शनिवार, 5 अक्तूबर 2019

आज कितने लोग जानते हैं कि लाल बहादुर शास्त्री जी का उपनाम वर्मा था ?

जैसा कि कायस्थ परिवारों में श्रीवास्तव और वर्मा सरनेम लगता है उसी के अनुसार उनका नाम लाल बहादुर वर्मा रखा गया था। शास्त्री जी शुरू से ही जात-पात, ऊँच-नीच, छुआ-छूत जैसी प्रथाओं के विरोधी रहे थे। समय के साथ जब उन्हें गांधी जी के नेतृत्व में काम करने का अवसर मिला तो उनके विचार और भी परिपक़्व हो गए। उन दिनों काशी विद्यापीठ में ग्रैजुएट डिग्री के बतौर शास्त्री टाइटल मिलता था। चूँकि शास्त्री जी ने यह उपाधि हासिल की हुई थी सो उन्होंने अपने उपनाम वर्मा को हटा कर शास्त्री जोड़ लिया, तबसे वे  लाल बहादुर शास्त्री के नाम से ही जाने और माने जाने लगे..........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
पिछले हफ्ते में देश पूर्णतया गांधीमय रहा। गांधी जी की डेढ़ सौवीं जयंती के लैंडमार्क को मनाने के दिखावे की जैसे होड़ लगी रही। उन्होंने तो करना ही था जिन्होंने शुरू से ही इस नाम को हाई प्रोफ़ाइल कर अपना ट्रेड मार्क बना रखा था ! पर इस बार मौके की नजाकत और आम अवाम की नस पहचान कर कुछ और लोग भी जुटे रहे अपने को उनका अनुयायी सिद्ध करने के लिए ! जबकि कटु सत्य और विडंबना यह है कि आज सिर्फ और सिर्फ इस नाम को अपने मतलब के लिए भुनाने की कोशिश की जाती है। क्योंकि अभी भी यह नाम भारत के भावुक जनमानस में बहुत गहरे तक पैबस्त है और यह पैबस्ती वोटों में तब्दील होती है। 

अब इसे क्या कहें कि देश के सबसे लायक, ईमानदार, विनम्र, मृदु भाषी, हमेशा धीमे बोलने वाले, सादगी और सच्चाई पसंद, वीर और दृढ इच्छाशक्ति के व्यक्ति लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म दिन भी गांधी जी के साथ ही पड़ता है ! देश के दूसरे प्रधान मंत्री के रूप में उनके बिना शोर शराबा किए देश के निर्माण में योगदान और सफल नेतृत्व के कारण वे सदा ही भारतीयों के प्रोत्साहन के महान स्रोत तो रहे ही पूरे विश्व में भी उनकी योग्यता और सक्षमता की प्रशंसा होती रही है। वे तो खैर बिना दिखावे के अपने काम से मतलब रखते थे पर उनकी पार्टी ने भी पता नहीं उन्हें क्यों लो प्रोफाइल व्यक्तित्व  ही बनाए रखा जिसकी वजह से अक्सर लोग उनकी जयंती याद नहीं रख पाते थे, वह तो अब जा कर कुछ महत्व मिलना शुरू हुआ है। पर यह खेद का विषय है किअभी भी उनके बारे में अधिकांश लोगों को पूरी और सही जानकारी नहीं है। आज कितने लोग जानते हैं कि लाल बहादुर शास्त्री जी का असली सरनेम वर्मा था ?   

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय शहर में हुआ. शास्त्री जी का जन्म एक कायस्थ परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था. वो एक स्कूल में शिक्षक थे। जैसा कि कायस्थ परिवारों में श्रीवास्तव और वर्मा सरनेम लगता है उसी के अनुसार उनका नाम लाल बहादुर वर्मा रखा गया था। शास्त्री जी शुरू से ही जात-पात, ऊँच-नीच, छुआ-छूत जैसी प्रथाओं के विरोधी रहे थे। समय के साथ जब उन्हें गांधी जी के नेतृत्व में काम करने का अवसर मिला तो उनके विचार और भी परिपक़्व हो गए। उन दिनों काशी विद्यापीठ में ग्रैजुएट डिग्री के बतौर शास्त्री टाइटल मिलता था। चूँकि शास्त्री जी ने यह उपाधि हासिल की हुई थी सो उन्होंने अपने उपनाम वर्मा को हटा कर शास्त्री जोड़ लिया, तबसे वे  लाल बहादुर शास्त्री के नाम से ही जाने और माने जाने लगे।

आज कई लोग मौका मिलते ही विभिन्न मंचों से, विभिन्न अवसरों पर, कुछ समय के अंतराल पर विनम्रता का मुखौटा लगाए बार-बार अपने पुरखों की उपलब्धियों का जिक्र कर उन्हें महान सिद्ध करने में गुरेज नहीं करते। शास्त्री जी तो थे ही सरल, सहज और आडम्बर रहित पर उनके वंशज भी उन्हीं के पदचिन्हों पर चलते हुए कभी भी बड़बोले नहीं बने। आज जरुरत है देश के ऐसे सच्चे सपूतों की जीवनियों को उजागर करने की जिससे वर्तमान और भावी पीढ़ियां उन लोगों को भी जान सकें, जिन्होंने देश की इमारत को बुलंद करने में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया पर खुद उसकी नींव में अनजान से पत्थर की तरह ही बने रहे !   

9 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 06 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी, हार्दिक आभार

Sweta sinha ने कहा…

बेबाकी से कहे तो गाँधी जी का आभामंडल शास्त्री जी के व्यक्तित्व को ढक लेता है हर बार।
गाँधीजी एक नाम नहीं,विचार नही अपितु एक ब्रांड की तरह प्रयोग किये जाते हैंं जिसकी गुणवत्ता की सौ फीसदी गारंटी है।
बहुत अच्छा लिखा है आपने सर।
सादर।


अच्छा लेख है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी, हौसला अफजाई का शुक्रिया

Rohitas Ghorela ने कहा…

नींव को जानना व पहचानना बहुत जरूरी है. ऐसी जानकारी हर किसी के पास नहीं होती.
आभार.

नये ब्लोगर को आपके उत्साहवर्धन की जरूरत है प्लीज् पधारें, नये ब्लोगर से मिलें- अश्विनी: परिचय (न्यू ब्लोगर) 

Subodh Sinha ने कहा…

मैं बेबाक़ी से तो नहीं पर पर्दे में बात कहूँ तो ये कोई नई भी नहीं लगभग सर्वविदित है कि गांधी को ब्रांड बनाने वाले ही शास्त्री जी के ताशकंद समझौता के समय उनकी आखिरी साँस के जिम्मेवार थे। यह आज भी रहस्य ही है।
आज सोशल मिडिया पर कुछ लोग अपनी कृत्यों को सेल्फ़ी से चमक कर अपनी ब्रांडिंग करते हैं, वैसे ही कोई ब्रांडिंग कर के ब्रांड बनता है और कोई गुमनाम सादगी से अपना नेककर्म कर जाता है। शास्त्री जी के नाम को ब्रांडिंग नहीं बनने देने वाले में उन्हीं लोगों का हाथ प्रतीत होता है , जिन्होंने ने उन्हें नोटों पर छोड़ कर उनकी ब्रांडिंग की है। वरना और भी कई लोग इसके यथोचित हक़दार थे।

Subodh Sinha ने कहा…

मैं बेबाक़ी से तो नहीं पर पर्दे में बात कहूँ तो ये कोई नई भी नहीं लगभग सर्वविदित है कि गांधी को ब्रांड बनाने वाले ही शास्त्री जी के ताशकंद समझौता के समय उनकी आखिरी साँस के जिम्मेवार थे। यह आज भी रहस्य ही है।
आज सोशल मिडिया पर कुछ लोग अपनी कृत्यों को सेल्फ़ी से चमका कर अपनी ब्रांडिंग करते हैं, वैसे ही कोई ब्रांडिंग कर के ब्रांड बनता है और कोई गुमनाम सादगी से अपना नेककर्म कर जाता है। शास्त्री जी के नाम को ब्रांडिंग नहीं बनने देने वाले में उन्हीं लोगों का हाथ प्रतीत होता है , जिन्होंने उन्हें नोटों पर छाप कर उनकी ब्रांडिंग की है। वरना और भी कई लोग इसके यथोचित हक़दार थे।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रोहितास जी, हिंदी की बढ़ोतरी के लिए जो कुछ भी संभव हो वह अवश्य किया जाना चाहिए।
मेरे से जो और जितना हो सकता है, प्रयासरत हूं। जरूर मिलना चाहूंगा सब से

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुबोध जी, जो हो चुका वह सही था या गलत, जो भी था उसे छोड़ अब वैसा न हो इसलिये जागरूक रहना और करना जरूरी है। ब्लॉग पर आने का हार्दिक आभार

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