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दुनिया भर में पेस्ट बनाने में तरह-तरह के तत्व काम में लाए गए। अच्छी-बुरी हर वस्तु को आजमाया गया।यहां तक कि साबुन को भी इसमें मिलाया गया। क्योंकि उद्देश्य सिर्फ दांत साफ करना ही नहीं था बल्कि दुर्गन्धित सांस से छुटकारा पाने की भी इच्छा इसके पीछे थी। आज उपलब्ध पेस्ट का पितामह, पर्शियन संगीतकार "जिराइब" द्वारा ईजाद एक गाढ़े पदार्थ को माना जा सकता है। उसे किन चीजों से बनाया गया था यह जानकारी तो आज उपलब्ध नहीं है। पर वह चीज अपने उद्देश्य में खरी उतरती थी इसलिए अपने समय में काफी लोक-प्रिय थी। इस पर शोध होते रहे, अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग जगहों पर इसे और लोकप्रिय बनाने का काम जारी रखा। पर पेस्ट को पूरा ध्यान 1850 में मिलना शुरू हुआ। उस समय पेस्ट को डिब्बों में भर कर बेचा जाता था, जिसे "Creme Dentifrice" नाम दिया गया था। इसी समय 1873 में कोलगेट का मंच पर अवतरण हुआ, जिसने व्यावसायिक तौर पर बड़े पैमाने में पेस्ट बनाने की शुरुआत की। इसी ने सबसे पहले 1890 में पेस्ट को ट्यूब में रख बाजार में उतारा। जिसका नाम "रिबन डेंटल क्रीम" रखा था, क्योंकि यह ट्यूब से रीबन की तरह निकलती थी। चूँकि यह ब्रश पर आसानी से लग जाती थी इसलिए ये बहुत जल्दी लोकप्रिय हो गयी। यह अपने आप में एक अनोखा आविष्कार था। पर आज जिस तरह की लचीली ट्यूब में हम पेस्ट को पाते हैं उसकी खोज सबसे पहले 1892 में वाशिंगटन शेफील्ड ने की थी। धीरे-धीरे पेस्ट को सुगंधित करने के साथ-साथ उसमें औषधीय गुणों वाले पदार्थों को भी सम्मिलित किया जाने लगा, जिससे मुंह की सफाई के साथ-साथ दांतों की बीमारियों और उनके पीलेपन से भी निजात मिल सके। समय के साथ-साथ बहुतेरी कंपनियां बाज़ार में अपने-अपने दावों के साथ आ दटीं और दुनिया भर के पेस्ट बाज़ार में उपलब्ध होने लगे। लोगों को लुभाने के लिए तरह-तरह के वादे किए जाने लगे, साथ ही रंग-बिरंगे पेस्ट के साथ जेल जैसा उत्पाद भी बाज़ार में आ गया। पहली बार दांत साफ करने वाले बच्चों के लिए भी बाज़ार में पेस्ट उपलब्ध है जो निगले जाने पर भी नुकसानदेह नहीं होता। जान कर आश्चर्य होना स्वाभाविक है कि इसकी ईजाद "नासा" ने अंतरिक्ष यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए की थी।

समय के साथ-साथ लोगों का रुझान प्राकृतिक वस्तुओं की तरफ होने लगा है जिसको देखते हुए कंपनियों ने जड़ी-बूटियों से बने "हर्बल" पेस्ट भी बाज़ार में उतार दिए हैं। धार्मिक ज्ञान या योग विद्या सिखाने वाली संस्थाएं इस तरह के उत्पादनों को बाज़ार में उतार चुकी हैं। वैसे इनमें से कई लाभप्रद भी साबित हुए हैं। अब तो घरेलू और पालतू जानवरों के लिए भी मुंह-दांत साफ करने के उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं।
यानी पेस्ट अनंत, पेस्ट कथा अनंता हो गयी है।
8 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (23-08-2014) को "चालें ये सियासत चलती है" (चर्चा मंच 1714) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया रही पेस्ट कथा!
बढ़िया काम की जानकारी , सर धन्यवाद !
I.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत रोचक जानकारी...
उम्दा जानकारी
आप सब का आभार के साथ हार्दिक स्वागत है।
badhiyaaan jaankaari...
very interesting,Very nice article
https://dexterthetester.blogspot.in
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