रोयापुरम, तब |
भारत में पहली बार रेल 16 अप्रैल 1853 के दिन चली थी। इसके बाद धीरे-धीरे इसे अपनी सुविधा के अनुसार अंग्रेजों ने देश भर में इसका विस्तार किया। इसके साथ ही रेलवे स्टेशनों की भी आवश्यकता महसूस होनी ही थी। सो उनका भी निर्माण शुरू हो गया। उस समय उन्हें बड़े भव्य रूप में बनाया जाता था, जिसके फलस्वरूप आज हमारे पास हावड़ा, शिवाजी टर्मिनस तथा चेन्नई सेन्ट्रल जैसे विशाल तथा कलात्मक स्टेशन मौजूद हैं। पर सबसे पुराने यानी पहले स्टेशन को, जो अभी भी कार्यरत हो, खोजा जाए तो रोयापुरम स्टेशन का नाम सामने आता है, (बंबई और थाणे के स्टेशन अब काम में नहीं लिए जाते हैं) इसे दक्षिण भारत के पहले रेलवे स्टेशन होने का गौरव भी प्राप्त है।
रोयापुरम, अब |
यह चेन्नई-अराकोणम सेक्शन में स्थित है। इसका निर्माण 28 जून 1856 में संपन्न हुआ था। कुछ ही दिनों बाद 1 जुलाई 1856 से यहां से गाड़ियों का चलना भी आंरभ हो गया था। शुरू में यहां से दो गाड़ियां चलाई गयीं जो रोयापुरम से अम्बुर और तिरुवल्लुर के लिए चलती थीं। एग्मोर स्थान्तरित होने के पहले 1922 तक यह मद्रास और महराठा रेलवे का हेड ऑफिस भी रहा। रख-रखाव के अभाव में इसका अधिकाँश भाग खंडहर में बदल गया था जिसका जीर्णोद्धार 2005 में जा कर संभव हो पाया। आज देश के 800 स्मारकों की धरोहर में इसका भी स्थान है।
4 टिप्पणियां:
रोचक एवं ज्ञानवर्धक पोस्ट !
धन्यवाद
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-04-2015) को 'तिलिस्म छुअन का..' (चर्चा अंक-1958) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
नविन जानकारी ,आभार
काव्य सौरभ (कविता संग्रह ) --द्वारा -कालीपद "प्रसाद "
ठाने के बारे में ही जाना था अब तक!
रोचक जानकारी!
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