सोमवार, 2 जनवरी 2012

तीन पैरों वाला फ़ुटबाल का खिलाड़ी

वह अपने तीनों पैरों से दौडने, कूदने, सायकिल चलाने, स्केटिंग करने के साथ-साथ बाल पर बेहतरीनकिकलगाने में पारांगत हो गया था।

आज जब किसी इंसान के हाथ या पैर में एक छोटी सी छठी उंगली भी हो तो उसे प्रकृति का अजूबा माना जाता है, चाहे वह अंग क्रियाशील ना भी हो। पर कुछ ही सालों पहले एक ऐसे इंसान का जन्म हुआ था जिसके तीन पैर थे और तीनों के तीनों हाड़-मांस के और क्रियाशील। उस इंसान का नाम थाफ्रैंक लैतिनी जिसने अपने तीन पैरों की वजह से दुनिया में नाम और दाम दोनों कमाए।

18 मई 89, सिसली के पास, रोसोलिनि कस्बे के एक अस्पताल मे एक बच्चे के जन्म लेते ही नर्स जोरों से चीख पडी, मां घबडा कर रोने लगी, नर्स की चीख सुन पूरे अस्पताल मे हडकंप मच गया। बात ही कुछ ऐसी थी, उस नवजात शिशु के पूर्ण विकसित तीन पैर थे। बहुत छिपाने की कोशिशों के बावजूद यह बात सारे शहर मे फैल गयी। लोग उसे देखने को आतुर हो उठे। इधर बच्चे के मां-बाप ने डाक्टरों से प्रार्थना की कि वे किसी भी तरह आप्रेशन कर इस तीसरी टांग से बच्चे को मुक्ति दिलवा दें। पर डाक्टर विवश थे, उन्हें लग रहा था कि आप्रेशन से या तो बच्चे की मौत हो जाएगी या फिर वह जीवन भर के लिए लकवाग्रस्त हो जाएगा।
समय बीतता गया। फ्रैंक पूरी तरह स्वस्थ रह कर बडा होता गया। उसे अपने इस तीसरे पैर से कोई दिक्कत नहीं थी, बस उसे इसका कुछ उपयोग समझ में नहीं आता था। वह उस पैर से शरीर को सहारा देने का काम लिया करता था। समय आने पर उसके पिता ने उसे एक स्कूल में दाखिल करवा दिया। पर वहां उसके सहपाठियों द्वारा उसका उपहास उडाने और उससे दूरी बनाए रखने के कारण फ्रैंक उदास रहने लगा। पिता ने कारण जान-समझ उसे वहां से हटवा कर एक विकलांगों के स्कूल में भर्ती करवा दिया। वहां के अन्य विकलांग बच्चों को देख उसे महसूस हुआ कि वह तो दूसरे बच्चों की तुलना में बहुत भाग्यशाली है। उसे लगने लगा कि भगवान का दिया यह जीवन बहुत खूबसूरत है। रही बात शारीरिक विकृति की तो उसको भी अपनी विशेषता बनाया जा सकता है। उसे तो अपने तीसरे पैर से किसी तरह की अड़चन ही नहीं है। सिर्फ कपडे सिलवाते समय विशेष नाप की जरूरत पडती है और रही जूतों की बात तो उसने उसका भी बेहतरीन उपाय खोज लिया। वह दो जोडी जुते खरीदता और चौथे फालतू जूते को किसी ऐसे इंसान को भेंट कर देता जिसका एक ही पैर हो।
यहीं से फ्रैंक का अपनी जिंदगी के प्रति दृष्टिकोण बदल गया। उसने अपने जीवन को बेहतर बनाने, उसमें कुछ करने की ठान ली। इसी सोच के कारण वह हर परीक्षा को विशेष योग्यता से पास किया। इतना ही नहीं उसने चार-चार भाषाओं का ज्ञान भी अर्जित किया जो उसके भविष्य में बडा काम आया।

समय के साथ उसकी पढाई पूरी होते-होते उसके पास काम के प्रस्ताव भी आने शुरु हो गये थे, ज्यादातर सर्कस के क्षेत्र से। काफी सोच-विचार कर उसने एक नामी सर्कस में काम करना शुरु कर दिया। दैवयोग से वहां उसे काफी नाम और दाम तो मिला ही साथ ही साथ उसके मन से रही-सही हीन भावना भी खत्म हो गयी। वहां रहते हुए उसने अपने तीसरे पैर का भरपूर उपयोग करना भी सीख लिया। अब वह अपने तीनों पैरों से दौडने, कूदने, सायकिल चलाने, स्केटिंग करने के साथ-साथ बाल पर बेहतरीन ‘किक’ लगाने में पारांगत हो गया था। ऐसे ही उसके एक शो को देख एक नामी फुटबाल क्लब से उसे खेलने की पेशकश की गयी। फ्रैंक ने मौके को हाथ से नहीं जाने दिया। देखते-देखते वह सबसे लोकप्रिय खिलाडी बन गया। लोग बडे से बडे खिलाडी को नजरंदाज कर उसी पर निगाहें गडाए रहते। खेल के दौरान जब वह अपने दोनों पैरों को स्थिर कर तीसरे पैर से किक लगा बाल को खिलाडियों के सर के उपर से दूर पहुंचा देता तो दर्शक विस्मित हो खुशी से तालियां और सीटियां बजाने लगते।

फिर एक समय आया जब पैसा और शोहरत पाने के बाद फ्रैंक की इच्छा घर बसाने की हुई। जल्दि ही उसका विवाह हो गया। सुखी, सफल दांपत्य जीवन बिताते हुए वह चार बच्चों का पिता बना। अपनी विकलांगता को अपनी शक्ति बनाने वाला, उत्कट जिजिविषा और प्रबल इच्छा शक्ति वाले उस इंसान का 22 सितंबर 66 में 77 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।

4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अद्भुत..

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut addbhut prernadaai aalekh.nav varsh ki shubhkamnayen.

पद्म सिंह ने कहा…

बहुत अच्छा लगा ऐसे व्यक्ति के बारे मे जानकार...

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

यदि ऐसा व्यक्ति हमारे देश में होता तब ...
बेशक इसे रोजगार नहीं मिलता लेकिन देवता बनाकर जरूर पूजा जाता....
भक्तों में जयकारा लगता ... बोलो ...
'त्रिपाद स्वामी जी महाराज' की जय.

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