अभी कल ही तमाम हो-हल्ले के बीच रेल बजट आया है. उस रेल का जिसकी नींव अंग्रेजों ने करीब एक सौ साठ साल पहले हमारी भलाई के लिए नहीं, अपना मतलब सिद्ध करने के लिए डाली थी। उस समय भारत में अपना वर्चस्व बनाने के लिए जी-जान से लगे हुए थे। पर उनकी फौजें देसी रियासतों से जगह-जगह मात खाती रहती थीं। एक जगह उन्हें सफलता मिलती तो दूसरी जगह हार का सामना करना पड जाता था. कारण उनकी कुमुक समय पर अपेक्षित स्थान पर नहीं पहुँच पाती थी।
तब तक ब्रितानिया में रेल का आगाज हो चुका था, उसके लाभ से सब वाकिफ भी थे, उसी का फ़ायदा उठाने के लिए यहां भी पटरियां बिछाने की इजाजत मांगी गयी. पर उसमें सबसे बड़ी बाधा उसमें लगने वाले अपार धन की थी. उसका उपाय भी निकाला गया, उस समय पांच प्रतिशत ब्याज का लालच दे पूंजी का इंतजाम किया गया. इस तरह पहली कंपनी सामने आई जिसका नाम "ग्रेट इंडियन रेलवे कंपनी" था.
हमारी पहली रेल गाड़ी |
उस समय एक किलोमीटर तक की पटरी तक यहां नहीं थी तब अंग्रेज इंजीनीयर रॉबर्ट मैटलैंड ब्रेरेटन ने यहां रेल को साकार रूप देने का बीड़ा उठाया। जिसकी अथक मेहनत के फलस्वरूप भारत में पहली रेल गाड़ी का सपना साकार हुआ जब 16 अप्रैल 1853 को बंबई के बोरी बंदर स्टेशन पर हजारों लोगों की उपस्थिति में इक्कीस तोपों की सलामी के बाद चौदह डिब्बों में सवार चार सौ विशिष्ट मेहमानों को लेकर अपरान्ह साढ़े तीन बजे चली इस गाड़ी ने शाम पौने पांच बजे ठाणे तक का 34 किलोमीटर का सफर करीब सवा घंटे में तय कर इतिहास रच एक महान उपलब्धि हासिल की।
उस समय अंग्रेजों ने भारत छोड़ने की कल्पना सपने में भी नहीं की थी. उन्होंने तो अपने सैन्य बल को मजबूत करने और हमारा आर्थिक शोषण करने के लिए रेल रूपी बीज का रोपण किया था। देश वासियों में भी इसे लेकर कोई बहुत ज्यादा उत्साह नहीं था पर समय के साथ-साथ रेल की उपयोगिता सामने आती गयी.
आज यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है। इसका व्यापक रूप, इसकी क्षमता, इसकी जन-उपयोगिता, इसकी उपादेयता किसी भी साक्ष्य की मोहताज नहीं है। बस जरूरत है तो इस कामधेनू की साज-संभाल की, क्योंकि इसको दुहने के लिए सभी कतार-बद्ध हैं पर जब इसको "चारा" देने की बात आती है तो सब बगलें झांकने लगते हैं।
8 टिप्पणियां:
आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - जन्मदिवस : गुरु दत्त और संजीव कुमार में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
THANKyou sir for giving us such a general knowledge...
रोचक जानकारी...
कभी-कभी किसी के लिए दुर्भावना युक्त किया गया कार्य भी भविष्य में वरदान साबित हो जाता है.
हर्ष, पोस्ट के चयन के लिए आभार
विर्क जी, ऐसे ही स्नेह बना रहे
अभिषेक, सदा स्वागत है
कैलाश जी,
ऐसे ही स्नेह बनाए रखें
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