#हिन्दी_ब्लॉगिंग
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
शनिवार, 31 मई 2025
बिनोद का मुंगेरी वाला सपना
रविवार, 18 मई 2025
भगत, किसिम-किसिम के
भक्त ! यह शब्द सुनते ही जो तस्वीर दिमाग में उभरती है वह होती है किसी ऐसे इंसान की जो प्रभु के प्रति पूर्णतया समर्पित हो ! जो अपने इष्ट के प्रति आस्था, समर्पण तथा अटूट श्रद्धा रखता हो !द्वापर में प्रभु ने भक्तों के चार प्रकार बताए थे ! आज द्वेष-भावना तथा कुंठित मनोदशा के चलते, भक्त जैसे सुंदर शब्द का अर्थभक्ष्य कर, एक उपसर्ग लगा तीर बना, वक्रोक्ति की तरह अपने राजनितिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा है , आज के तथाकथित ऐसे भक्तों के भी चार ही प्रकार हैं.............!
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
भक्त ! यह शब्द सुनते ही जो तस्वीर दिमाग में उभरती है वह होती है किसी ऐसे इंसान की जो प्रभु के प्रति पूर्णतया समर्पित हो ! जो अपने इष्ट के प्रति आस्था, समर्पण तथा अटूट श्रद्धा रखता हो ! प्रभु के बाद गुरु इस श्रेणी में आते हैं ! वैसे तो पूजा, वंदना, कीर्तन, अर्चना करने वाले सभी लोग भक्त कहलाते हैं। गीता में इनके चार प्रकारों का उल्लेख है ! इनमें सच्चा भक्त वह कहलाता है जो निष्काम होता है, उसे अपने प्रभु को छोड़ और कुछ नहीं चाहिए होता ! यह तो हुआ भक्त शब्द का असली अर्थ या उसकी परिभाषा !
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आधुनिक भक्त |
बेशर्मभक्त - ये वे अनुयायी होते हैं, जो अपने इष्टों के भूतकालीन कुकर्मो, दुष्कर्मों को जानते हुए भी उसके दुर्गुणों का, उसके दुष्कर्मों का बेशर्मी से बचाव करते नहीं शरमाते ! अपने स्वामी की दुर्बुद्धि को भी विश्वस्तरीय अक्लमंदी स्थापित करने में जी-जान से लगे रहते हैं ! चारणाई में इनका विश्व में कोई सानी नहीं होता ! मालिक बैठने को बोले तो ये लेटने को तत्पर रहते हैं ! इनकी अपनी कोई जमीन नहीं होती, इसलिए अपने स्वामी की दूकान को चलायमान रखने में कोई कसर नहीं छोड़ते ! इनके लिए अपने मालिक की झूठी ही सही, आन-बान के सामने किसी भी चीज यानी किसी भी चीज की कीमत कोई मायने नहीं रखती ! वैसे भक्त की जगह इन्हें जर-खरीद गुलाम कहा जाना ज्यादा सही है !
निर्लज्जभक्त - इनका तो कहना ही क्या ! इनका मालिक यदि नर संहार भी करवा दे तो भी ये मरने वालों को ही दोषी ठहरा उन्हीं को गरियाते रहेंगे ! इनके द्वारा अपने आका को, दुनिया का हर कुकर्म करने के बावजूद सबसे बुद्धिमान, चतुर, सच्चा तथा ईमानदार स्थापित करने का गुर आता है ! ये सदा अपने विरोधी पक्ष को संसार का सबसे बड़ा दुराचारी, भ्रष्टाचारी, देशद्रोही निरूपित करते रहते हैं ! इनके आत्ममुग्ध बॉस के दो चेहरे होते हैं। सार्वजनिक जीवन में वह सदा मुखौटा लगाए रहता है ! दोगलेपन का वह शातिर खिलाड़ी होता है ! इनके चेले अपने विरुद्ध हुए हर दोष का कारण विपक्षी को साबित करने में दिन-रात एक कर देते हैं ! साथ ही दुनिया के किसी भी अच्छे काम का श्रेय खुद लेने और सच को झूठ बनाने में इनका कोई जवाब नहीं होता !
* स्वार्थी या मतलबीभक्त - जैसा नाम है वैसा ही इनका काम है ! ये किसी के नहीं होते ! इनका मालिक कोई इंसान नहीं, कुर्सी यानी सत्ता होती है ! जिसका प्रभुत्व होता है ये उसी का राग गाते हैं ! इनको सिर्फ अपने हित, अपने स्वार्थ से मतलब रहता है ! जिसकी सत्ता, ये उसी के ये भक्त होते हैं ! दिन में दो बार सत्ता बदल जाए तो ये भी तुरंत तोते की तरह आँख फेर लेते हैं !
इनके अलावा भी एक प्रजाति होती है पर उसे भक्त नहीं कहा जा सकता ! वे पेड कारकून होते हैं ! कई बार सड़कों पर उलटी-सीधी मांगों वाली तख्तियां उठाए ये नजर आ जाते हैं ! कहीं भीड़ इकट्ठी करनी हो ! बवाल मचाना हो ! अराजकता फैलानी हो ! जुलुस निकालना हो ! किसी की जय-जयकार करवानी हो तो इनका ''उपयोग'' किया जाता है ! इनको सिर्फ अपनी तनख्वाह या नोटों से मतलब होता है उसके लिए इनसे कुछ भी करवाया जा सकता है !
आज की पोस्ट सिर्फ एक निष्पक्ष विश्लेषण है, जो अनुभव के आधार पर किया गया है ! इसमें कोई दुर्भाव, पूर्वाग्रह या किसी से द्वेष का रंचमात्र भी स्थान नहीं है, इसलिए अन्यथा ना लें ! यदि ले भी लेंगे तो भी सच्चाई तो सच्चाई ही रहेगी 😇
@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
बुधवार, 7 मई 2025
इसके पहले कि ऊँट तम्बू हथियाए
एक बहुत पुरानी कहानी है, पर अभी भी सामयिक है और सबक लेने लायक है कि असल जिंदगी में कहानी के रूपक ऊंट की नकेल समय रहते कस देनी चाहिए नहीं तो ये खुद को ही मालिक समझ व्यक्ति, देश, समाज सभी के लिए खतरा बन उन्हें मुसीबत में डाल सकता है ! हमने देखा भी है कि कैसे ऐसे ऊंट रूपी मनुष्यों, संस्थाओं, विचारधाराओं ने अपना हित साधने हेतु देश की प्रगति को बाधित किया है, उसकी उन्नति में रोड़े नहीं पत्थर अटकाए हैं ................!
#हिन्दी_ब्लागिंग
हुआ कुछ यूं ! एक आदमी अपने ऊँट के साथ किसी रेगिस्तान से हो कर गुजर रहा था। चलते-चलते रात होने को आई तो उसने एक जगह रुक कर ऊँट को बांधा और तम्बू गाड़ उसमें अपने लिए रात बिताने का इंतजाम किया। रेगिस्तान की रातें बहुत ठंडी होती हैं, तो जैसे-जैसे रात गहराई ठंड भी बढ़ने लगी। बाहर ऊँट को ठंड लगी तो उसने धीरे से कहा, मालिक, बाहर बहुत ठंड है, क्या मैं अपनी नाक तम्बू के अंदर कर लूँ ? आदमी दयालु था ! उसे तरस आ गया, उसने कहा, ठीक है, कर लो !
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मालिक रहम करो |
थोड़ी देर बाद ऊँट ने पूछा, क्या मैं अपना सिर भी साथ ला सकता हूँ ? आदमी ने फिर आज्ञा दे दी ! कुछ ही देर बाद ऊँट ने फिर पूछा, मालिक, क्या मैं अपनी गर्दन भी अंदर कर लूँ. बाहर ठंड कुछ ज्यादा ही है ! आदमी को अपने ऊँट से बहुत लगाव था, उसने इसकी भी इजाजत दे दी !
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हक बनती सुविधाएं |
पर ऊँट कहां रुकने वाला था ! उसकी मांग बढ़ती गई और धीरे-धीरे उसने अपने अगले पैर, फिर धड़ और फिर पूरा शरीर ही तम्बू के अंदर कर लिया ! उसके अंदर आ जाने से तम्बू पूरा भर गया और उस आदमी के लिए ही जगह नहीं बची ! ऐसा देख ऊँट ने उस आदमी यानी अपने मालिक से कहा कि इसमें हम दोनों के लिए जगह नहीं बची है, इसलिए तुम्हें बाहर निकल जाना चाहिए !
तो भाई लोग ! हर बात पर बिना सोचे-समझे सहमति प्रदान नहीं करनी चाहिए ! नाहीं बातों को छोटा समझ अनदेखा करना चाहिए ! दया-करुणा दिखाने के पहले पात्र का परिक्षण तो अति आवश्यक हो गया है ! क्योंकि ऐसे दी गईं सहूलियतों को हक मान लिया जाता है और ऐसी छोटी-छोटी भूलें ही आगे चल कर विकराल समस्याओं का रूप ले लेती हैं ! यदि इस भाई ने पहले ही ऊँट की थूथन पर छड़ी मार दी होती तो भविष्य में वह कभी भी ऐसी हिमाकत ना करता !
@कार्टून अंतर्जाल के सौजन्य से
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अपनी एक पुरानी डायरी मे यह रोचक प्रसंग मिला, कैसा रहा बताइयेगा :- काफी पुरानी बात है। अंग्रेजों का बोलबाला सारे संसार में क्यूं है? क्य...