इसलिए भी लगता है क्योंकि मूर्ति में गणेश जी के उदर पर नाग चिन्ह उकेरा गया है।  



तकरीबन हजार साल पुरानी इस प्रतिमा में भगवान गणेश के ऊपरी दाएं हाथ में फरसा तथा बाएं हाथ में टूटा हुआ एक दांत दर्शाया गया है और निचला दायां हाथ अभय मुद्रा में उठा हुआ है तथा बाएं हाथ में मोदक धारण किए हुए है। बाएं हाथ में टूटा हुआ दांत गणेश जी तथा भगवान परशुराम युद्ध का स्मरण करवाता है। जिसमें परशुराम जी के फरसे से गणेश जी का दांत कट गया था। इस क्षेत्र में एक कैलाश गुफा भी है, मान्यता है कि वह युद्ध इसी जगह हुआ था, लगता है उसी प्रसंग को स्थाई करने के लिए इस प्रतिमा की रचना की गयी होगी। पहाड़ी के नीचे के गांव का नाम फरसपाल होना भी इस मान्यता की पुष्टि करता है।

तीन हजार फीट की उंचाई पर, जहां पहुँचना आज भी बेहद जोखिम भरा काम है, स्थित यह विशाल, भारी-भरकम, कलात्मक प्रतिमा आश्चर्य के साथ-साथ जिज्ञासा भी उत्पन्न करती है कि सदियों पहले इतने दुर्गम इलाके में इतनी ऊंचाई पर, जहां कुछ समय व्यतीत करना ही मुश्किल हो, किन लोगों ने, किस प्रकार, कैसी परिस्थितियों में इस प्रतिमा को गढ़ा होगा ? इस जगह को देख कर सिर्फ अंदाज ही लगाया जा सकता है कि उस समय यह कार्य कितना मुश्‍किल तथा जोखिम भरा रहा होगा। उन कलाकारों ने एक तपस्या की तरह अपनी भूख-प्यास, सुख-चैन, आराम-थकान सब भूल कर इस अप्रतिम, आश्चर्यजनक कला की रचना की होगी। 
ऐसा माना जाता है कि कारण कुछ भी हो बस्तर की सही तस्वीर पर्यटकों के सामने नहीं आ पायी है। प्रकृति के अनमोल खजाने से भरपूर इस इलाके में अभी भी सैंकड़ों मूर्तियां, मंदिर तथा जगहें ऐसी हैं जिनका पता लगना या लगाया जाना बाकि है। इसमें आने वाली अड़चनों में इसका दुर्गम तथा नक्सल प्रभावित होना है। फिर भी कभी संयोगवश या किसी पर्यटक के भाग्यवश कोई ना कोई ना कोई विचित्रता दुनिया के सामने आती रही है। जैसे यह अद्भुत प्रतिमा जिसका पता सबसे पहले एक अंग्रेज भूशास्त्री क्रुकशैंक ने 1934 में बैलाडीला की खदानों का सर्वेक्षण करते समय लगाया था।

स्थानीय निवासियों के अनुसार ढोल की बनावट के कारण इस पहाड़ी का नाम ढोलकल पड़ा है। पहाड़ी के शिखर पर स्थित प्रतिमा तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा होते हुए फरसपाल जाना पड़ता है। यहां से कोतवाल पारा होकर जामपारा तक पहुंच मार्ग है। जामपारा पहाड़ के नीचे है। यहां से पैदल संकरी पहाड़ी पगडंडियों से होकर ऊपर पहुंचना पड़ता है। घने जंगल, दुर्गम मार्ग तथा और कई विषमताओं के बावजूद यहां श्रदालुओं, पर्यटकों और जिज्ञासुओं का आना बदस्तूर जारी है इसीलिए धीरे-धीरे ही सही इस जगह के बारे में लोगों की जानकारी बढ़ ही रही है।  

9 टिप्‍पणियां:

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बहुत बढ़िया वर्णन एव्म चित्र संयोजन।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मदन जी, स्नेह बना रहे

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी, सदा स्वागत है

Unknown ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-09-2016) को "शाब्दिक हिंसा मत करो " (चर्चा अंक-2461) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्रीजी. हार्दिक धन्यवाद

जयन्ती प्रसाद शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर वर्णन एवं जानकारी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Jayanti ji. Sadaa swagat hai

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बढ़िया लगी पोस्ट.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

देवेन्द्र जी,
सदा स्वागत है

विशिष्ट पोस्ट

दीपक, दीपोत्सव का केंद्र

अच्छाई की बुराई पर जीत की जद्दोजहद, अंधेरे और उजाले के सदियों से चले आ रहे महा-समर, निराशा को दूर कर आशा की लौ जलाए रखने की पुरजोर कोशिश ! च...