दुनिया में बहुत सारे ऐसे वृक्ष हैं जो बहुउपयोगी होने के साथ-साथ पवित्र भी माने जाते हैं, पर शिव अराधना के समय खासकर सावन में शिवलिंग पर बेल पत्र ही चढ़ाए जाते हैं। सब को छोड़ कर बिल्व के पत्ते ही क्यों यह सम्मान पाते हैं?
सावन का महीना आते ही शिव जी की आराधना के लिए जन समूह उमड़ पड़ता है. होड़ लग जाती है उन पर जल चढाने की. जगह-जगह, तरह-तरह के द्रव्यों से अभिषेक किया जाने लगता है. पर पूजा में सबसे प्रमुख जो वस्तु मानी गयी है वह है बेल पत्र या बिल्व पत्र। पुराणों के अनुसार यह भोले भंडारी को अत्यंत प्रिय है। जिसके बिना पूजा अधूरी समझी जाती है। ऐसा क्यों और क्या खासियत है इस बेल पत्र में जो इसे इतना महत्वपूर्ण समझा जाता है ? दुनिया में बहुत सारे ऐसे वृक्ष हैं जो बहुउपयोगी होने के साथ-साथ पवित्र भी माने जाते हैं, पर उन्हें छोड़ कर बिल्व के पत्ते ही क्यों यह सम्मान पाते हैं? इसके लिए इस वृक्ष को जानना जरूरी है।
स्कन्द पुराण के अनुसार एक बार माँ पार्वती मंदराचल पर्वत पर ध्यान लगाए बैठी थीं तभी उनके मस्तक से पसीने की कुछ बूँदें जमीन पर गिरीं, जिनसे बेल वृक्ष की उत्पत्ति हुई। ऐसी मान्यता है कि इस वृक्ष में माँ अपने सभी रूपों के साथ विद्यमान रहती हैं. गिरिजा के रूप में इसकी जड़ों में, माहेश्वरी के रूप में इसके तने में, दक्षयानी के रूप में इसकी डालियों में, पार्वती के रूप में इसके पत्तों में, माँ गौरी के रूप में इसके पुष्पों में और कात्यायनी के रूप में इसके फलों में माँ निवास करती हैं। इन शक्ति रूपों के अलावा माँ लक्ष्मी भी इस पवित्र और पावन वृक्ष में वास करती हैं. चूंकि माँ पार्वती का इस वृक्ष में निवास है इसीलिए भगवान शंकर को यह अत्यंत प्रिय है. जन धारणा तो यह है कि यदि कोई स्त्री या पुरुष इस पेड़ को छू भर लेता है तो उसी से उसके सारे पापों का नाश हो जाता है। इसके साथ ही इस शिव-प्रिय पत्र के बारे में यह भी कहा जाता है कि कोई भी नर या नारी शिव जी का सच्चे मन से ध्यान कर यदि बेल वृक्ष का एक भी पत्ता शिव लिंग को अर्पित करता है तो उसके कष्टों का शमन हो उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं.
बिल्व पेड़ की पत्तियां तीन के समूह में होती हैं. जिनके बारे में विद्वानों की अपनी-अपनी मान्यताएं हैं। कुछ इन्हें ब्रह्मा-विष्णु-महेश का रूप मानते हैं. कुछ इसे शिव जी के तीन नेत्रों का भी प्रतीक मानते हैं. कुछ लोग इसे परमात्मा के सृष्टि, संरक्षण और विनाश के कार्यों से जोड़ते हैं और कुछ इसे तीनों गुणों, सत, राजस और तमस के रूप में देखते हैं.
हमारे धार्मिक ग्रंथों और आयुर्वेद में बेल वृक्ष के अौषधीय गुणों का उल्लेख मिलता है। इसकी जड़, छाल, पत्ते, फूल और फल सभी बहुत उपयोगी होते हैं तथा तरह-तरह के रोग निवारण में काम आते हैं. शिव जी तो खुद बैद्यनाथ हैं शायद इसलिए भी उनको यह वृक्ष इतना प्रिय है.
बेल वृक्ष |
बेल का फल |
बेल पत्र |
बिल्व पेड़ की पत्तियां तीन के समूह में होती हैं. जिनके बारे में विद्वानों की अपनी-अपनी मान्यताएं हैं। कुछ इन्हें ब्रह्मा-विष्णु-महेश का रूप मानते हैं. कुछ इसे शिव जी के तीन नेत्रों का भी प्रतीक मानते हैं. कुछ लोग इसे परमात्मा के सृष्टि, संरक्षण और विनाश के कार्यों से जोड़ते हैं और कुछ इसे तीनों गुणों, सत, राजस और तमस के रूप में देखते हैं.
हमारे धार्मिक ग्रंथों और आयुर्वेद में बेल वृक्ष के अौषधीय गुणों का उल्लेख मिलता है। इसकी जड़, छाल, पत्ते, फूल और फल सभी बहुत उपयोगी होते हैं तथा तरह-तरह के रोग निवारण में काम आते हैं. शिव जी तो खुद बैद्यनाथ हैं शायद इसलिए भी उनको यह वृक्ष इतना प्रिय है.
2 टिप्पणियां:
सार्थक पोस्ट ..जय शिव शंकर
can't read in my phone.. maje it responsive..
mobile friendly..
some of ur pages are responsive but not all.
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