मंगलवार, 22 जुलाई 2025

एक वीरांगना की उपेक्षित जन्मस्थली

जो स्थान या स्मारक प्रत्येक भारतीय के लिए एक तीर्थ के समान होना चाहिए, उसी क्षेत्र की जानकारी विदेश तो क्या देश के भी ज्यादातर लोगों को नहीं है ! हम में से अधिकांश लोग रानी का संबंध सिर्फ झाँसी से जोड़ कर ही देखते हैं ! इसीलिए ज्यादातर पर्यटक बनारस के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों और घाटों का अवलोकन कर वापस लौट जाते हैं ! इसका कारण भी है, उन्हें इस जगह की पूरी जानकारी ही उपलब्ध नहीं हो पाती, नाहीं करवाने की कोई चेष्टा ही की जाती है.........!

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झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई, जिसके नाम से देश का बच्चा बच्चा परिचित है ! एक ऐसी वीरांगना, जिसने मात्र 23 वर्ष की आयु में ही ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से मोर्चा लिया और अपना लोहा मनवाया ! 1857 के स्वाधीनता संग्राम का विवरण जिसके उल्लेख के बिना अधूरा है, उस महान हस्ती का जन्म गंगा तट पर स्थित शिव जी की प्रिय पौराणिक नगरी काशी में हुआ था, जिसे संसार की सबसे पुरानी नगरी और आज बनारस के नाम से भी जाना जाता है !
फ़र्रूख़ाबाद के महल में उपलब्ध रानी लक्ष्मीबाई का चित्र
क्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1835 (स्मारक में दी गई जानकारी के अनुसार) को वाराणसी में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कह कर बुलाया जाता था। जो समय के साथ आगे चल कर झाँसी की रानी के नाम से विश्वविख्यात हुईं और उसी नाम से देश में भी उन्हें जाना जाने लगा ! उनके बारे में ऐसा कुछ भी नहीं है जो देश-वासियों को ज्ञात ना हो ! परंतु बनारस में स्थित उनकी जन्मस्थली के बारे में विदेश की तो छोड़ें देश के लोगों को भी पूरी जानकारी नहीं है ! 
जन्मस्थली में अश्वारूढ़ प्रतिमा 
क्ष्मीबाई जी की माता के देहावसान के बाद उनके पिता मोरो पंत जी उन्हें अपने साथ मराठा शासक बाजीराव के दरबार में ले गए। वहीं उनका लालन-पालन हुआ। तब लक्ष्मीबाई की उम्र तकरीबन चार साल की थी ! उसके बाद से ही उनका वापस वाराणसी लौटना नहीं हो पाया ! रानी लक्ष्मी बाई की जन्म-स्थली बनारस के भदैनी क्षेत्र में स्थित है ! यहीं उनके नाम का एक स्मारक बना उन्हें समर्पित किया गया है ! 


पर विडंबना है कि जो स्थान या स्मारक प्रत्येक भारतीय के लिए एक तीर्थ के समान होना चाहिए, उसी क्षेत्र की जानकारी विदेश तो क्या देश के भी ज्यादातर लोगों को नहीं है ! हम में से अधिकांश लोग रानी का संबंध सिर्फ झाँसी से जोड़ कर ही देखते हैं ! इसीलिए ज्यादातर पर्यटक बनारस के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों और घाटों का अवलोकन कर वापस लौट जाते हैं ! इसका कारण भी है, उन्हें इस जगह की पूरी जानकारी ही उपलब्ध नहीं हो पाती, नाहीं करवाने की कोई चेष्टा ही की जाती है ! 

स्कूल की ईमारत का पृष्ठ भाग 
उस पर चिंता का विषय यह भी है कि जन्म-स्थली का रख-रखाव भी समुचित तौर पर नहीं होता है ! बगीचा झाड़-झंखाड़ों से भरा हुआ है ! लॉन की घास की कटाई कई-कई दिनों तक नहीं होती लगती ! क्यारियां बेतरतीब हैं ! हालांकि रानी का जीवन परिचय दीवारों पर बहुत सुन्दर तरीके से उकेरा गया है, पर इतनी बड़ी हस्ती को एक छोटी सी जगह में समेट कर रख दिया गया है ! कृतियाँ बहुत सुन्दर व कलात्मक हैं, पर दीवारों पर काई की कालिख भी उभरने लगी है ! कहीं कहीं टाइलें भी दरकने लगी हैं ! उनकी और भी देख-भाल की जरुरत है, जो बिना समय गंवाए होनी चाहिए ! बगल की ईमारत में शायद स्कूल खुल गया है, जहां से बच्चों का शोरगुल यहां के माहौल की शांति में खलल डालता है ! स्थानीय युवाओं के लिए यह निर्जन स्थान उनके खाली समय को व्यतीत करने का जरिया सा बन गया है ! देश की इस धरोहर को संरक्षित कर और भव्य बना प्रचारित करने की अति आवश्यकता है !

भित्तिचित्र 
स्वतंत्रता के बाद देश के विभिन्न भागों में जहां तरह-तरह के नेताओं की स्मृतियों में अनेक स्मारक और भव्य संरचनाएं बनाई गईं, वहीं वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का जन्मस्थान, उनकी मृत्यु के 167 वर्ष बाद भी एक उपेक्षित स्थल की तरह ही है। स्थानीय निवासियों को भी इस बारे में आवाज उठानी चाहिए और प्रदेश सरकार को भी धर्मिक पर्यटन क्षेत्र की उन्नति के साथ-साथ इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण के लिए उचित कार्यवाही करनी चाहिए ! 
  
@रानी लक्ष्मीबाई का चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से    

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