जैसे ही रात गहराती है, दिन भर का थका यात्री जब रात के ग्यारह-बारह बजते-बजते सोने की तैयारी करता है तभी डिब्बे की सारी बत्तियां बंद कर दी जाती हैं और अँधेरे में शुरू हो जाता है कुछ लोगों का अपना काला धंदा। अभी तो कुछ ऐसे मामले भी सामने आए हैं जब बाकायदा टिकट लेकर चोरी को अंजाम देने की कोशिश की जाती रही है.
मोदी जी ने आते ही देश में बुलेट ट्रेन चलाने की अपनी इच्छा जाहिर की थी। अच्छी बात है सफर में समय कम लगेगा, काम जल्द निपटेंगे, लोगों के समय की बचत होगी, तरक्की में इजाफा होगा, देश उन विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आ जाएगा, जहां ऐसी तीव्रगामी ट्रेंने दौड़ती हैं। पर उसके पहले जो गाड़ियां बदहाल अवस्था में जर्जर पटरियों पर चल रही हैं उनके सुधार के बारे में भी सोचना बहुत जरूरी है।
गाड़ियां ही गाड़ियां |
हजारों करोड़ों के बजट के इस विभाग को सरकार भी निजी हाथों में नहीं देना चाहती। आमदनी के मामले में हमारी रेल कामधेनु के बराबर है। दसियों सालों से देखा जा रहा है कि मिली-जुली सरकारें बनने पर इस विभाग को हथियाने के लिए तनातनी जरूर होती है। सभी मलाई खाना चाहते हैं. पर इसकी बदहाली पर कोई ध्यान नहीं देता. दूध दुहने पर सब उतारू रहते हैं पर चारा देते समय पैसे का रोना ले बैठ जाते हैं. आज हाल यह है कि जिन गिनी-चुनी गाड़ियों पर रेल विभाग गर्व करता है वे भी बदहाली का शिकार हैं. फिर चाहे वो राजधानी एक्स. हो या फिर जन-शताब्दी, उनके डिब्बों के बाहरी और अंदरूनी हालात सोचनीय अवस्था को प्राप्त हो चुके हैं.
बदहाल हालत |
दिन ऐसा जाता हो जब ऎसी खबर न मिलती हो की फलानी गाड़ी में फलाना घटना घट गयी। शायद ही कोई ऐसा खुशनसीब हो जो सफर पूरा होने के बाद यात्रा को याद रखना चाहता हो।
आज ऐसा कौन सा दुष्कर्म नहीं है जो रात के अँधेरे में दौड़ती इन दूरगामी गाड़ी रूपी बस्तियों में नहीं होता. देह व्यापार से लेकर स्मगलिंग, उठाईगिरी, झपट-मारी, नशीले पदार्थों की उपलब्धी, आरक्षण के बावजूद लोगों की रेल-पेल, क्या कुछ नहीं झेल रहे यात्रा करते यात्री। जैसे ही रात गहराती है, दिन भर का थका यात्री जब रात के ग्यारह-बारह बजते-बजते सोने की तैयारी करता है तभी डिब्बे की सारी बत्तियां बंद कर दी जाती हैं और अँधेरे में शुरू हो जाता है कुछ लोगों का अपना काला धंदा। अभी तो कुछ ऐसे मामले भी सामने आए हैं जब बाकायदा टिकट लेकर चोरी को अंजाम देने की कोशिश की जाती रही है.
जर्जरावस्था |
आज भी रेल, यात्रा का सबसे सस्ता साधन है और लाख मुसीबतों के बावजूद लोगों के लिए इसमें सफर करने के अलावा कोई और बेहतर विकल्प उपलब्ध नहीं हैं. शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जिसने अपने जीवन में इस सुविधा का लाभ न उठाया हो. पर इसमे यात्रा करने की सोचते ही आम आदमी को तरह-तरह के बखेड़ों का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ जाता है, फिर चाहे वो टिकट का इंतजाम हो, चाहे जगह के लिए मारा-मारी करनी पड़ती हो, चाहे यात्रा के दौरान सुरक्षा और खाने-पीने के इंतजामात की हो, कुछ भी हो आम आदमी की मजबूरी है इसमे अपने गंत्वय तक जाने के लिए इसके उपयोग की. सो पहले मौजूदा गाड़ियों को सुरक्षित करना पहला लक्ष्य होना चाहिए।