सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

रामलीला के संवादों में हिंग्लिश की सेंध

कुछ लोगों का मानना है कि  रामलीला में  "इस लक्ष्मण रेखा को पार मत कीजिएगा" जैसे संवाद में  आजकल के बच्चे रेखा शब्द का अर्थ नहीं समझ पाते इसलिए अब इस संवाद को बदल कर "यह लाइन मत क्रॉस करना" कर देने से बात सब की समझ में आ जाएगी। "लक्ष्मण रेखा लांघना" और "लाइन क्रास करना" दोनों  के भावों में जमीन-आसमान का फर्क है।  पर उनके अनुसार हिंग्लिश जैसी भाषा, जो आम बोली जाती है के उपयोग में कोई बुराई नहीं है। गोया कि बच्चे को सात्विक भोजन के गुण न समझा कर उसके मन का फास्ट-फ़ूड परोस दिया जाए !!!

समय करवट ले रहा है। यह तो सनातन प्रक्रिया है। बदलाव में प्रगति निहित है। पर कभी-कभी लगता है कि इस क्रिया में कुछ लोग अति-उत्साहित हो अतिरेक भी कर जाते हैं। अब जैसे शारदीय नवरात्र के अवसर पर देश भर
में सैंकड़ों जगह आयोजित की जाती हैं राम-लीलाऐं। समय के साथ-साथ इनमें भी भारी बदलाव आए हैं।फिर चाहे वे तकनीकी में हों, "ग्लैमर" में हो, मंच-सज्जा में हों, वेश-भूषा, परिधान में हों, सब स्वागत योग्य ही हैं, बशर्ते यह सब ग्रंथ की गरिमा के अनुरूप हों। सबसे बड़ी बात है इन कथाओं में प्रयुक्त होने वाले संवाद और उनकी भाषा। यह सही है कि संवाद ऐसे होने चाहिए जो हर तरह के अवाम को समझ में आ जाएं। पर ऐसे भी ना हों कि आम नाटकों की तरह उनमें चलताऊ भाषा का प्रयोग किया गया हो। पर कुछ ऐसे ही बदलावों की पदचाप सुनाई देने  लगी है।


दिल्ली की एक रामलीला कमेटी के कर्ता-धर्ता की तरफ से कुछ ऐसा ही बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने संवादों में अंग्रेजी शब्दों यानी युवाओं में लोकप्रिय हिंग्लिश के उपयोग की हिमायत की है। उदाहरण स्वरुप उनका कहना है कि अब तक सीता जी के जोर देने पर लक्ष्मण, राम की खोज में जाने के पहले कुटिया के द्वार के आगे एक लकीर खींच कर सीता जी से कहते रहे हैं कि इस लक्ष्मण रेखा को पार मत कीजिएगापर आजकल के बच्चे रेखा शब्द का अर्थ नहीं समझ पाते इसलिए अब इस संवाद को बदल कर "यह लाइन मत क्रॉस करना" कर देने से बात सब की समझ में आ जाएगी। हमारी संस्कृति में लक्ष्मण रेखा एक आदर्श बन चुकी है। इस संवाद ने लोकोक्ति का रूप ले लिया है। जो गहराई इस संवाद में है वह लाइन क्रास करने में कहाँ से आ पाएगी। राम कथा का एक-एक संवाद अपने-आप में पूर्ण शिक्षा है। ऐसे कदम हमारी शिक्षा प्रणाली पर भी सवाल खड़ा करते हैं। क्या आज की शिक्षा इतनी लचर है कि वह बच्चों को रेखा जैसे हिंदी के आसान शब्दों का अर्थ भी नहीं समझा सकती। जिस रामायण ने वर्षों भारतीयों को दुःख में सुख में, लाचारी में बेबसी में, देश में विदेश में अपनी संस्कृति से बांधे रखा।  सर्वाधिक लोकप्रिय जो कथा देश के नागरिकों के रोम-रोम में समाई हुई है। जो आज तक गांव-गवईं, अनपढ़, अशिक्षित सभी की समझ में आती रही, उसे ही लोग शायद अपने-आप को कुछ ज्यादा ही प्रगतिशील और खुले विचारों का दर्शाने के लिए मिटाने पर तुले हुए हैं।

विडंबना है कि कोशिश यह नहीं की गयी कि बच्चों को रेखा का अर्थ समझाया जाए, उसके बदले संवाद की आत्मा पर ही हमला कर दिया गया है। "लक्ष्मण रेखा लांघना" और "लाइन क्रास करना" दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है। उनका कहना है कि पहले रामलीला के संवाद संस्कृत में होते थे फिर उसका स्थान हिंदी ने ले लिया तो अब हिंग्लिश जैसी भाषा, जो आम बोली जाती है के उपयोग में कोई बुराई नहीं है। गोया कि बच्चे को सात्विक भोजन के गुण न समझा कर उसके मन का फास्ट-फ़ूड परोस दिया जाए। पर बात यहीं ख़त्म नहीं हो रही। कुछ लोग हिंदी रजतपट के "बैड मैंनों" की लोकप्रियता को भुनाने के लिए अपने यहां बुला रहे हैं और इतना ही नहीं आने वाले वे लोग अपनी फिल्मों के पुराने किरदारों द्वारा बोले गए तथाकथित लोकप्रिय संवाद तथा लटके-झटके यहां मंच पर भी चिपकाएंगे, और फिर बात यहीं तक रह जाएगी यह भी तो तय नहीं है। अपने-अपने खेल को और प्रचार दिलाने, अधिक से अधिक भीड़ जुटाने के लिए आयोजक किस हद तक जाएंगे कैसे-कैसे हथकंडे अपनाएंगे यह कौन कह सकताा है। हो सकता है फिल्मों की तरह द्वि-अर्थी और गाली-गलौच से भरपूर संवाद असुरों को और नीच-हीन दिखाने के नाम पर ठूंस दिए जाएं !  

धीरे-धीरे बची-खुची श्रधा, भक्ति, आस्था जैसी भावनाऐं तिरोहित होती जा रही हैं या कहिए कर दी जा रही हैं और उनकी जगह बाज़ार अपने पूरे लाव-लश्कर और बुराई के साथ हावी होने की फिराक में आ खड़ा हुआ है।  हर काम की तरह न्यायालय का मुंह जोहने से तो अच्छा है कि ऐसी बातों पर शुरू से ही अकुंश लग जाए।     

7 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Shastri ji
aabhaar

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन का आभार

कविता रावत ने कहा…

ये हिंग्लिश की मानसिकता वाले लोग ले डुबोना चाहते है हिंदी को। . फैशन बन गया है यह। ऐसे लोग इंग्लिश तो बोल नहीं पाते है चलताऊ इंग्लिश क्या आये की झाड़ने लगते हैं फिर हिंदी क्या बोलेंगे इसलिए हिंग्लिश से रौब झाड़ना उनको अच्छा लगता है। बच्चों को हिंदी नहीं आती, उनकी समझ में नहीं आता, ये सब बहाना भर है। दुःख होता है ऐसे प्रसंग देखकर... .

virendra sharma ने कहा…

आहट है कैसी वक़्त ये कैसा है आ गया ?
क्या खून में मेरे कोई पानी मिला गया !!
बनती थी पहली रोटी जहाँ गाय के लिए !
उस मुल्क में रोटी से कोई गाय खा गया !!

virendra sharma ने कहा…

मौज़ू मुद्दा उठाया है आपने।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

वीरेन्द्र जी, सोच कर ही कोफ़्त होती है जब फिल्मों से आए तथाकथित कलाकारों की नौटंकी रामायण के दूसरे पात्रों पर भारी पड़ने लगेगी। जिस तरह फिल्मों के संवाद अश्लीलता को छू-छू कर वापस आते हैं वैसा ही कुछ यहां भी ना होने लगे।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कविता जी, ऐसे लोगों की किसी भी भाषा पर पकड़ नहीं होती। पर हाव-भाव ऐसा होता है जैसे अगला अकादमी इन्हीं के लिए हो !

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