शनिवार, 31 मई 2025

बिनोद का मुंगेरी वाला सपना

भइया जी, चाहे ऐसा ना भी हो, पर कम से कम ई तो होइहे सकता है कि विपच्छी दल का अनुभवी और निष्णात लोगन का सलाह, देश हित में जो भी सत्तारूढ़ दल हो, ले लिया करे ! अब देखिए ना, कोई भी सरकार बदल जाता है तो भी पुरनका अफसर लोग तो वहिऐं ना रहता है ! ऊ लोग तो पाटी नहीं देशे का सेवा ना करता रहता है ! वैसा ही नेता लोग काहे नहीं कर सकता है ?" 

#हिन्दी_ब्लॉगिंग 

डोर बेल बजी ! शाम के सात बजा चाह रहे थे, पर अभी भी बहुत गर्मी थी ! कौन आ गया, सोचते हुए दरवाजा खोला तो सामने बिनोद था ! उसे देख अच्छा लगा, बहुत दिनों बाद आया था ! उसके प्रणाम का जवाब देते-देते उसे अंदर लिवा लाया ! चाय बन ही रही थी, उस में थोड़ा सा मटेरियल और बढ़ा दिया गया ! सामयिक विषयों पर बातों के दौरान मुझे लग रहा था कि बिनोद के दिमाग में जरूर कुछ ना कुछ चल रहा है जो वह मुझसे साझा करना चाहता है ! 

मेरा अंदाजा बिलकुल सही था। चाय ब्रेक के तुरंत बाद ही वह शुरू हो गया ! 

भइया जी, अभी जो सिंदूर ऑप्रेशन के बाद अल्हदा-अल्हदा पाटी का नेता लोग को ले कर जो डेलिगेशनवा देश का पच्छ रखने के लिए बाहर भेजा गया है, ऊही से एक सवाल मन में उठता है कि देश का भलाई में जब ऐसा किया जा सकता है, तो फिर अपना देश का राजनीतिक दल एकाकार हो देश की अच्छाई के लिए काम क्यों नहीं कर सकता ? वैसे भी हम सब लोग देखा ही है कि अपना हित के लिए कई राज्य में घोर विरोधी भी आपस में हाथ मिलाता रहता है ! दुनिया की भलाई को देखते हुए अलग-अलग सोच वाला लोग भी मिल कर काम करने लगता है ! तो पाटी अपनी जगह है, अपना विचार अपनी जगह है पर जब देश का बात आता है तो देश का पाटी काहे एक नहीं हो जाता है ? अगर ऐसा हो जाए तो देश का विकास अऊर तेज हो सकता है ! देश का एकता मजबूत हो सकता है ! सबसे पहले तो देशे ही है ना ?"

मैं एकदम चौंक पड़ा ! आज के युवा की ऐसी सकारात्मक सोच देश के उज्जवल भविष्य की द्योतक है। सामान्य होने में कुछ क्षण लगे, फिर कहा, बिलकुल सही सोच रहे हो, बिनोद ! आजादी की शुरुआत में कुछ-कुछ ऐसा माहौल था भी, पर शायद लालसा, अहम या भिन्न विचारधाराओं के चलते नए-नए दल बनते गए और देश पिछड़ता गया !"

हाँ भइया जी, बहुते दिन से हम एही सोच रहे थे कि यदि ऐसा हो जाए तो टुच्ची राजनीति के दिन खत्मे हो जाएंगे ! मउका-परस्तों का दुकाने बंद हो जाएगा ! भयादोहन का नामोनिशान मिट जाएगा, अउर सबसे बड़का बात, पूरण बहुमत हो जाने से देश हित में तुरंत फैसला लिया जा सकेगा जो ओछी राजनीती के कारण टलता चला जाता रहता है !''

बिनोद ! भगवान करे तुम्हारी यह सोच निकट भविष्य में साकार हो जाए परंतु आज तो यह विचार मुंगेरी लाल के सपने की तरह ही है, क्योंकि आज हमारे देश के हर दल में कुछ ऐसे पूर्वाग्रही लोग विराजमान हैं जो अपने मतलब के ऊपर और कुछ नहीं देखते ! अपनी वर्षों पुरानी लीक छोड़ना नहीं चाहते ! अपनी सोच ही उन्हें सर्वोपरि लगती है ! उनके लिए देश गौण है !"

पर भइया जी, चाहे ऐसा ना भी हो, पर कम से कम ई तो होइहे सकता है कि विपच्छी दल का अनुभवी और निष्णात लोगन का सलाह देश हित में जो भी सत्तारूढ़ दल हो, ले लिया करे ! अब देखिए ना, कोई भी सरकार बदल जाता है तो भी पुरनका अफसर लोग तो वहिऐं ना रहता है ! ऊ लोग तो पाटी नहीं देशे का सेवा ना करता रहता है ! वैसा ही नेता लोग काहे नहीं कर सकता है ?" 

बिनोद ! यह सब कहने-सुनने में बहुत अच्छा लगता है ! पर यदि ऐसा होने लगेगा तो सत्तारूढ़ दल के अच्छे कामों के कारण उसकी लोकप्रियता बढ़ती ही चली जाएगी और यह बात विरोधी दलों को बिलकुल अच्छी नहीं लगेगी क्योंकि इसीके चलते उनका सत्ता में आने का अवसर कम होता चला जाएगा और आज के समय में सत्ता-विहीन रहना कौन पसंद करता है ! इसके अलावा मौकापरस्तों के द्वारा दल-बदल की संभावना भी बढ़ सकती है !"

(गहरी सांस).....आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं, भइया जी ! अच्छाई के साथ दस ठो बुर्रइये भी साथे चला आता है। पर बुड़बक लोग ई नहीं समझता है कि देश है तभी इनका पाटी है !'' 

वही कह रहा हूँ ! रेगिस्तान में तो फिर भी पानी मिलने की उम्मीद हो सकती है पर फिलहाल इस विचार के फलीभूत होने की कोई भी संभावना अभी तो नहीं दिखती ! उस पर खेद इस बात का है कि जागरूकता बढ़ने के बावजूद हमारे स्वभाव, हमारी फितरत में कोई ज्यादा फर्क नहीं आ पाया है। 

जकल तो चलन ही हो गया है किसी के अच्छे काम में भी बुराई ढूंढना, मौका तलाशते रहना दूसरे की टांग खिंचाई का, चाहे इसके चलते खुद की ही  स्थिति हास्यास्पद क्यों ना हो जाए, चाहे देश की प्रतिष्ठा ही दांव पर क्यों ना लग जाए ! ऐसे परिवेश में वैसी एकता की बात तो दूर की क्या कहीं की कौड़ी भी नहीं लगती ! 

आज समय की मांग है कि हमें और सजग हो, समाज को जागरूक करना है ! अपने समर्पित, कर्मठ, योग्य, देश-हितकारी नायकों को पहचानने और उनका साथ देने और खड़े होने की जरुरत है ! आजके अधिकांश एक्सीडेंटल या छप्पर फाडू उपलब्धि वाले लोग नेता होने या कहलाने के लायक ही नहीं हैं ! जरुरत है ऐसे धूर्त और मक्कार लोगों की सच्चाई सामने लाने और उन्हें उनकी वाजिब औकात दिखा उन्हें दरकिनार करने की ! जरुरी नहीं है कि अपराधी को मार ही दिया जाए, उसकी जलालत, उसकी बेकद्री, उसकी अवहेलना, उसके लिए मौत से ज्यादा बदतर साबित हो सकती है !"

मु झको अपने अंदर एक तीखी सी कसमसाहट, एक छटपटाहट, जल्द कुछ ना कर पाने की बेचैनी, दिमाग पर एक अजीब सा बोझ महसूस हो रहा था, जो मेरी साँसों के साथ बाहर निकल कमरे में पसर कर वहां के माहौल में भी एक भारीपन तारी करने लगा था..........!  

इससे छुटकारा पाने का एक ही उपाय था ! सो फिर अंदर गुहार लगाई एक कड़क चाय के लिए   

रविवार, 18 मई 2025

भगत, किसिम-किसिम के

भक्त ! यह शब्द सुनते ही जो तस्वीर दिमाग में उभरती है वह होती है किसी ऐसे इंसान की जो प्रभु के प्रति पूर्णतया समर्पित हो ! जो अपने इष्ट के प्रति आस्था, समर्पण तथा अटूट श्रद्धा रखता हो !द्वापर में प्रभु ने भक्तों के चार प्रकार बताए थे ! आज द्वेष-भावना तथा कुंठित मनोदशा के चलते, भक्त जैसे सुंदर शब्द का अर्थभक्ष्य कर, एक  उपसर्ग लगा तीर बना, वक्रोक्ति की तरह अपने राजनितिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा है , आज के तथाकथित ऐसे भक्तों के भी चार ही प्रकार हैं.............!                            

#हिन्दी_ब्लॉगिंग 

भक्त ! यह शब्द सुनते ही जो तस्वीर दिमाग में उभरती है वह होती है किसी ऐसे इंसान की जो प्रभु के प्रति पूर्णतया समर्पित हो ! जो अपने इष्ट के प्रति आस्था, समर्पण तथा अटूट श्रद्धा रखता हो ! प्रभु के बाद गुरु इस श्रेणी में आते हैं ! वैसे तो पूजा, वंदना, कीर्तन, अर्चना करने वाले सभी लोग भक्त कहलाते हैं। गीता में इनके चार प्रकारों का उल्लेख है ! इनमें सच्चा भक्त वह कहलाता है जो निष्काम होता है, उसे अपने प्रभु को छोड़ और कुछ नहीं चाहिए होता ! यह तो हुआ भक्त शब्द का असली अर्थ या उसकी परिभाषा ! 

अपने यहां सदा से ही अलग-अलग विचारधाराओं के राजनितिक दल अपने विपक्षियों को नीचा दिखाने के लिए तरह-तरह के हथकंडों का इस्तेमाल करते रहे हैं ! उन्हीं में से एक है शब्द-बाण यानी बातों के तीर ! आज द्वेष-भावना तथा कुंठित मनोदशा के चलते, भक्त जैसे सुंदर शब्द का अर्थभक्ष्य कर, एक उपसर्ग लगा तीर बना, वक्रोक्ति की तरह अपने राजनितिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा है ! द्वापर में प्रभु ने भक्तों के चार प्रकार बताए थे ! आज के भक्तों के भी चार ही प्रकार हैं ! उन्हीं का विश्लेषण !

आधुनिक भक्त 
अंधभक्त - ये उन लोगों के लिए वितृष्णा के साथ प्रयोग में लाया जाता है, जिन्हें तथाकथित रूप से सत्ता पर काबिज दल के हिमायती के रूप में देखा जाता है ! पर असलियत में ऐसा है नहीं ! कुछेक को छोड़ कर हमारे देश के लोग, जब तक मोह-भंग न हो जाए या असलियत सामने ना आ जाए, तब तक हर उस इंसान या दल का साथ देने को तत्पर रहते हैं, जिसको वह देश-हितैषी समझते हैं ! आजादी के बाद से कई बार इसके उदाहरण मिलते रहे हैं ! ऐसे लोग बहुत भावुक होते हैं। देश के लिए समर्पित। इसीलिए कभी-कभी भावनाओं के वश में हो धूर्तों के वाग्जाल में फंस, धोखे में आ, उनको भी सर पर बैठा लेते हैं ! पर सच सामने आते ही उन्हें धूल चटाने से भी बाज नहीं आते ! कुछ लोग इन्हीं लोगों की भावनाओं से कुंठित और लगातार अपनी अवनति के चलते, उन्हें व्यंग्यात्मक शब्दों का निशाना बना लेते हैं ! पर सच्चाई यही है कि इस श्रेणी के भक्तों के लिए कोई इंसान नहीं, देश सबसे पहले और सर्वोपरि होता है !

बेशर्मभक्त - ये वे अनुयायी होते हैं, जो अपने इष्टों के भूतकालीन कुकर्मो, दुष्कर्मों को जानते हुए भी उसके दुर्गुणों का, उसके दुष्कर्मों का बेशर्मी से बचाव करते नहीं शरमाते ! अपने स्वामी की दुर्बुद्धि को भी विश्वस्तरीय अक्लमंदी स्थापित करने में जी-जान से लगे रहते हैं ! चारणाई में इनका विश्व में कोई सानी नहीं होता ! मालिक बैठने को बोले तो ये लेटने को तत्पर रहते हैं ! इनकी अपनी कोई जमीन नहीं होती, इसलिए अपने स्वामी की दूकान को चलायमान रखने में कोई कसर नहीं छोड़ते ! इनके लिए अपने मालिक की झूठी ही सही, आन-बान के सामने किसी भी चीज यानी किसी भी चीज की कीमत कोई मायने नहीं रखती ! वैसे भक्त की जगह इन्हें जर-खरीद गुलाम कहा जाना ज्यादा सही है !

निर्लज्जभक्त - इनका तो कहना ही क्या ! इनका मालिक यदि नर संहार भी करवा दे तो भी ये मरने वालों को ही दोषी ठहरा उन्हीं को गरियाते रहेंगे ! इनके द्वारा अपने आका को, दुनिया का हर कुकर्म करने के बावजूद सबसे बुद्धिमान, चतुर, सच्चा तथा ईमानदार स्थापित करने का गुर आता है ! ये सदा अपने विरोधी पक्ष को संसार का सबसे बड़ा दुराचारी, भ्रष्टाचारी, देशद्रोही निरूपित करते रहते हैं ! इनके आत्ममुग्ध बॉस के दो चेहरे होते हैं। सार्वजनिक जीवन में वह सदा मुखौटा लगाए रहता है ! दोगलेपन का वह शातिर खिलाड़ी होता है ! इनके चेले अपने विरुद्ध हुए हर दोष का कारण विपक्षी को साबित करने में दिन-रात एक कर देते हैं ! साथ ही दुनिया के किसी भी अच्छे काम का श्रेय खुद लेने और सच को झूठ बनाने में इनका कोई जवाब नहीं होता !  

* स्वार्थी या मतलबीभक्त - जैसा नाम है वैसा ही इनका काम है ! ये किसी के नहीं होते ! इनका मालिक कोई इंसान नहीं, कुर्सी यानी सत्ता होती है ! जिसका प्रभुत्व होता है ये उसी का राग गाते हैं ! इनको सिर्फ अपने हित, अपने स्वार्थ से मतलब रहता है ! जिसकी सत्ता, ये उसी के ये भक्त होते हैं ! दिन में दो बार सत्ता बदल जाए तो ये भी तुरंत तोते की तरह आँख फेर लेते हैं !

इनके अलावा भी एक प्रजाति होती है पर उसे भक्त नहीं कहा जा सकता ! वे पेड कारकून होते हैं ! कई बार सड़कों पर उलटी-सीधी मांगों वाली तख्तियां उठाए ये नजर आ जाते हैं ! कहीं भीड़ इकट्ठी करनी हो ! बवाल मचाना हो ! अराजकता फैलानी हो ! जुलुस निकालना हो ! किसी की जय-जयकार करवानी हो तो इनका ''उपयोग'' किया जाता है ! इनको सिर्फ अपनी तनख्वाह या नोटों से मतलब होता है उसके लिए इनसे कुछ भी करवाया जा सकता है !  

आज की पोस्ट सिर्फ एक निष्पक्ष विश्लेषण है, जो अनुभव के आधार पर किया गया है ! इसमें कोई दुर्भाव, पूर्वाग्रह या किसी से द्वेष का रंचमात्र भी स्थान नहीं है, इसलिए अन्यथा ना लें ! यदि ले भी लेंगे तो भी सच्चाई तो सच्चाई ही रहेगी 😇   

@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

बुधवार, 7 मई 2025

इसके पहले कि ऊँट तम्बू हथियाए

एक बहुत पुरानी कहानी है, पर अभी भी सामयिक है और सबक लेने लायक है कि असल जिंदगी में कहानी के रूपक ऊंट की नकेल समय रहते कस देनी चाहिए नहीं तो ये खुद को ही मालिक समझ व्यक्ति, देश, समाज सभी के लिए खतरा बन उन्हें मुसीबत में डाल सकता है ! हमने देखा भी है कि कैसे ऐसे ऊंट रूपी मनुष्यों, संस्थाओं, विचारधाराओं ने अपना हित साधने हेतु देश की प्रगति को बाधित किया है, उसकी उन्नति में रोड़े नहीं पत्थर अटकाए हैं ................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

हुआ कुछ यूं ! एक आदमी अपने ऊँट के साथ किसी रेगिस्तान से हो कर गुजर रहा था। चलते-चलते रात होने को आई तो उसने एक जगह रुक कर ऊँट को बांधा और तम्बू गाड़ उसमें अपने लिए रात बिताने का इंतजाम किया। रेगिस्तान की रातें बहुत ठंडी होती हैं, तो जैसे-जैसे रात गहराई ठंड भी बढ़ने लगी। बाहर ऊँट को ठंड लगी तो उसने धीरे से कहा, मालिक, बाहर बहुत ठंड है, क्या मैं अपनी नाक तम्बू के अंदर कर लूँ ? आदमी दयालु था ! उसे तरस आ गया, उसने कहा, ठीक है, कर लो ! 

मालिक रहम करो 

थोड़ी देर बाद ऊँट ने पूछा, क्या मैं अपना सिर भी साथ ला सकता हूँ ? आदमी ने फिर आज्ञा दे दी ! कुछ ही देर बाद ऊँट ने फिर पूछा, मालिक, क्या मैं अपनी गर्दन भी अंदर कर लूँ. बाहर ठंड कुछ ज्यादा ही है ! आदमी को अपने ऊँट से बहुत लगाव था, उसने इसकी भी इजाजत दे दी !  

हक बनती सुविधाएं 

पर ऊँट कहां रुकने वाला था ! उसकी मांग बढ़ती गई और धीरे-धीरे उसने अपने अगले पैर, फिर धड़ और फिर पूरा शरीर ही तम्बू के अंदर कर लिया ! उसके अंदर आ जाने से तम्बू पूरा भर गया और उस आदमी के लिए ही जगह नहीं बची ! ऐसा देख ऊँट ने उस आदमी यानी अपने मालिक से कहा कि इसमें हम दोनों के लिए जगह नहीं बची है, इसलिए तुम्हें बाहर निकल जाना चाहिए !

तो भाई लोग ! हर बात पर बिना सोचे-समझे सहमति प्रदान नहीं करनी चाहिए ! नाहीं बातों को छोटा समझ अनदेखा करना चाहिए ! दया-करुणा दिखाने के पहले पात्र का परिक्षण तो अति आवश्यक हो गया है ! क्योंकि ऐसे दी गईं सहूलियतों को हक मान लिया जाता है और ऐसी छोटी-छोटी भूलें ही आगे चल कर विकराल समस्याओं का रूप ले लेती हैं ! यदि इस भाई ने पहले ही ऊँट की थूथन पर छड़ी मार दी होती तो भविष्य में वह कभी भी ऐसी हिमाकत ना करता !  

@कार्टून अंतर्जाल के सौजन्य से 

विशिष्ट पोस्ट

बुड़बक समझ लिए हो ? कोउनो दिन माथा फिरा गिया ना, तो फिर.......😡

अरे ! हम लोग धर्म-भीरु हैं, सरल हैं, भोले हैं ! सभी लोगों पर विश्वास कर लेते हैं ! तभी तो कोई लाल-हरी चटनी खिला कर, कोई पानी छिड़क कर, कोई धु...