शनिवार, 5 जुलाई 2014

तीन इंच की जबान के लिए दुनिया भर की भाग-दौड़।

जुझारु जापानी मछुवारों ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने एक तरकीब इजाद की, इस बार उन्होंने मछलियों की सुस्ती दूर करने के लिए उन बड़े-बड़े बक्सों में एक छोटी सी शार्क मछली डाल दी। 

जगत के सारे जीव-जंतुओं में मनुष्य ही शायद अपनी इन्द्रियों का गुलाम है, उनमें भी जीभ का चटोरापन जग जाहिर है। मजे की बात यह है की घंटों की मशक्कत के बाद तैयार भोजन के गले से नीचे उतरने के बाद कोई स्वाद नहीं रह जाता पर तीन इंच की जिह्वा के स्वाद के लिए इंसान क्या-क्या नहीं कर गुजरता। दुनिया भर में इसके उदाहरण मौजूद हैं.  

जापानियों को ही देखें, इनका का मछली प्रेम जग जाहिर है। परन्तु वे व्यंजन से ज्यादा उसके ताजेपन को अहमियत देते हैं। परन्तु आज कल प्रदुषण के कारण समुद्री तट के आसपास मछलियों का मिलना लगभग खत्म हो गया है। इसलिए मछुवारों को गहरे समुद्र की ओर जाना पड़ता है। इससे मछलियां तो काफी तादाद में मिल जाती थीं, पर आने-जाने में लगने वाले समय से उनका ताजापन खत्म हो जाता था। मेहनत ज्यादा बिक्री कम, मछुवारे परेशान। फिर इसका एक हल निकाला गया। नौकाओं में फ्रिजरों का इंतजाम किया गया, मछली पकड़ी, फ्रिजर में रख दी, बासी होने का डर खत्म। मछुवारे खुश क्योंकि इससे उन्हें और ज्यादा शिकार करने का समय मिलने लग गया। 

परन्तु वह समस्या ही क्या जो ना आए। जापानिओं को ज्यादा देर तक फ्रिज की गयी मछलियों का स्वाद
नागवार गुजरने लगा। मछुए फिर परेशान। पर मछुवारों ने भी हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी नौका में बड़े-बड़े बक्से बनवाए और उनमें पानी भर कर मछलियों को जिन्दा छोड़ दिया। मछलियां ग्राहकों तक फिर ताजा पहुंचने लगीं। पर वाह रे जापानी जिह्वा, उन्हे फिर स्वाद में कमी महसूस
होने लगी। क्योंकि ठहरे पानी में कुछ ही देर मेँ मछलियां सुस्त हो जाती थीं और इस कारण उनके स्वाद में फ़र्क आ जाता था। पर जुझारु जापानी मछुवारों ने हिम्मत नहीं हारी और एक ऐसी तरकीब इजाद की, जिससे अब तक खानेवाले और खिलानेवाले दोनों खुश हैं। इस बार उन्होंने मछलियों की सुस्ती दूर करने के लिए उन बड़े-बड़े बक्सों में एक छोटी सी शार्क मछली डाल दी। अब उस शार्क का भोजन बनने से बचने के लिए मछलियां भागती रहती हैं और ताजी बनी रहती हैं। कुछ जरूर उसका आहार बनती हैं पर यह नुक्सान मछुवारों को भारी नहीं पड़ता। खाने वाले भी खुश, खिलाने वाले भी खुश और स्वाद का चस्का भी जिंदाबाद

है ना, तीन इंच की जबान के लिए दुनिया भर की भाग-दौड़।

कोई टिप्पणी नहीं:

विशिष्ट पोस्ट

रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front

सैम  मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...