इस इंजिन का निर्माण 1962 में हुआ था। उसी साल इसकी टक्कर दूसरी रेल गाडी से हो गयी जिसमें 18 लोगों की मौत हो गयी और करीब 35 लोग घायल हो गये थे।
करीब 6-7 महीने की मरम्मत के बाद जब फिर यह पटरी पर आया तो 1963 की 8 अगस्त को इससे जुड़ी गाड़ी में उस समय की सबसे बड़ी डकैती पड़ गयी। जिस पर बाद मे एक सफल फिल्म का निर्माण भी किया गया था। कुछ दिनों बाद 1964 में इस पर काम करते एक कर्मचारी की करंट लगने से मौत हो गयी। इसके साथ घटने वाली छोटी-मोटी दुर्घटनाओं की तो कोई गिनती ही नहीं थी। 1965 में तेज गति से चलते समय इसके सारे 'ब्रेक' फेल हो गये, घबड़ाहट में इसके चालक की ह्रदय गति थमने से मृत्यु हो गयी, रेल्वे कर्मचारियों की सूझ-बूझ से इसकी पटरी बदल इसे एक खड़ी मालगाड़ी से टकरवा कर रोका गया, जिससे एक बड़ी दुर्घटना घटने से बच गयी, सिर्फ कुछ लोगों को मामूली चोटें आयीं थीं।
करीब 6-7 महीने की मरम्मत के बाद जब फिर यह पटरी पर आया तो 1963 की 8 अगस्त को इससे जुड़ी गाड़ी में उस समय की सबसे बड़ी डकैती पड़ गयी। जिस पर बाद मे एक सफल फिल्म का निर्माण भी किया गया था। कुछ दिनों बाद 1964 में इस पर काम करते एक कर्मचारी की करंट लगने से मौत हो गयी। इसके साथ घटने वाली छोटी-मोटी दुर्घटनाओं की तो कोई गिनती ही नहीं थी। 1965 में तेज गति से चलते समय इसके सारे 'ब्रेक' फेल हो गये, घबड़ाहट में इसके चालक की ह्रदय गति थमने से मृत्यु हो गयी, रेल्वे कर्मचारियों की सूझ-बूझ से इसकी पटरी बदल इसे एक खड़ी मालगाड़ी से टकरवा कर रोका गया, जिससे एक बड़ी दुर्घटना घटने से बच गयी, सिर्फ कुछ लोगों को मामूली चोटें आयीं थीं।जब किसी भी तरह इसके साथ या इसके द्वारा होने वाली दुर्घटनाओं को नहीं रोका जा सका तो इसे रिटायर कर यार्ड़ में खड़ा कर दिया गया।




