ऐसी धारणा भी है कि वर्षा की बूंदें आंसुओं की तरह गोल होती हैं, पर ऐसा न हो कर उनका आकार ऐसा होता है जैसे एक वृत्त को ठीक बीच में से काट दिया जाए तो ऊपर वाले हिस्से का जो रूप बनेगा वैसा ही आकार वर्षा की बूँदों का होता है। ऊपर से गोल नीचे चपटा। ठीक "पाव-भाजी" के "पाव" जैसा।
देर से ही सही इंद्रदेव की नाराजगी दूर हुई. झुलसाती गर्मी धीरे - धीरे अपना दामन छुड़ा विदा हुई, गगन से अमृत झरा, धरा की प्यास मिटी, हलधरों के चहरे पर संतोष दिखने लगा। हर साल देर-सबेर ऐसा ही चक्र चलता रहता है इसलिए हमारा ध्यान इस की विशेषताओं पर नहीं जाता, जो अपने आप में अजूबा है :-
यह सभी जानते हैं कि धरती के सागर, नदी-नालों, सरोवरों-झीलों से लगातार पानी का वाष्पीकरण होता रहता है. वही दूषित पानी जब ऊपर जा फिर वर्षा के रूप में धरती पर वापस आता है तो वह प्रकृति में उपलब्ध जल का सर्वाधिक शुद्ध रूप होता है। इस ऊपर-नीचे आने-जाने की क्रिया में वह सैंकड़ों की. मी. की दूरी तय कर लेता है। हम सभी को लगता है, और ऐसी धारणा भी है कि वर्षा की बूंदें आंसुओं की तरह गोल होती हैं, पर ऐसा न हो कर उनका आकार ऐसा होता है जैसे एक वृत्त को ठीक बीच में से काट दिया जाए तो ऊपर वाले हिस्से का
जो रूप बनेगा वैसा ही आकार वर्षा की बूँदों का होता है। ऊपर से गोल नीचे से चपटा। ठीक "पाव-भाजी" के "पाव" जैसा। ऐसा इनके नीचे गिरते समय हवा के दवाब के कारण होता है।धरती के वातावरण में ये दस दिनों तक बने रह सकते हैं। करीब .02 से .031 इंच के आकार की वर्षा की बूँदें तकरीबन 35 की.मी. की रफ्तार से जमीन की ओर आती हैं। तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो पहाड़ों पर होने वाली बर्फबारी की रफ्तार तीन-चार की.मी. ही होती है। अमूमन एक घंटे में .30 इंच या उससे ज्यादा की बरसात को ही भारी बारिश का होना माना जाता है। छोटी या महीन बूँदों वाली वर्षा को "झींसी" (drizzling) पड़ना कहते हैं। इन्हें संभालने वाले छोटे बादलों की औसत उम्र 10 से 15 मिनट की ही होती है। इतनी ही देर में ये नीचे जल-थल कर देते हैं. बरसात के साथ जो आंधी-तूफान उठते हैं, उनसे उत्पन्न होने वाली बिजलियां, जो करीब 100 की. मी. की दूरी तक जा सकती हैं, हर सेकंड में करीब सौ बार धरा को छूती हैं। जिनकी कड़क और लपक देख-सुन कर कलेजा मुंह को आ जाता है उनसे लाखों में सिर्फ तीन बार दुर्घटना की आशंका बनती है।
वर्षा की बूँदों के कमाल के कारण ही बारिश के बाद बनने वाला इंद्र-धनुष प्रकृति की एक और अनुपम कला और रचना है। जो सूर्य की विपरीत दिशा में वातावरण में स्थित पानी की छोटी सी बूँद, जो वहां "प्रिज्म" का काम करती है, में से उगते या अस्त होते सूर्य की किरणों के गुजरने से बनता है। जमीन से एक अर्द्ध वृत्त के रूप में नजर आने वाले इस अजूबे को यदि हवाई-जहाज से देखा जाए तो यह पूर्ण गोलाकार रूप में भी दिखाई पड़ सकता है।
वर्षा की बूँदों के कमाल के कारण ही बारिश के बाद बनने वाला इंद्र-धनुष प्रकृति की एक और अनुपम कला और रचना है। जो सूर्य की विपरीत दिशा में वातावरण में स्थित पानी की छोटी सी बूँद, जो वहां "प्रिज्म" का काम करती है, में से उगते या अस्त होते सूर्य की किरणों के गुजरने से बनता है। जमीन से एक अर्द्ध वृत्त के रूप में नजर आने वाले इस अजूबे को यदि हवाई-जहाज से देखा जाए तो यह पूर्ण गोलाकार रूप में भी दिखाई पड़ सकता है।
15 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (24-07-2014) को "अपना ख्याल रखना.." {चर्चामंच - 1684} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया ।
बहुत सुन्दर |
कर्मफल |
अनुभूति : वाह !क्या विचार है !
वाकई रोचक
बहुत सुंदर....वाकई रोचक है यह जानकारी
सुंदर बढ़िया , गगन भाई धन्यवाद !
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बहुत सुन्दर ...
शास्त्री जी, हार्दिक धन्यवाद !
हर्ष जी, आपका और ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक धन्यवाद !
सुशील जी, हार्दिक धन्यवाद !
कालीपद जी, स्नेह बना रहे ! पर टिप्पणी कुछ अलग सी लगी !
मोनिका जी, कुछ अलग सा पर सदा स्वागत है !
रश्मि जी, कुछ अलग सा पर सदा स्वागत है !
आशीष जी, कुछ अलग सा पर सदा स्वागत है !
प्रतिभा जी, कुछ अलग सा पर सदा स्वागत है !
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