होली का त्यौहार कबसे शुरू हुआ यह कहना बहुत ही मुश्किल है। पुराणों व पुराने कथानकों में इससे संबंधित अनेकों कथाएं मिलती हैं।
महाभारत मं उल्लेख है कि ढोढा नामक एक राक्षसी ने अपने कठोर तप से महादेवजी को प्रसन्न कर अमर होने का वरदान प्राप्त कर लिया था। अंधेरे में रहने के कारण उसे रंगों से बहुत चिढ थी। उसने अपने स्वभावानुसार चारों ओर अराजकता फैलानी शुरू कर दी। तंग आकर लोग गुरु वशिष्ठजी की शरण में गये तब उन्होंने उसे मारने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि सिर्फ निष्पाप बच्चे ही उसका नाश कर सकते हैं। इसलिये यदि बच्चे आग जला कर उसके चारों ओर खूब हंसें, नाचें, गाएं, शोर मचाएं तो उससे छुटकारा पाया जा सकता है। ऐसा ही किया गया और ढोढा का अंत होने पर उसके आतंक से मुक्ति पाने की खुशी में रंग बिखेरे गये। तब से दुष्ट शक्तियों के नाश के लिये इसे मनाया जाने लगा।
दूसरी कथा ज्यादा प्रामाणिक लगती है। कहते हैं कि हमारे ऋषि-मुनियों ने देवताओं, सूर्य, इंद्र, वायू, की कृपा से प्राप्त नये अन्न को पहले, धन्यवाद स्वरूप, देवताओं को अर्पित कर फिर ग्रहण करने का विधान बनाया था। जाहिर है नया अन्न अपने साथ सुख, स्मृद्धि, उल्लास, खुशी लेकर आता है। सो इस पर्व का स्वरूप भी वैसा ही हो गया। इस दिन यज्ञ कर अग्नि के माध्यम से नया अन्न देवताओं को समर्पित करते थे इसलिये इसका नाम ”होलका यज्ञ” पड़ गया था। जो बदलते-बदलते होलिका और फिर होली हो गया लगता है।
एक और उल्लेख भी मिलता है। जिसके अनुसार वैदिक काल में एक अनुष्ठान किया जाता था, जिसे सोमयज्ञ कहते थे। यह अपने आप में अनूठा तथा विशेष प्रकार का यज्ञ होता था। इसे संपन्न करवाने के लिए कर्मकांडी वेद पाठी दूर-दूर से बुलाए जाते थे। जो करीब साल भर कठोर नियमों से बंधे रह कर इसे पूरा करते थे। इसे पूरा करने के नियम बहुत कठोर हुआ करते थे जिनमें भूल और छूट की कोई गुंजाइश नहीं होती थी। इसीलिए इस यज्ञ के सफलता पूर्वक पूर्ण होने पर खूशी का माहौल बनता था और इतने दिनों तक नियम-कायदे से बंधे लोग अपनी शारीरिक और मानसिक थकान मिटाने के लिए सारे वातावरण को उल्लास और आनंद से भर देते थे।
इस पर्व का नाम होलका से होलिका होना भक्त प्रह्लाद की अमर कथा से भी संबंधित है। जिसमें प्रभु भक्त प्रह्लाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप के जोर देने पर उसकी बुआ होलिका उसे गोद में ले अग्नि प्रवेश करती है पर प्रह्लाद बच जाता है।
इसी दिन राक्षसी पूतना का वध कर व्रजवासियों को श्री कृष्ण जी ने भयमुक्त किया था। जो त्यौहार मनाने का सबब बना।
पर इतने उल्लास, खुशी, उमंग, वैमन्सय निवारक त्यौहार का स्वरूप आज विकृत होता या किया जा रहा है। हंसी-मजाक की जगह अश्लील गाने, फूहड़ नाच, कुत्सित विचार, द्विअर्थी संवाद, गंदी गालियों की भरमार, काले-नीले ना छूटने वाले रंगों के साथ-साथ वैर भुनाने के अवसर के रूप में इसका उपयोग कर इस त्यौहार की पावनता को नष्ट करने की जैसे साजिश चल पड़ी है। समय रहते कुछ नहीं हुआ तो धीरे-धीरे लोग इससे विमुख होते चले जायेंगे।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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17 टिप्पणियां:
आपने सही लिखा है पर मुझे लगता है कि कोई एक त्यौहार ऐसा भी होना चाहिए जिसमे हम अपने दिल का सारा गुबार बाहर निकाल दें, खूब पागलपन करें, बच्चे बन जाएँ, नाचें गायें, किसी की चिंता न करें कोई फ़िक्र ना करें
सिर्फ इतना ध्यान रखें कि हमारी वजह से किसी का नुकसान ना हो
पाठकों पर अत्याचार ना करें ब्लोगर
आपने बहुत रोचक वर्णन प्रस्तुत किया है , होली के विषय में आपकी पोस्ट पढ़कर बहुत ज्ञानवर्धन हुआ ...आपका आभार ..आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें
बहुत बढ़िया आलेख!
--
मस्त फुहारें लेकर आया,
मौसम हँसी-ठिठोली का।
देख तमाशा होली का।।
--
होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
बहुत ही बढ़िया, रोचक और ज्ञानवर्धक पोस्ट रहा!
आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
बहरहाल पर्व बहुत अच्छा है.
होली की शुभकामनायें...... हैप्पी होली
होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
भजन करो भोजन करो गाओ ताल तरंग।
मन मेरो लागे रहे सब ब्लोगर के संग॥
होलिका (अपने अंतर के कलुष) के दहन और वसन्तोसव पर्व की शुभकामनाएँ!
अत्यंत रोचक और ज्ञानवर्धक आलेख.
होली पर्व की घणी रामराम.
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
आइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।
पोस्ट पढ़कर बहुत ज्ञानवर्धन हुआ ...
आपको और आपके परिवार को होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
गगन जी, नमस्ते.
अवसर अनुकूल उपयोगी जानकारी दी आपने.
लेकिन इस तरह की कथाओं का संबंध वेदों से कतई नहीं रहा.
हाँ ऐसे उल्लेख पुराणों में मिल सकते हैं और महाभारत जैसे ऐतिहासिक काव्य-ग्रंथों में भी मिल सकते हैं.
HOLI PARV KI HARDIK BADHAI....
रंगों की चलाई है हमने पिचकारी
रहे ने कोई झोली खाली
हमने हर झोली रंगने की
आज है कसम खाली
होली की रंग भरी शुभकामनाएँ
प्रतुल जी,
लिखने के प्रवाह में वेद भी लिपट गये होंगे। सुधार कर देता हों।
धन्यवाद।
आपको और आपके परिवार को ढेरों शुभकामनाएं। आने वाला समय अपने साथ इस पर्व की ही तरह खुशियां लाए, रंगों के साथ।
बहुत-बहुत बधाई . रंग-पर्व की अनेकानेक शुभकामनाएं .
manish jaiswal
Bilaspur
मौसम हँसी-ठिठोली का।
--
होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
manish jaiswal
bilaspur
chhattisgarh
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