मंगलवार, 1 सितंबर 2015

उनका धुआँ हमारे धुएँ से सस्ता क्यों ?

दबे पाँव आ पैर पसारने वाली, आपका कानून भी नहीं मानती और टैक्स की भी चोरी कर रही है। उस पर यह आशंका सदा बनी रहती है कि कम कीमत पर बाहर से आई यह वस्तु ज्यादा हानिकारक भी हो सकती है........ 

ये नीतियां कैसे बनती हैं, क्यों बनती हैं, कौन बनाता है और क्या देख समझ कर बनाता है, नहीं पता यह सब  कभी-कभी  गडबडझाला सा लगता है। समझ में ही नहीं आता कि इससे क्या लाभ होगा या क्या परिणाम होगा या कहीं इसने करवट बदल ली तो क्या अंजाम होगा। पर एक बात तो है नीतियां बनाने वाले या वालों को कभी कोई फर्क शायद ही पड़ता हो पर फल सदा जनता को ही भुगतना पड़ता है।  
भारतीय ब्रांड 

अभी एक खबर पढ़ी कि चीन की बनी सिगरेटों ने भी भारतीय बाज़ार पर कब्जा करना शुरू कर दिया है। अपने देश में बनी सिगरेटों की कीमत चीन वाली बहनों से पांच गुनी ज्यादा है। एक तरफ तो सरकार लाखों रुपये यह समझाने में खर्च कर रही है कि सिगरेट-बीड़ी पीना सेहत के लिए कितना खतरनाक है,   वहीं वह तंबाखू परिशोधन करने 
वालों से मिलने वाले करोड़ों रुपयों का लालच भी नहीं छोड़ पा रही। देशवासियों की सेहत से ज्यादा कीमती तो कुछ भी नहीं होना चाहिए फिर भी यदि एक बार मान भी लें कि सिगरेट फैक्ट्रियां बंद करने में बहुत सारी अडचने हैं तो यह दूसरे देश, वह भी सबसे ताकतवर प्रतिद्वंदी, से इस प्रकार की हानिकारक जींस मंगवा कर और उसे इतनी सस्ती दर पर बे-रोक-टोक बिकते जाने की इजाजत किसने दी ?



यह तो  चौ-तरफा नुक्सान है।  एक तरफ तो आप चिल्ला-चिल्ला कर मना करते हो कि मत पी ! यह धुँआ तेरी जान ले लेगा !!  इसी भय को हौआ बना सिगरेट कंपनियों से मनमाना राजस्व वसूलते हो।  दूसरी तरफ एक के बदले पांच-पांच सिगरेटें उपलब्ध करवाते हो ! दबे पाँव आ पैर पसारने वाली, आपका कानून भी नहीं मानती और टैक्स की भी चोरी कर रही है। उस पर यह आशंका सदा बनी रहती है कि कम कीमत पर बाहर से आई यह वस्तु ज्यादा हानिकारक भी हो सकती है। यह कैसी नीति है जो अपनी फैक्ट्रियों को नुक्सान भी पहुंचाती हो और लोगों की सेहत से भी खिलवाड़ करने की पूरी छूट देती हो ? 

1 टिप्पणी:

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
कभी यहाँ भी पधारें

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