आपको तो याद ही होगी उस प्यासे कौवे की कहानी, जिसकी अक्लमंदी और मेहनत की मिसाल आपलोग आज भी अपने बच्चों को देते हो ? पर यह कोई नहीं जानता कि उसने यह प्रसिद्धि अपनी धूर्तता और मेरी परदादी के भोलेपन का फायदा उठा कर पाई थी.........
जबसे सेवानिवृत्ति का समय शुरू हुआ है, दिवास्वपनों की बारंबारता कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है। जल्द समझ ही नहीं आता कि हकीकत कब होती है और स्वप्न कब ! सुबह भी कुछ ऐसा ही हुआ था। पर उसकी छोड़ी हुई फोटुएं ???
आज जैसे ही घर से निकलने लगा एक बकरानुमा आदमी या आदमीनुमा बकरा दरवाजे पर आ खड़ा हुआ। मैं कुछ समझूँ या पूछूँ उसके पहले ही वह यह कहता हुआ अंदर आ गया कि आपके लिए एक सनसनीखेज खबर लाया हूँ, सुन लीजिए, आपका ही भला है, जिस चैनल को भी आप इसे देंगे उसके तो पौ-बारह हो ही जाएंगे, आपको भी आस-पास के लोग जानने लगेंगे। कब तक ब्लॉग पर मिली पांच-सात टिप्पणियों पर इतराते रहेंगे। मुझे भी सामने पोस्ट आफिस तक एक संपादक को तकाजे का पत्र पोस्ट करने ही जाना था, पर उसको अपने समय की अहमियत जताने के लिए घडी देखता हुआ बैठ गया। एक बार तो मन में आया कि इसकी मेरे पर ही मेहरबानी क्यों ? फिर सोचा मारो गोली ! देखते हैं शायद कुछ काम की ही बात निकल आए।
मेरे बैठते ही बकरे ने इधर-उधर देखा और बोला, आज आपको एक ऐसे झूठ का सच बताने जा रहा हूँ, जिसे सुन
कर आप गश खा जाएंगे। अब तो मेरी भी कुछ-कुछ उत्सुकता बढ़ने लगी थी। पर मैं कुछ बोला नहीं, उसकी तरफ देखता रहा। उसने कहना शुरू किया, यह घटना वर्षों पुरानी है, मेरी परदादी के समय की और उन्हीं से संबंधित। आपको तो याद ही होगी उस प्यासे कौवे की कहानी, जिसकी अक्लमंदी और मेहनत की मिसाल आपलोग आज भी अपने बच्चों को देते हो ? पर यह कोई नहीं जानता कि उसने यह प्रसिद्धि अपनी धूर्तता और मेरी परदादी के भोलेपन का फायदा उठा कर पाई थी। हमारे खानदान में तो सब को असलियत मालुम पड़ गयी थी पर फिर भी अपने सीधेपन और किसी की बुराई न करने के कारण इतने दिन किसी को कुछ नहीं बताया। पर आज जब उसके वंशजों का वर्चस्व देश में दिनों-दिन बढ़ता देखा तो रहा नहीं गया। चलिए पूरी बात बताता हूँ -
वर्षों पूर्व भी छल-कपट, द्वेष, ईर्ष्या, लोभ, धूर्तता जैसी नियामतें हुआ करती थीं पर इनको धारण करने वाले महापुरुषों की संख्या नगण्य होती थी। सरलता, अच्छाई, भलाई, भलमानसता, भोलेपन का ज़माना होते हुए भी इस कौवे में ये सारी खूबियां भरी हुई थीं। पर उसे समाज में चतुर सुजान समझा जाता था।
उन दिनों भयंकर गर्मी पड़ी थी, अपनी पूरी प्रचंडता के साथ। सारे नदी-नाले, पोखर-तालाब, बावड़ी-कुएं सूखने की कगार पर पहुंच गए थे। पानी के लिए त्राहि-त्राहि मच गई थी। ऐसे ही एक दिन मेरी परदादी प्यास के मारे बदहाल हो पानी की तलाश में भटक रही थी। तभी
कुछ दूर एक झोंपड़ी के पास उन्हें एक पक्षी कुछ हरकत करते दिखा। उत्सुकतावश पास जाने पर पाया कि गर्मी से बेहाल, लस्त-पस्त, थका-हारा सा एक कौवा एक मटके में, पास पड़े कुछ कंकड़ों को उठा-उठा कर डाल रहा है। मेरी परदादी ने एक झाडी के पीछे खड़ी हो उसके क्रिया-कलाप के साथ ही अपनी भी "सेल्फ़ी" ले डाली। पर कुछ ही देर बाद कौवे ने थकान के मारे अपना प्रयास बंद कर दिया। इसी बीच उसकी नज़र मेरी परदादी पर पड़ी, पहले तो वह चौंक गया पर तुरंत जैसे संभल कर उसने उन्हें पास बुलाया और बोला, मटके के तले के पानी को मैं कंकड़ डाल-डाल कर ऊपर ले आया हूँ, तुम ज्यादा प्यासी लग रही हो इसलिए तुम पहले पानी पी लो। वह तो बेहाल थी ही तुरंत मटके तक पहुंची पर पीना तो दूर उसे पानी दिखाई तक नहीं दिया। तभी कौवा अक्लमंदी दिखाते हुए बोला, एक काम करो, अपने सर की ठोकर से मटके को उलट दो जिससे पानी बाहर आ जाएगा, तब हम उसे पी लेंगे। ऐसा कर दोनों ने अपनी प्यास बुझाई ।
जबसे सेवानिवृत्ति का समय शुरू हुआ है, दिवास्वपनों की बारंबारता कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है। जल्द समझ ही नहीं आता कि हकीकत कब होती है और स्वप्न कब ! सुबह भी कुछ ऐसा ही हुआ था। पर उसकी छोड़ी हुई फोटुएं ???
आज जैसे ही घर से निकलने लगा एक बकरानुमा आदमी या आदमीनुमा बकरा दरवाजे पर आ खड़ा हुआ। मैं कुछ समझूँ या पूछूँ उसके पहले ही वह यह कहता हुआ अंदर आ गया कि आपके लिए एक सनसनीखेज खबर लाया हूँ, सुन लीजिए, आपका ही भला है, जिस चैनल को भी आप इसे देंगे उसके तो पौ-बारह हो ही जाएंगे, आपको भी आस-पास के लोग जानने लगेंगे। कब तक ब्लॉग पर मिली पांच-सात टिप्पणियों पर इतराते रहेंगे। मुझे भी सामने पोस्ट आफिस तक एक संपादक को तकाजे का पत्र पोस्ट करने ही जाना था, पर उसको अपने समय की अहमियत जताने के लिए घडी देखता हुआ बैठ गया। एक बार तो मन में आया कि इसकी मेरे पर ही मेहरबानी क्यों ? फिर सोचा मारो गोली ! देखते हैं शायद कुछ काम की ही बात निकल आए।
मेरे बैठते ही बकरे ने इधर-उधर देखा और बोला, आज आपको एक ऐसे झूठ का सच बताने जा रहा हूँ, जिसे सुन
कर आप गश खा जाएंगे। अब तो मेरी भी कुछ-कुछ उत्सुकता बढ़ने लगी थी। पर मैं कुछ बोला नहीं, उसकी तरफ देखता रहा। उसने कहना शुरू किया, यह घटना वर्षों पुरानी है, मेरी परदादी के समय की और उन्हीं से संबंधित। आपको तो याद ही होगी उस प्यासे कौवे की कहानी, जिसकी अक्लमंदी और मेहनत की मिसाल आपलोग आज भी अपने बच्चों को देते हो ? पर यह कोई नहीं जानता कि उसने यह प्रसिद्धि अपनी धूर्तता और मेरी परदादी के भोलेपन का फायदा उठा कर पाई थी। हमारे खानदान में तो सब को असलियत मालुम पड़ गयी थी पर फिर भी अपने सीधेपन और किसी की बुराई न करने के कारण इतने दिन किसी को कुछ नहीं बताया। पर आज जब उसके वंशजों का वर्चस्व देश में दिनों-दिन बढ़ता देखा तो रहा नहीं गया। चलिए पूरी बात बताता हूँ -
वर्षों पूर्व भी छल-कपट, द्वेष, ईर्ष्या, लोभ, धूर्तता जैसी नियामतें हुआ करती थीं पर इनको धारण करने वाले महापुरुषों की संख्या नगण्य होती थी। सरलता, अच्छाई, भलाई, भलमानसता, भोलेपन का ज़माना होते हुए भी इस कौवे में ये सारी खूबियां भरी हुई थीं। पर उसे समाज में चतुर सुजान समझा जाता था।
उन दिनों भयंकर गर्मी पड़ी थी, अपनी पूरी प्रचंडता के साथ। सारे नदी-नाले, पोखर-तालाब, बावड़ी-कुएं सूखने की कगार पर पहुंच गए थे। पानी के लिए त्राहि-त्राहि मच गई थी। ऐसे ही एक दिन मेरी परदादी प्यास के मारे बदहाल हो पानी की तलाश में भटक रही थी। तभी
कुछ दूर एक झोंपड़ी के पास उन्हें एक पक्षी कुछ हरकत करते दिखा। उत्सुकतावश पास जाने पर पाया कि गर्मी से बेहाल, लस्त-पस्त, थका-हारा सा एक कौवा एक मटके में, पास पड़े कुछ कंकड़ों को उठा-उठा कर डाल रहा है। मेरी परदादी ने एक झाडी के पीछे खड़ी हो उसके क्रिया-कलाप के साथ ही अपनी भी "सेल्फ़ी" ले डाली। पर कुछ ही देर बाद कौवे ने थकान के मारे अपना प्रयास बंद कर दिया। इसी बीच उसकी नज़र मेरी परदादी पर पड़ी, पहले तो वह चौंक गया पर तुरंत जैसे संभल कर उसने उन्हें पास बुलाया और बोला, मटके के तले के पानी को मैं कंकड़ डाल-डाल कर ऊपर ले आया हूँ, तुम ज्यादा प्यासी लग रही हो इसलिए तुम पहले पानी पी लो। वह तो बेहाल थी ही तुरंत मटके तक पहुंची पर पीना तो दूर उसे पानी दिखाई तक नहीं दिया। तभी कौवा अक्लमंदी दिखाते हुए बोला, एक काम करो, अपने सर की ठोकर से मटके को उलट दो जिससे पानी बाहर आ जाएगा, तब हम उसे पी लेंगे। ऐसा कर दोनों ने अपनी प्यास बुझाई ।
मेरी परदादी का मीडिया में काफी दखल था। उसने कौवे की दरियादिली तथा बुद्धिमत्ता का जम कर ऐसा प्रचार किया कि सभी जगह उसकी भलमानसता तथा अक्लमंदी का गुणगान होने लगा। जो आज तक बदस्तूर जारी है। हम बकरा जाति को किसी बात को समझने में कुछ समय लग जाता है इसीलिए कुछ समय उपरांत ही हम सब को कौवे की धूर्तता का पता चल गया था। पर इसे भलमानसता समझिए या
अपनी बेवकूफी के प्रचार का डर हम आज तक चुप ही रहे ! पर अब आपसे गुजारिश है कि आप सच्चाई लोगों के सामने लाएं। प्रमाण के लिए मैं कुछ पुरानी फोटो भी साथ ले आया हूँ शायद आपके काम आ सकें।
मुझे समझ नहीं आ रहा है कि कैसे और क्या किया जाए ! इसलिए सारी कहानी, फोटो समेत आपके सामने रख रहा हूँ, सलाह और मार्गदर्शन की प्रतीक्षा रहेगी।
अपनी बेवकूफी के प्रचार का डर हम आज तक चुप ही रहे ! पर अब आपसे गुजारिश है कि आप सच्चाई लोगों के सामने लाएं। प्रमाण के लिए मैं कुछ पुरानी फोटो भी साथ ले आया हूँ शायद आपके काम आ सकें।
मुझे समझ नहीं आ रहा है कि कैसे और क्या किया जाए ! इसलिए सारी कहानी, फोटो समेत आपके सामने रख रहा हूँ, सलाह और मार्गदर्शन की प्रतीक्षा रहेगी।
3 टिप्पणियां:
वाह..
सचमुच कुछ अलग सा ही है
आनन्दित हुई
सादर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (14-03-2016) को "एक और ईनाम की बलि" (चर्चा अंक-2281) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब। बहुत ही अलग अहसास करा रही है आपकी यह रचना। पढ़कर मजा भी आया।
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