यदि लाखों-करोड़ों की मुद्रा लगा कर कोई किसी चीज का कारखाना लगाएगा तो यह सोचना भी मूर्खता होगी कि वह अपना उत्पादन बेचने की कोशिश नहीं करेगा । अपना उत्पाद वह अपने घर या गोदाम में जमा कर तो रखेगा नहीं ! सबसे बड़ी बात कि तंबाखू कंपनियां इस बात पर अड़ी हुई हैं कि यह बात या परिक्षण अभी पूरी तरह "सिद्ध" ही नहीं हो पाया है कि किस प्रकार का तंबाखू का सेवन हानिकारक है .
आज 31 मई का दिन हर साल की तरह "No Tobacco Day" के रूप में मनाया जाता है। सभी जानते है कि तंबाकू और धूम्रपान आपके स्वास्थय के लिए बेहद खतरनाक है। धूम्रपान के कारण ह्रदय रोग, रक्तवाहिका रोग, फेफड़ो की समस्याओं के साथ-साथ कैंसर जैसे घातक रोग की गिरफ्त में आने की आशंका बनी रहती है।डॉक्टरों और विश्व स्वास्थ्य संघटन के अनुसार हर साल 54-55 लाख लोगो की मृत्यु तंबाखू के इस्तेमाल से
होती है। यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि एक तरफ तो सरकार संचार के हर माध्यम द्वारा धूम्रपान की बुराइयों को उजागर करने में करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए जाती है और दूसरी तरफ तंबाखू उत्पादकों को प्रोत्साहित किया जाता है खाद वगैरह पर सब्सिडी दे कर इसकी उपज बढ़ाने के लिए, इसके साथ ही सिगरेट कंपनियों से अनाप-शनाप मुद्रा कर के रूप में उगाह कर अपनी जरूरतें पूरी करने से नहीं चूकती। इसी कारन आज चीन और ब्राजील के बाद हम तीसरे न. पर हैं इसके उत्पादन को ले कर। जबकि वैज्ञानिक बताते हैं कि सिर्फ तंबाखू का उपयोग बंद कर देने से कैंसर में करीब 40% की कमी आ सकती है।
होती है। यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि एक तरफ तो सरकार संचार के हर माध्यम द्वारा धूम्रपान की बुराइयों को उजागर करने में करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए जाती है और दूसरी तरफ तंबाखू उत्पादकों को प्रोत्साहित किया जाता है खाद वगैरह पर सब्सिडी दे कर इसकी उपज बढ़ाने के लिए, इसके साथ ही सिगरेट कंपनियों से अनाप-शनाप मुद्रा कर के रूप में उगाह कर अपनी जरूरतें पूरी करने से नहीं चूकती। इसी कारन आज चीन और ब्राजील के बाद हम तीसरे न. पर हैं इसके उत्पादन को ले कर। जबकि वैज्ञानिक बताते हैं कि सिर्फ तंबाखू का उपयोग बंद कर देने से कैंसर में करीब 40% की कमी आ सकती है।
यह हास्यास्पद नहीं लगता कि एक तरफ तो आप सिगरेट पीने वालों पर पाबंदियां लगाएं उन्हें कानून का डर दिखाएँ और दूसरी तरफ इस जहर के उद्गम को बंद करने के बजाए उसे संरक्षण प्रदान करें। यदि लाखों-करोड़ों की मुद्रा लगा कर कोई कारखाना लगाएगा तो यह सोचना भी मूर्खता होगी कि वह अपना उत्पादन बेचने की कोशिश नहीं करेगा। इसको लेकर सबके अपने-अपने तर्क हैं। सरकार के फिजूल के खर्चों की यहां से भरपाई होती है। उपयोग करने वालों के इसे ना छोड़ा पाने के अपने बहाने हैं। इसके पक्षकार इंसान की आजादी की दुहाई देते हैं। उनके अनुसार यह आदमी की अपनी विवेकशीलता पर निर्भर करता है कि वह अपनी अच्छाई और बुराई का खुद विवेचन कर अपने अच्छे-बुरे का ख्याल करे।
रही तंबाखू और सिगरेट बनाने वाले उद्योगपतियों की तो उनका तर्क और भी विचित्र है उनके अनुसार उन्हें इसे जारी रखने के कई कारन हैं जैसे लोग इसका सेवन पसंद करते हैं और किसी को किसी का पसंदीदा कार्य करने से नहीं रोक जाना चाहिए। दूसरे यह एक फैशन की चीज है जो आज के समाज में जरूरी है। तीसरे बहुत से लोगों की धारणा है कि इसके सेवन से वे कई तरह की समस्याओं से बचे रहते हैं। चौथी बात जो लोगों के "इमोशन" से जुडी है कि कारखाने बंद हो गए तो लाखों परिवार खाने के मोहताज हो जाएंगे। और सबसे बड़ी बात कि तंबाखू कंपनियां इस बात पर अड़ी हुई हैं कि यह बात या परिक्षण अभी पूरी तरह सिद्ध ही नहीं हो पाया है कि किस प्रकार का तंबाखू का सेवन हानिकारक है, जब तक पूर्णरूपेण इसका हानिकारक होना "सिद्ध" नहीं हो जाता तब तक कारखानों को बंद करना सवैधानिक नहीं होगा।
यही वह पेंच है जिसके कारण तंबाखू के खतरनाक होने की तमाम जानकारियों के बावजूद यह उद्योग अपने उद्योगपतियों के साथ फलता-फूलता जा रहा है। इसलिए सिर्फ तंबाखू विरोधी दिवस मनाने से इससे मुक्ति नहीं मिल पाएगी बल्कि हानि-लाभ को तज कर अति दृढ संकल्प की जरुरत होगी इससे निजात पाने के लिए।