रविवार, 22 जुलाई 2018

फल (आम) ही नहीं, मिठाई भी लंगड़ी होती है !

राजकुमारी की लैंग्चा खाने की इच्छा उसके मायके कृष्णनगर पहुंचाई गयी ! अब लैंग्चा क्या होता है यह किसी को भी पता नहीं था। वहाँ किसी भी हलवाई को इस तरह की किसी मिठाई के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। दरअसल राजकुमारी भी इस मिठाई का नाम भूल चुकी थी उसे सिर्फ यह याद था कि उसके गृह नगर में एक स्वादिष्ट मिठाई बनती थी और उसको बनाने वाला कारीगर लैंग्चा यानी लंगड़ा था.........! 
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फलों के राजा आम की एक नस्ल "लंगड़ा" के बारे में तक़रीबन सारा देश जानता होगा, पर अपने ही देश के एक प्रदेश, बंगाल की एक मिठाई का नाम भी लंगड़ा है यह बात बहुतों को पता नहीं होगी ! "लैंग्चा" ! जी हाँ ! यही नाम है उस गहरे लाल-भूरे रंग की मिठाई का, जिसका अर्थ बंगला भाषा में लंगड़ा होता है ! अपनी छेने की मिठाइयों के लिए दुनिया भर में मशहूर बंगाल के रसगुल्ले, संदेश, की तरह वहाँ के "पांतुआ" (गुलाबजामुन) परिवार की, यह एक बेहतरीन स्वादिष्ट मिठाई है। जिसको खाते हुए पेट तो भर जाता है पर मन कभी भी नहीं भरता। आज यह बंगाल के हर शहर-कस्बे की सभी मिठाई की दूकानों का एक आवश्यक अंग है। वैसे तो इसको बनाने वाला कारीगर बंगाल के ही एक और शहर कृष्णनगर का था, पर आज इसका असली घर कोलकाता से करीब अस्सी की.मी. दूर बर्दवान (वर्द्धवान) शहर के एक कस्बे शक्तिगढ़ में है। जहां का चप्पा-चप्पा लैंग्चा से आच्छादित है और जिसकी पहचान का कारण ही लैंग्चा है। पर यह लैंग्चा यानी लंगड़ा होते हुए भी गंगा पार कर वर्दवान कैसे पहुंच गया ! इसके पीछे भी एक मनोरंजक जनश्रुति है ! वैसी ही जैसी बनारस के सुप्रसिद्ध लंगड़े आम की है ! 

वर्षों पहले कृष्णनगर की राजकुमारी का विवाह वर्दवान के राजकुमार के साथ हुआ था। अपने गर्भावस्था के दौरान उसकी तबियत बिगड़ने के कारण उसकी कुछ भी खाने की इच्छा नहीं होती थी। पर जब अति होने लगी तो उसने लैंग्चा खाने की इच्छा जाहिर की ! यह खबर उसके मायके कृष्णनगर पहुंचाई गयी ! अब लैंग्चा क्या
होता है यह किसी को भी पता नहीं था। वहाँ किसी भी हलवाई को इस तरह की किसी मिठाई के बारे में जानकारी नहीं थी। दरअसल राजकुमारी भी इस मिठाई का नाम भूल चुकी थी उसे सिर्फ यह याद था कि उसके गृह नगर में एक स्वादिष्ट मिठाई बनती थी और उसको बनाने वाला लैंग्चा यानी लंगड़ा था। फिर काफी तलाश के बाद एक ऐसे कारीगर का पता चला, जिसका नाम लैंग्चा दत्ता था। उसे तुरंत परिवार सहित वर्दवान भेज वहीँ उसके रहने का प्रबंध भी कर दिया गया जिससे भविष्य में कभी राजपरिवार लैंग्चा से वंचित न हो सके। इस सब में किसी को भी मिठाई के नाम की नहीं सूझी और वह शक्तिगढ़ का लैंग्चा के नाम से उसी तरह प्रसिद्ध हो गयी, जिस तरह आगरे का पेठा, बीकानेर का भुजिया या हैदराबाद की बिरयानी है।   


आज शक्तिगढ़ तो लैंग्चामय हो चुका है। एक ही सड़क पर एक डेढ़ की.मी. तक लाइन से बीसियों दुकानें और सब की सब लैंग्चा बेचते नज़र आती हैं। दुकानों के नाम भले ही भिन्न-भिन्न हों पर उन नामों में लैंग्चा जरूर जुड़ा मिलता है। यथा लैंग्चा महल, लैंग्चा घर, लैंग्चा भंडार, लैंग्चा निकेतन, लैंग्चा भवन इत्यादि, इत्यादि ! शक्तिगढ़ के आधे से ज्यादा परिवारों का जीवन यापन इसी लैंग्चा के द्वारा ही होता है। शक्तिगढ़ के इस लैंग्चा बाजार से तक़रीबन एक लाख लैंग्चा रोज बिक जाते हैं। इसके बारे में एक अच्छी बात यह भी है कि सुस्वादु और पाचक होने के बावजूद इसकी कीमत हरेक की जेब के मुताबिक पांच से दस रूपये के भीतर ही है। ऊपर से थोड़ी "क्रंची" और भीतर से बिलकुल मुलायम यह मिठाई छेने-मावे-और मैदे को मिला, चीनी में पगा कर बनाई जाती है। सारा खेल इसके घटकों के मिश्रण का है जो किसी निष्णात कारीगर के वश की ही बात है।    
एक बात और भले ही शक्तिगढ़ लैंग्चा के लिए मशहूर हो पर कृष्णनगर के लोग भी इस कहानी को सुना-सुना कर अपने आप को कम गौरवान्वित नहीं समझते; आखिर उन्होंने ही इस अनोखी मिठाई को जगत्प्रसिद्ध होने का सुअवसर जो दिया था। वैसे तो यह बंगाल से लगे प्रांतों जैसे ओडिसा, असम में भी उपलब्ध है पर बंगाल की बात ही कुछ और है, तो अब जब कभी भी बंगाल जाने का अवसर मिले तो सिर्फ रसगुल्ले या राजभोग का भोग ही मत लगाइएगा, एक बार इस लंगड़ी मिठाई को भी जरूर चखिएगा !  

6 टिप्‍पणियां:

radha tiwari( radhegopal) ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (23-07-2018) को "एक नंगे चने की बगावत" (चर्चा अंक-3041) (चर्चा अंक-3034) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नंगे चने की बगावत में लंगड़ी मिठाई की शिरकत ! भई वाह !

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रीय झण्डा अंगीकरण दिवस ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हर्ष जी, हार्दिक धन्यवाद

Jyoti Dehliwal ने कहा…

इस मिठाई के बारे मे जानकारी नहीं थी। मजेदार जानकारी।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी, कुछ अलग सा पर सदा स्वागत है

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