शुक्रवार, 20 मार्च 2015

इम्तिहानी मौसम

अधिकांश किशोर-मुखारविंद जो अबतक  शक्कर के 'श' में छोटी 'इ' की मात्रा लगा टट्टू का 'ट' जोड, जैसे शब्दों को बिना उसका अर्थ समझे, बिना किसी झिझक के सरे आम उगलते रहते थे, वही अब हनुमान चालीसा या शिव स्त्रोत्र जपते नजर आने लगते हैं।   


आजकल प्राकृतिक मौसम के अलावा एक और मौसम अस्तित्व में है वह है इम्तिहानों का मौसम। यह मौसम प्राकृतिक देन ना होकर एक मानव-प्रदत्त ऋतु है। इसके स्थूल फायदे-नुक्सान, जरुरत और कार्यकलाप को नज़रंदाज़ कर जरा हट कर देखें तो पाएंगे कि इस देशव्यापी ऋतु का समाज के एक वृहद वर्ग पर अच्छा-खासा असर पड़ता है। ऐसा पाया गया है कि इस मौसम के आते ही इससे प्रभावित लोग अनायास ही श्रद्धालु और भक्तिरस में सराबोर हो जाते हैं। इसीलिए धर्मस्थलों में आवागमन काफी बढ़ जाता है, पूजा-पाठ, दान-पुण्य में बढ़ोतरी हो जाती है। किताब-कापियां जो इधर-उधर पड़ी रहती थीं अब सिर-माथे लगने लग जाती हैं। 'हाय' और 'बाय' की जगह 'पैरिपौना' ले लेता है। शगुन-अपशगुन का ध्यान रखा जाने
परीक्षा कक्ष में जाने से पहले

लगता है। अधिकांश किशोर-मुखारविंद जो अबतक  शक्कर के 'श' में छोटी 'इ' की मात्रा लगा टट्टू का 'ट' जोड, जैसे शब्दों को बिना उसका अर्थ समझे, बिना किसी झिझक के सरे आम उगलते रहते थे, वही अब हनुमान चालीसा या शिव स्त्रोत्र जपते नजर आने लगते हैं।

कहते हैं कि यदि परीक्षा न हो तो स्कूल-कालेज का समय छात्रों की जिंदगी का बेहतरीन हिस्सा होता है। पर यही परिक्षाएं समाज के एक तबके का सबसे प्रतीक्षित समय भी होता है। इन दिनों पैदा होने वाली मानसिकता का एक ख़ास पेशे से जुड़े चतुर-सुजान लोग फायदा उठाने में कोई गफलत नहीं करते। ये पेशा है भीख मांगने का। वैसे तो यह एक सदाबहार धंधा है जो बारहों-मास, बिना हींग और फिटकरी लगाए फल टपकाता रहता है, पर यह मौसम इनके लिए सर्वाधिक लाभ का मौसम है वह भी बिना ज्यादा मेहनत-मशक्कत के। जिस में बिना दुत्कारे या मुंह बनाए हर कोई इनकी झोली में कुछ न कुछ जरूर डाल देता है। इसीलिए ये लोग अपने-अपने निश्चित ठीहों-इलाकों को छोड़ कालेज, स्कूलों के आस-पास मंडराने लगते हैं। जहां परीक्षार्थियों को अपने आशीर्वचनों से बहला-फुसला उन्हें अपनी अच्छी-खासी आमदनी का जरिया बना लेते हैं। इनके जाल में वे लोग ज़रा ज्यादा ही उलझ जाते हैं जिन्होंने विद्यालयों में दाखिले के बाद अपने समय का सदुपयोग अपने साथी के साथ बाग़-बगिया, मॉल-बाजार, रेस्त्रां-फ़िल्म इत्यादि में किया होता है। उनके लिए पांच-दस रुपये में मिलने वाली दुआ मनोबल बढ़ाने में
वियाग्रा का काम करती है।

वैसे परीक्षा का भूत कुछ होता ही ऐसा है। विद्यार्थी चाहे कितना भी रियाज कर ले, कितने भी सवालों का हल अपने दिमाग में स्टोर कर ले, जैसे ही परीक्षा का समय आता है महाभारत के कर्ण की तरह उसकी यादाश्त 'हैंग' हो जाती है। तब इस परीक्षा रूपी सागर को पार करने के लिए कोई भी, कैसा भी तिनका दिखे उसका सहारा लेने के लिए हाथ बढ़ ही जाता है।

चलिए दुआ करते हैं कि जैसे भी हो इस समर में कूदे हर योद्धा को किनारा मिल जाए।             

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

भारतीय नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार 22-03-2015 को चर्चा मंच "करूँ तेरा आह्वान " (चर्चा - 1925) पर भी होगी!

dj ने कहा…

जैसे ही परीक्षा का समय आता है महाभारत के कर्ण की तरह उसकी यादाश्त 'हैंग' हो जाती है।
वाह सर !शानदार आलेख

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