सदा के लिए नहीं, पर एक बार दो-चार साल बाहर काट कर उन्हें अपने मन की हसरत पूरी कर लेने देनी चाहिए। इससे उन्हें दो फायदे होंगे, एक तो उन्हे अपनी अौकात की वास्तविकता का पता चल जाएगा दूसरे किसी भी अन्य देश की सहिष्णुता, सहनशीलता और भाई-चारे का भी आकलन हो जाएग। वैसे एकाधिक तुर्रमखानों को विदेश में अपनी हैसियत का अंदाजा लग भी चुका है।
एक लड़का अपनी माँ को बहुत तंग किया करता था। जब भी कोई बात उसकी ना मानी जाती तो वह धमकाता कि छत से कूद जाऊंगा। माँ डर के मारे उसकी जायज-नाजायज हर बात मान तो लेती पर मन ही मन परेशान भी रहा करती थी। एक दिन अपने घर आई सहेली से उसने सारी बात बताई तो सहेली ने सुझाव दिया कि अगली बार जब उसका लड़का ऐसी धमकी दे तो उसकी बात ना मानते हुए उसे कह देना कि जो करना है कर ले। पहले तो महिला घबड़ाई पर सहेली के आश्वस्त करने पर उसने सुझाव मान लिया। उसी शाम लडके ने फिर अपनी मांग रखी तो महिला ने अनसुना कर दिया। लड़का जब छत से कूदने की धमकी देने लगा तो माँ ने कहा जो करना है कर ले। लड़का भौचक्का रह गया, समझ गया कि अब उसकी गीदड़-भभकी नहीं चलने वाली.
कुछ ऐसा ही आमिर खान के बयानों को सुन कर महसूस होता है कि इसी जगह से बचपन से बुढ़ापे तक
कुछ लोगों का तर्क है कि बाहर जा रहने की इच्छा में बुराई क्या है जबकि विदेशों में लाखों की संख्या में भारतवासी रहते हैं जो किसी भी देशवासी की तरह अपने देश को प्यार करते हैं। पर उनके जाने में और इस तरह जाने में फर्क है। वे लोग अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने वहां गए थे जबकि इस तरह जाना देश की सहनशीलता और असहिष्णुता पर सवाल खड़ा करता है।
पहुँचने, नाम, दाम, सम्मान, यश, ऐश्वर्य सब कुछ पाने के बाद भी इन्हें इस देश की सहनशीलता, सहिष्णुता, भाई-चारे, शांतिप्रियता, क्षमाशीलता पर संदेह है। जबकि उनसे किसी तरह का भेद-भाव कभी नहीं बरता गया, लोगों ने सदा अपने सर-आँखों पर बिठाए रखा। अपने पारिवारिक सदस्य सरीखा समझा। उसी आदमी को अपना घर-परिवार-बच्चे असुरक्षित नजर आने लगे। हो सकता है कि यह एक आम लोगों की तरह हल्के-फुल्के तौर पर रोज-रोज की असामाजिक खबरों के कारण उकताए एक परिवार का वार्तालाप हो, पर ऐसी व्यक्तिगत बातों को किसी मंच से सार्वजनिक करना क्या उचित था? जबकि समारोह किसी और बात का तथा माहौल खुशनुमा था। इससे आमिर की छवि तो बिगड़ी ही मीडिया ने उसे ऐसा रंग दे दिया जैसे उनका बयान उनकी नासमझी के साथ-साथ अपने प्रति सहानुभूति जुगाड़ने की ओछी हरकत हो। आमिर की छवि समझदार तथा सुलझे इंसान की है, पर यदि सचमुच उनकी मंशा अपने बयान जैसी है तो उन्हें भी पता ही होगा कि इस देश के और कलाजगत से जुड़े होने के कारण ही उनका मान-सम्मान-पहचान है। जहां लोगों ने भुलाया तो देश या विदेश कहीं भी, कितना ही बड़ा तोपचंद हो उसकी अौकात कौड़ी की तीन रह जाती है। एकाधिक तुर्रमखानों को विदेश में अपनी हैसियत का अंदाजा लग भी चुका है। कहने का मतलब यह नहीं है कि वे सपरिवार यहां से चले जाएं पर एक बार दो-चार साल बाहर काट कर उन्हें अपने मन की हसरत पूरी कर लेनी चाहिए। इससे उन्हें दो फायदे होंगे, एक तो उन्हे अपनी अौकात की वास्तविकता का पता चल जाएगा दूसरे किसी भी अन्य देश की सहिष्णुता, सहनशीलता और भाई-चारे का भी आकलन हो जाएगा। वैसे भी उनके चले जाने से देश या फिल्म जगत का कोई नुक्सान नहीं होने वाला। उनका जो भी योगदान रहा है उसके बदले यहां के वाशिंदों ने उसका हजार गुना बढ़ा कर ही उन्हें लौटाया है। यदि किसी को मुगालता है कि अब चीन-जापान जैसे देशों में भी मेरी फिल्म मुनाफ़ा कमाने लगी है तो उसे जान लेना चाहिए कि पहले फिल्म की गुणवत्ता और कथावस्तु ने अपनी जगह बनाई फिर उसमें काम करने वालों को पहचाना गया ऐसा नहीं है कि पहले ही किसी के नाम से फिल्म चल गयी हो।
कुछ लोगों का तर्क है कि बाहर जा रहने की इच्छा में बुराई क्या है जबकि विदेशों में लाखों की संख्या में भारतवासी रहते हैं जो किसी भी देशवासी की तरह अपने देश को प्यार करते हैं। पर उनके जाने में और इस तरह जाने में फर्क है। वे लोग अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने वहां गए थे जबकि इस तरह जाना देश की सहनशीलता और असहिष्णुता पर सवाल खड़ा करता है।
यदि किसी को देशवासी अग्रिम श्रेणी में ला खड़ा करते हैं तो उसकी भी कुछ जिम्मेदारियां बन जाती हैं। लोग उसको आदर्श मान बैठते हैं। फिर चाहे वह नेता हो, अभिनेता हो या संत हो, उसकी हर बात, हर काम, हर आचरण पर लोगों की नजर रहती है। इसीलिए ऐसे महानुभावों को हर बात सोच-समझ कर ही कहनी-बोलनी चाहिए। जिससे जबरन किसी बात का बतंगड़ ना बन जाए।
10 टिप्पणियां:
सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए ही बोलगया कथन है, हर मुस्लिम की ये सोच है ऐसा नहीं मानी जाएं |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-11-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2172 में दिया जाएगा
धन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - गुरु पर्व और देव दीपावली की हार्दिक बधाई। में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
किसी ऐरे-गैरे की बात और सेलिब्रेटी में जमीं आस्मां का अंतर है, यह बात कब समझेंगे ये लोग..
वैसे यह गुबार आठ-दस महीनों का नहीं है जैसा कि कहा जा रहा है। मन में गांठ 2005 में ही पड़ गयी थी जब मोदी को अमेरिका का वीजा न देने के पेटिशन पर आमिर ने सहमति जताई थी। फिर नर्मदा डैम काण्ड। उसके बाद फना की रिलीज नहीं हुई गुजरात इत्यादि, इत्यादि
यदि आमिर की औकात नहीं होती तो शायद आप यह ब्लॉग भी नहीं लिखते. "स्वदेशे पूज्यतोे राजा, विद्वान सर्वत्र पूज्यते" सुना तोो होगा... फनकार को क्य़ा सोचना . जरा सोचो आमिरसे देश को कितना मिला - कम से कम ट
ेक्स के रूप में..मनोरंजन के रूप में अन्यों को जाने दो...कोी बात कहने से पहले जरा सोच लें तो अच्छा हो...
रंगराज जी, अच्छी बात कही आप ने। पर सोचिए जब वर्षों पहले किसी को अमेरिका में वीजा नहीं देने की वकालत पर कोई अपनी राय जाहिर करता है तो किसी ने कुछ न कह कर सहिष्णुता दिखलाई तो आज उसी की बातों से उठे बतंगड़ पर इतनी असहनशीलता क्यों ?
रही देश को योगदान(?)देने की बात उस पर कृपया फिर गौर करें! ऐसा नहीं हैं कि उसके हर काम को ख़ारिज ही कर दिया जाए पर सच्चाई तो यह भी है कि जो काम उसने किए वो कोई और भी कर सकता था। यह तो मौका मिलने की बात है। वैसे उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि उसने देश भर में विवाद खड़ा तो करवा ही दिया मुझमें और आप में भी कटुता जैसी चीज ला खड़ी कर दी।
फिर सांच को आंच क्या। एक बार अपने लाजवाब फन की बदौलत दुनिया में कहीं भी काम हासिल कर ऐसी सफलता और प्रेम अर्जित कर सब का मुंह बंद करवा दें।
गगन जी, आपको खुश करने की उसे क्यो पड़ी है. जब जरूरत सpSगा जाएगा. आपको खुश करने की जदरूरत भी क्या है... क्यों वह किसी को खुश करमे की सोचे??? मुजे तो अब लगने लगैा है कि भक्तों की भीड़ में आप भी शामिल हैं.
अरे!
रंगराज जी, इसमें मेरी खुशी-नाखुशी कहां से आ गयी ?
स्वस्थ वार्तालाप की बजाए आप तो व्यक्तिगत होते जा रहे हो, इसे यहीं ख़त्म करता हूँ।
हाँ शर्मा जी आपने ठीक ही कहा कि मैं व्यक्तिगत हो रहा हूँ और यह स्वस्थ वार्तालाप का तरीका नहीं है. लेकिन जो आपने आमिर के बारे में लिखा क्या वह व्यक्तिगत नहीं था...
आपने कहा वार्तालाप यहीं खत्म करते हैं - सो ठीक है...
सादर धन्यवाद...
अयंगर.
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