जब बिल्ली किसी खोज में, जिज्ञासा में या अंचभित सी अवस्था में होती है तो उसकी पूंछ प्रश्नवाचक चिह्न जैसा आकार ले लेती है। कहते हैं कि उसी से प्रेरित हो कर यह चिह्न अस्तित्व में आया .........
किसी भी भाषा के लेखन में शब्दों के मायाजाल का संसार तो जरुरी है ही पर उसके साथ-साथ अल्प विराम, पूर्ण विराम, प्रश्न चिह्न, विस्मयादिबोधक चिह्न का उचित प्रयोग भी अत्यंत आवश्यक होता है। इन छोट-छोटे चिह्नों के न होने से न शब्द ही अपना जादू बिखेर पाते हैं नही पढने वाला कुछ ढंग से ग्रहण कर पाता है। इसीलिए आवश्यकतानुसार ये चिह्न अस्तित्व में आते गए और लेखन की सुंदरता में इजाफा होता गया। अब जैसे प्रश्नवाचक चिह्न को ही लें, इसके बिना वाक्य के अर्थ का अनर्थ हो जाना तय है। यह एक ऐसा चिह्न है जिसे संसार भर में मान्यता मिली हुई है। पर इसके अस्तित्व में आने को लेकर कई तरह की भ्रांतियां भी हैं। जिसमें एक तो बड़ी ही रोचक है, इसके अनुसार यह चिह्न बिल्ली की पूंछ से प्रेरित हो बनाया गया है। जब बिल्ली किसी खोज में, जिज्ञासा में या अंचभित सी अवस्था में होती है तो उसकी पूंछ प्रश्नवाचक चिह्न जैसा आकार ले लेती है। कहते हैं कि उसी से प्रेरित हो कर यह चिह्न अस्तित्व में आया। पता नहीं वे लोग सांप के फन से क्यों नहीं प्रेरित हुए !
किसी भी भाषा के लेखन में शब्दों के मायाजाल का संसार तो जरुरी है ही पर उसके साथ-साथ अल्प विराम, पूर्ण विराम, प्रश्न चिह्न, विस्मयादिबोधक चिह्न का उचित प्रयोग भी अत्यंत आवश्यक होता है। इन छोट-छोटे चिह्नों के न होने से न शब्द ही अपना जादू बिखेर पाते हैं नही पढने वाला कुछ ढंग से ग्रहण कर पाता है। इसीलिए आवश्यकतानुसार ये चिह्न अस्तित्व में आते गए और लेखन की सुंदरता में इजाफा होता गया। अब जैसे प्रश्नवाचक चिह्न को ही लें, इसके बिना वाक्य के अर्थ का अनर्थ हो जाना तय है। यह एक ऐसा चिह्न है जिसे संसार भर में मान्यता मिली हुई है। पर इसके अस्तित्व में आने को लेकर कई तरह की भ्रांतियां भी हैं। जिसमें एक तो बड़ी ही रोचक है, इसके अनुसार यह चिह्न बिल्ली की पूंछ से प्रेरित हो बनाया गया है। जब बिल्ली किसी खोज में, जिज्ञासा में या अंचभित सी अवस्था में होती है तो उसकी पूंछ प्रश्नवाचक चिह्न जैसा आकार ले लेती है। कहते हैं कि उसी से प्रेरित हो कर यह चिह्न अस्तित्व में आया। पता नहीं वे लोग सांप के फन से क्यों नहीं प्रेरित हुए !
एक और धारणा के अनुसार इस चिह्न की उत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द quaestio से हुई है। जिसका अर्थ प्रश्न होता है। जो समय के साथ बदलते-बदलते qo हो गया और फिर इसे और आसानी से लिखने की वजह से एक अक्षर में ढाल कर आज जैसा रूप मिल गया।
पर सबसे सटीक धारणा भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार यह है कि इंग्लैण्ड के यॉर्क के निवासी अलक़ुइन, जिसने ढेरों किताबें लिखी थीं और जिसे आगे चल कर संत की उपाधि भी मिली, द्वारा इस चिह्न की ईजाद की गयी थी। उस समय किताबों में सिर्फ "डॉट" का प्रयोग विराम चिह्न के रूप में किया जाता था जो कि पुस्तक का पूरा प्रभाव देने में असहाय सिद्ध होता था। अलक़ुइन ने उसमें थोड़ा सुधार कर उसके ऊपर एक टेढ़ी से आकृति बना दी, जो ऐसी लगती थी जैसे आकाश से बिजली गिर रही हो। वर्षों बाद जब विराम चिह्नों को व्यवस्थित किया गया तो अलक़ुइन के इस चिह्न को थोड़ा सुधार कर प्रश्नवाचक चिह्न के रूप में मान्यता दे दी गयी। इसे इतना पसंद किया गया कि अरबी लिपि में भी, जो दाएं से बांए लिखी जाती है, इसे स्थान प्राप्त हो गया। ऐसी मान्यता है कि इससे मिलते-जुलते चिह्न का सर्वप्रथम उपयोग सीरियक भाषा में किया गया था। इक्कसवीं सदी आते-आते यह करोड़ों-अरबों लोगों का पसंदीदा चिह्न बन गया।
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-05-2015) को "प्रश्नवाचक चिह्न (?) कहाँ से आया" (चर्चा अंक-1962) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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मई दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हमेशा की भांति रोचक पोस्ट। धन्यवाद।
लिपि चिह्नों का इतिहास बड़ा रोचक एवं पेचीदा है।
आभार, इतनी महत्वपूर्ण जानकारी हेतु।
पोस्ट पसंद आई।
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