बुधवार, 23 अप्रैल 2025

सपूत

हेमंत जब चुप हुआ तो रामगोपाल जी उससे आँखें नहीं मिला पा रहे थे ! अपने आप को बेटे के सामने बौना महसूस कर रहे थे ! लाज आ रही थी उन्हें अपनी सोच और निराधार विचारों पर ! आक्रोश था अपने पर कि कैसे उन्होंने अपने बेटे के बारे में गलत सोच लिया ! क्या उन्हें खुद अपने  दिए संस्कारों पर भी भरोसा नहीं रह गया था ! वे उठे और बेटे को कस कर गले से लगा लिया, आँखों से आंसू लगातार बहे जा रहे थे ! हेमंत उन्हें ऐसे संभाल रहा था जैसे वह उनका पिता हो........!

#हिन्दी_ब्लागिंग    

शाम की चहलकदमी के बाद रामगोपाल जी घर आ, नम आँखों के साथ पत्नी रमा की फोटो के सामने बहुत देर तक खड़े रहे ! आज उन्हें बिछुड़े हुए पूरा एक साल हो गया था ! पत्नी के देहावसान के पश्चात वे इस शहर में बिलकुल अकेले रह गए थे ! इकलौता बेटा हेमंत अपनी पत्नी स्नेहा और तीन साल की बिटिया के साथ दिल्ली में रहता है ! उसने कई बार कहा, कितनी बार समझाया, इन बारह महीनों में बीसियों बार मनाने की कोशिश की कि पापा हमारे पास आ जाओ ! पर रामगोपाल जी ने, इस उम्र में अकेले रहना ठीक नहीं है, जानते हुए भी दिल्ली जाना गवारा नहीं किया ! वैसे तो वर्षों से उनके साथ रह रहा सहायक दीनू तो था, पर उसकी भी काफी उम्र हो चुकी थी ! 

अलौकिक अनुभूति 
ऐसा  नहीं है कि रामगोपाल जी परिवार के साथ रहना नहीं चाहते थे या उनका आपस में प्रेम नहीं था ! बेटे और उसके परिवार पर वे दिलो-जान से न्योछावर थे ! वो तो पोती को सदा अपने कंधे पर बैठाए, उसका घोड़ा बना रहना चाहते थे ! उसकी एक-एक हरकत को संजो लेना चाहते थे ! उसकी मासूमियत को यादगार बना लेना चाहते थे ! पर आए दिन अखबारों में छपने वाली खबरें उन्हें आशंकित और विचलित कर देती थीं ! उनके दिल में एक अनजाना डर, एक काल्पनिक खौफ घर कर गया था ! रोज ही कोई ना कोई ऐसी घटना सामने आ जाती थी, जिसमें सारी सम्पत्ति हथिया या पूरी जमीन-जायदाद अपने नाम कर बेटा-बहू, माँ-बाप को किसी स्टेशन या एयर पोर्ट पर लावारिस छोड़ गायब हो जाते हैं ! यदि कोई घर ले भी जाता है तो मतलब निकलते ही पालकों को शेष जीवन बिताने के लिए वृद्धाश्रम में छोड़ आता है ! उन्हें अपने बेटे पर विश्वास तो था पर दिल का क्या करें, जो उलटे-सीधे विचारों से इधर-उधर भटकाता रहता था ! 

तभी  फोन की घंटी बजती है ! हेमंत था दूसरी तरफ ! उसने बिना इनको कुछ कहने का मौका दिए, फरमान सुना दिया कि वह दो दिन बाद आ रहा है उनको लेने ! इस बार कोई बहाना नहीं चलने वाला और वे उसके साथ जा रहे हैं ! रामगोपाल जी जानते थे कि बेटा पूर्णतया उन पर गया है जो ठान लिया उसे पूरा करना ही होता है ! इन्होंने सोचा कि चलो कुछ दिन रह आता हूँ, हफ्ते दस दिन में लौट आऊंगा ! पर बेटे ने तो कुछ और ही सोच रखा था।  

पिता-पुत्र 
अगले  कुछ दिन तो बवंडर भरे थे ! उस तूफान में कब सामान पैक हुआ, कब मकान का निपटारा हुआ, कब सारी औपचारिकताएं पूरी हो गईं, कब दिल्ली घर पहुंच गए, पता ही नहीं चला ! जैसे किसी ने सम्मोहित कर दिया हो ! लाख चाह कर भी विरोध नहीं कर पाए रामगोपाल जी ! होश तब आया जब पोती किलकारी मारती हुई उछल कर दद्दू की गोद में चढ़ गई ! उस स्वर्गिक पल में रामगोपाल जी ने सब प्रभु पर छोड़ दिया, जो होगा देखा जाएगा !  

पर मन में एक खटका बना ही हुआ था, क्योंकि उन्हें अपना सामान नजर नहीं आ रहा था ! हेमंत से पूछने पर उसने कहा आप जहां रहेंगे वहां रखवा दिया है ! रामगोपाल जी समझ गए कि मुझे यहां नहीं रहना है ! सामान पहले ही वृद्धाश्रम भिजवा दिया गया है ! आज नहीं तो कल तो जाना ही था, पहले से ही पहुंचा दिया गया है ! तभी हेमंत बोला, पापा आपके लिए एक सरप्राइज है ! रामगोपाल जी ने मन में सोचा काहे का सरप्राइज बेटा, मैं सब जानता हूँ ! तुम भी दुनिया से अलग थोड़े ही हो ! पैसा क्या कुछ नहीं करवा लेता है ! खुद पर क्रोध भी आ रहा था कि सब जानते-समझते भी सब बेच-बाच कर यहां क्यों चले आए ! पर अब तो जो होना था हो चुका था !

तभी हेमंत की आवाज सुनाई पड़ी, पापा चलिए ! रामगोपाल जी के पैर मन-मन भारी हो गए थे, किसी तरह खुद को घसीटते हुए बाहर आ खुद को लिफ्ट में समो दिया ! पर यह क्या ! लिफ्ट नीचे ना जा ऊपर की ओर चल अगले माले पर रुक गई ! उन्हें कुछ समझ नहीं आया ! तभी हेमंत ने बाहर निकल सामने के फ्लैट की घंटी बजाई ! दरवाजा खुला, जिसने खोला उसे देख रामगोपाल जी झटका खा गए, सामने दीनू खड़ा था ! दीनू यहां ? उन्हें बोध ही नहीं हो रहा था कि क्या हो रहा है ! वे कहां हैं ! क्या देख रहे हैं और जो देख रहे हैं वह सच भी है या नहीं ! पर अभी तो कुछ और भी हैरतंगेज होने वाला था !

हेमंत ने अंदर जा आवाज लगाई, काका बाहर आ जाओ, पापा आ गए हैं ! और अंदर से जो आया उसे देख कर तो रामगोपाल जी चकरा कर गिरते-गिरते बचे ! उनके सामने उनके बचपन का, भाई समान, जिगरी यार निशिकांत चला आ रहा था ! निशिकांत ने लपक कर उन्हें गले लगा लिया ! वर्षों के बिछुड़े दोस्तों के मिलन पर सभी की आँखें भीग गईं ! फोन से तो बात होती थी पर मिले अरसा बीत चुका था ! आज ईश्वर की कृपा हुई थी ! पर रामगोपाल जी पूरी तरह असमंजस में थे ! उन्हें सब कुछ किसी नाटक की तरह लग रहा था, जिसमें वे भी थे, पर नहीं थे ! तभी नीचे से बहू का संदेश आ गया, खाना तैयार है !

जब सब खाने की मेज पर इकठ्ठा हुए तो हेमंत ने सारी कहानी का खुलासा किया ! उसने बताया कि उसके अनेक प्रयासों के बावजूद पापा यहां आने के लिए मान नहीं रहे थे ! वह उनके लिए सदा परेशान रहता था। पर कोई हल नहीं निकल पा रहा था ! पर पिछले पखवाड़े जब निशिकांत काका का फोन आया और पता चला कि उनकी तबियत ठीक नहीं रहती, तो मैं उनसे मिलने गया ! वे भी बिलकुल अकेले रहते थे ! उन्होंने शादी वगैरह नहीं की थी ! मैंने उनके पास जा कर सारी परिस्थितियों का जायजा लिया और उसी समय  स्नेहा से मश्विरा कर एक योजना बना डाली।  उसी के तहत निशिकांत काका को भी अपने साथ ले आया ! यह ऊपर वाला फ्लैट भी उन दिनों बिकाऊ था, इसे ले लिया गया ! उसके बाद पापा को यहां कैसे लाया यह आप सब को पता ही है ! रही दीनू काका की बात तो उन्हें इस उम्र में अकेला छोड़ने का तो सोचा भी नहीं जा सकता था ! उनके लिए भी यहां एक अलग कमरे की व्यवस्था है, कोई दिक्कत नहीं होगी ! अब हम सब एक साथ रहेंगे ! मेरा सपना पूरा हुआ ! इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है ! 

हेमंत जब चुप हुआ तो रामगोपाल जी उससे आँखें नहीं मिला पा रहे थे ! अपने आप को बेटे के सामने बौना महसूस कर रहे थे ! लाज आ रही थी उन्हें अपनी सोच और निराधार विचारों पर ! आक्रोश था अपने पर कि कैसे उन्होंने अपने बेटे के बारे में गलत सोच लिया ! उस बेटे के बारे में जो उनका ही नहीं उनसे जुड़े लोगों का भी भला सोचता हो ! क्या उन्हें खुद अपने दिए संस्कारों पर भी भरोसा नहीं रह गया था ! वे उठे और बेटे को कस कर गले लगा लिया, आँखों से आंसू लगातार बहे जा रहे थे ! हेमंत उन्हें ऐसे संभाल रहा था जैसे वह उनका पिता हो ! बहू उनकी पीठ सहला रही थी ! इधर मासूम छुटकी जो यह जान कर ठुमक रही थी कि दादू अब यहीं रहेंगे उसको अब यह सब देख समझ ही नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है !

कुछ दिनों बाद आज फिर रामगोपाल जी पत्नी की तस्वीर के सामने खड़े थे ! सामने कप बोर्ड पर उनके तथा निशिकांत जी के नाम के फिक्स्ड डिपॉज़िट के पेपर रखे हुए थे, जो हेमंत ने दोनों घरों को बेच कर मिली राशि से बनवाए थे ! निशिकांत जी जैसे पत्नी को बता रहे थे कि तुम चिंता मत करना तुम्हारे लायक बेटे ने बिना बोले, अघोषित रूप से  मेरे सा-साथ दीनू तथा निशिकांत हम तीनों की जिम्मेदारी ले ली है ! भगवान उसे सदा सुखी रखें !

@दो चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

10 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हार्दिक आभार ओंकार जी 🙏

शुभा ने कहा…

वाह! बहुत खूबसूरत सृजन!

Sweta sinha ने कहा…

इस युग में ऐसा सपूत मिलना भाग्य की बात है। मन को सुकून देने वाली कहानी सर।ःसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ अप्रैल २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

Anita ने कहा…

वाह, बहुत सुंदर प्रेरणादायक कहानी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी,
अनेकानेक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी,
हार्दिक आभार

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी,
हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शुभा जी
अनेकानेक धन्यवाद 🙏

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