पिछले रविवार को श्रीमती जी को नर्सिंग होम में भर्ती करवाना पड़ा था। लगातार दोस्त-मित्र-रिश्तेदारों के फोन आ रहे थे, मोबाइल भी व्यस्त होना ही था, उपर से इस फर्जी की वही टेढ़ी चाल। हद तो तब हो गयी जब डाक्टर से बात करते-करते ही ये सुप्तावस्ता में चला गया। किसी तरह बात संभाली। एक बार तो मन बना ही लिया था कि उपभोक्ता फोरम में चला जाए पर फिर …
दूर के ढोल सुहाने लगते हैं, पता नहीं कितने अनुभवों के बाद किसी ने यह निष्कर्ष निकाला होगा। वर्षों तक #भारत संचार निगम लिमिटेड (B.S.N.L.) को झेलते हुए लगता था कि उसके बड़े भाई #महानगर टेलेफोन निगम लिमिटेड (M.T.N.L.) की कार्य कुशलता प्रभू के प्रसाद की तरह उच्च कोटि की और बेहतर होगी। पर छोटे मियाँ तो छोटे मियाँ, बड़े मियाँ सुभान-अल्ला।
होता यह है कि दिन भर की भागा-दौड़ी और मोबाइल की सुविधा (?) के कारण घर के अचल फोन की गड़बड़ी पर तब तक ध्यान नहीं जाता जब तक कि कोई बड़ा बखेड़ा ही खड़ा न हो जाए। महीनों से तारों से बंधा यह फोन अपनी मर्जी के मुताबिक़ ही काम कर रहा था। रिसीवर उठाने के बाद भी घंटी घनघनाना, उठाने पर बात कम घड़घड़ाहट ज्यादा सुनाई देना, बात करते-करते कनेक्शन कट जाना रोजमर्रा की बात थी। सामने वाले की अक्सर शिकायत होती थी कि आप बीच में ही फोन काट देते हो, बुरा भी लगता था कि जरूरी बात पूरी नहीं हो पाती। अपनी गलती न होने की बात बार-बार समझाना भी मुश्किल होता था। पर जैसे शरारती बच्चे के सुधरने की उम्मीद उसके अभिभावक नहीं छोड़ते वैसे ही हम भी इस सरकारी नकचढ़े से जुड़े रहे।
पिछले रविवार को कुछ तकलीफ के कारण श्रीमती जी को नर्सिंग होम में भर्ती करवाना पड़ा था। लगातार दोस्त-मित्र-रिश्तेदारों के फोन आ रहे थे, मोबाइल भी व्यस्त होना ही था, उपर से इस फर्जी की वही टेढ़ी चाल। हद तो तब हो गयी जब डाक्टर से बात करते-करते ही ये सुप्तावस्ता में चला गया। किसी तरह बात संभाली। एक बार तो मन बना ही लिया था कि उपभोक्ता फोरम में चला जाए पर फिर … क्योंकि उधर कोई असर नहीं पड़ने वाला, जेब से पैसा लगे तो चिंता होती है। सरकारी पैसे के नुक्सान पर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
ऐसा नहीं है कि शिकायतें नहीं कीं पर इन्हें ना सुधरना था सो नहीं सुधरे ! उधर जले पर नमक तब पड़ जाता है जब इनसे जुड़े लोगों की कॉल आती है, फोन ठीक हो गया ? आज भी पहले फोन पर ऐसा पूछने और मेरे नहीं कहने पर उधर से फोन रख दिया गया। कुछ देर बाद फिर ऐसा ही पूछा गया तो पूरी बात बताते-बताते लाइन कट गयी। घंटे बाद फिर फोन आया कि फॉल्ट क्या है ? आप तो बीच में ही फोन रख देते हैं, ये सुनते ही आपे को बाहर जाने से जबरन रोका और बताया कि यही फॉल्ट है, देखें अब क्या होता है। संबंधित लोग अपने खटिए के नीचे भी सोंटा घुमाते हैं या सिर्फ निजी कंपनियों पर ही नकेल कस अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री समझ लेते हैं।
6 टिप्पणियां:
MTNL का लैंडलाइन कभी नहीं लगवाना चाहिये। यहां ना शिकायतों की सुनवाई है और ना त्रुटियां दूर होती हैं। इनका कस्टमर केयर पर वार्तालाप करने के लिये घंटो तक इंतजार भी करना पड सकता है आपको
अगर आपके पास MTNL का दूरभाष कनेक्शन है तो आप इसे केवल एक ही तरीके से कटवा सकते हैं और वो है बिल ना भरना और ब्रॉडबैंड कनेक्शन है तो प्लान बदलवाने के लिये पिछले प्लान से बडा प्लान लेने की मजबूरी है।
वर्तमान में एयरटेल इनसे बहुत दामों में 100 गुणा बेहतर सुविधायें और प्लान दे रहा है।
प्रणाम
Sohil ji, kash "prabhuu" bhi aapki tippani padh paate
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-10-2015) को "जब समाज बचेगा, तब साहित्य भी बच जायेगा" (चर्चा अंक - 2133) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Aabhaar Shashtri ji
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, दिमागी हालत - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Shivam ji,
aabhar
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