एक बहुत पुरानी कहानी है, पर अभी भी सामयिक है और सबक लेने लायक है कि असल जिंदगी में कहानी के रूपक ऊंट की नकेल समय रहते कस देनी चाहिए नहीं तो ये खुद को ही मालिक समझ व्यक्ति, देश, समाज सभी के लिए खतरा बन उन्हें मुसीबत में डाल सकता है ! हमने देखा भी है कि कैसे ऐसे ऊंट रूपी मनुष्यों, संस्थाओं, विचारधाराओं ने अपना हित साधने हेतु देश की प्रगति को बाधित किया है, उसकी उन्नति में रोड़े नहीं पत्थर अटकाए हैं ................!
#हिन्दी_ब्लागिंग
हुआ कुछ यूं ! एक आदमी अपने ऊँट के साथ किसी रेगिस्तान से हो कर गुजर रहा था। चलते-चलते रात होने को आई तो उसने एक जगह रुक कर ऊँट को बांधा और तम्बू गाड़ उसमें अपने लिए रात बिताने का इंतजाम किया। रेगिस्तान की रातें बहुत ठंडी होती हैं, तो जैसे-जैसे रात गहराई ठंड भी बढ़ने लगी। बाहर ऊँट को ठंड लगी तो उसने धीरे से कहा, मालिक, बाहर बहुत ठंड है, क्या मैं अपनी नाक तम्बू के अंदर कर लूँ ? आदमी दयालु था ! उसे तरस आ गया, उसने कहा, ठीक है, कर लो !
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मालिक रहम करो |
थोड़ी देर बाद ऊँट ने पूछा, क्या मैं अपना सिर भी साथ ला सकता हूँ ? आदमी ने फिर आज्ञा दे दी ! कुछ ही देर बाद ऊँट ने फिर पूछा, मालिक, क्या मैं अपनी गर्दन भी अंदर कर लूँ. बाहर ठंड कुछ ज्यादा ही है ! आदमी को अपने ऊँट से बहुत लगाव था, उसने इसकी भी इजाजत दे दी !
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हक बनती सुविधाएं |
पर ऊँट कहां रुकने वाला था ! उसकी मांग बढ़ती गई और धीरे-धीरे उसने अपने अगले पैर, फिर धड़ और फिर पूरा शरीर ही तम्बू के अंदर कर लिया ! उसके अंदर आ जाने से तम्बू पूरा भर गया और उस आदमी के लिए ही जगह नहीं बची ! ऐसा देख ऊँट ने उस आदमी यानी अपने मालिक से कहा कि इसमें हम दोनों के लिए जगह नहीं बची है, इसलिए तुम्हें बाहर निकल जाना चाहिए !
तो भाई लोग ! हर बात पर बिना सोचे-समझे सहमति प्रदान नहीं करनी चाहिए ! नाहीं बातों को छोटा समझ अनदेखा करना चाहिए ! दया-करुणा दिखाने के पहले पात्र का परिक्षण तो अति आवश्यक हो गया है ! क्योंकि ऐसे दी गईं सहूलियतों को हक मान लिया जाता है और ऐसी छोटी-छोटी भूलें ही आगे चल कर विकराल समस्याओं का रूप ले लेती हैं ! यदि इस भाई ने पहले ही ऊँट की थूथन पर छड़ी मार दी होती तो भविष्य में वह कभी भी ऐसी हिमाकत ना करता !
@कार्टून अंतर्जाल के सौजन्य से
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