सोमवार, 9 जुलाई 2018

क्रिकेट के कुछ अजीबो-गरीब नियम !

मुद्दा क्या है, जमीन छूना या दूरी पार करना ! अब मान लीजिए एक बल्लेबाज रन लेते समय दूसरे छोर पर पहुँच, किसी क्षेत्ररक्षक द्वारा फेंकी गयी बॉल से अपने को बचाने के लिए छलांग भरते हुए, बिना जमीन को छुए, विकेटों के भी पार चला जाता है और बॉल विकेट में लगती है तो वर्तमान नियमों के अनुसार तो वह आउट कहलाएगा, जबकि वह रन की निर्धारित हद से भी ज्यादा दूरी को पार कर चुका होगा..........!
#हिंदी_ब्लागिंग 
अभी इंग्लैण्ड के साथ संपन्न हुई 20-20 श्रृंखला के एक मैच में शिखर धवन, खेल के नियमों के अनुसार, रन आउट हुए। पर उससे एक सवाल सर उठाता है कि एक रन कहाँ तक होता है ? जाहिर है पॉपिंग क्रीज के बीच की दूरी, जो बाइस गज की होती है। जब आप ने उस दूरी को नापते हुए लाइन पार कर ली तो रन तो पूरा हो गया
अब आपका कोई अंग या बैट, लाइन के दूसरी तरफ जमीन छुए या न छुऐ ! मुद्दा क्या है, जमीन छूना या दूरी पार करना ! अब मान लीजिए एक बल्लेबाज रन लेते समय दूसरे छोर पर पहुँच, किसी क्षेत्ररक्षक द्वारा फेंकी गयी बॉल से अपने को बचाने के लिए छलांग भरते हुए, बिना जमीन को छुए, विकेटों के भी पार चला जाता है और बॉल विकेट में लगती है तो वर्तमान नियमों के अनुसार तो वह आउट कहलाएगा, जबकि वह रन की निर्धारित हद से भी ज्यादा दूरी को पार कर चुका होगा ! 

रन लेते वक्त क्रीज के दूसरी तरफ की जमीन छूने का नियम तब बना था जब खेल पूरी तरह से मैदान पर मौजूद अंपायरों पर निर्भर करता था। कोई चूक न हो इसलिए क्रीज के पार बने ताजे दाग से फैसला किया जाता था कि बल्लेबाज रन पूरा कर पाया या नहीं ! यही बात "बेल्स" के लिए भी लागू होती है कि जब तक वे जमीन पर ना गिर जाएं "बोल्ड आउट" नहीं माना जाता, ऐसा सिर्फ मानवीय चूक से बचने के लिए किया जाता है। जबकि ऐसे कई मौके आए हैं जब कि बॉल ने विकेट को छुआ, बेल हिली पर गिरी नहीं और बल्लेबाज बच गया !
जबकि उसे बॉलर ने पूरी तरह परास्त कर दिया था और वह आउट था ! इसी तरह बल्लेबाज का रुमाल या टोपी, विकेट पर गिर जाने से उसे हिट-विकेट आउट कर दिया जाता है जबकि इसमें विपक्षी टीम का कोई शौर्य नहीं होता। वैसा ही कुछ ऊट-पटांग नियम हेल्मेट से बॉल टकराने पर पांच रन दिए जाने का प्रावधान है, क्यों नहीं हेल्मेट जरुरत के अनुसार मैदान के अंदर-बाहर किया जाता ? इसमें लगने वाले समय से ज्यादा तो तीसरा अंपायर कभी-कभी अपना निर्णय देने में ले लेता है। रही खेल को और रोमांचक बनाने की बात तो सीमा रेखा के पार कितनी भी दूर जाने वाली बॉल पर छह रन मिलते हैं, क्यों न दर्शक दीर्घा में पहुँचने वाली गेंद पर आठ रनों का ठप्पा लगा दिया जाए; तो और हंगामा देखने को मिल सकता है। 

आजकल तो सारे खेल उन्नत तकनीक से लैस हो चुके हैं। उनकी हर गतिविधि पर तरह-तरह के "गैजेट्स"और कैमरों की पैनी नजर गड़ी रहती है जिसके कारण बाल बराबर चूक की संभावना भी नहीं बनती ! ऐसे में क्या उचित नहीं होगा कि पुराने नियमों में और भी सुधार किया जाए ! क्रिकेट के खेल में जो भी बदलाव किए जाते हैं वह ज्यादातर बल्लेबाजी को ध्यान में रख होते हैं जिससे खेल रोमांचक हो जाए और ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटे। जबकि खेल में सारे पक्षों को पूरा-पूरा हुए समान मौका मिलना चाहिए। जैसे कि टेस्ट मैच में टॉस करने के बाद मैदान की हालत या वातावरण को ध्यान में रख बल्लेबाजी या क्षेत्ररक्षण का निर्णय लिया जाता है। जिसमें टॉस हारने वाली टीम इक्कीस  होने के बावजूद कभी-कभी मैच हार जाती है तो क्यों न दो एक जैसी पिचें बनाई जाएं जिस पर दोनों टीमें अपनी-अपनी शुरुआत कर अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर सकें। 20-20 के मैचों में पहले छह ओव्हरों के पॉवर-प्ले में बॉलरों की ऐसी की तैसी करने के बदले शुरू से ही दोनों  बराबर का मौका दिया जाए।   #कपिलदेव #सचिन #गांगुली जैसे महान खिलाड़ियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए। जिससे इस लोकप्रिय खेल की आत्मा बनी रहे, खेल सर्कस या तमाशा बन कर ना रह जाए।     

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-07-2018) को "अब तो जम करके बरसो" (चर्चा अंक-3028) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

प्रविष्टि को स्थान उपलब्ध करवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

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