बुधवार, 3 जनवरी 2018

नव-वर्ष रूपी बच्चा साल भर में ही बूढ़ा क्यों जाता है ?

 गहन शोध के बाद यह बात सामने आयी कि यह बिमारी तो "पा" फिल्म में ओरो बने अमिताभ बच्चन की प्रोजेरिया नामक बीमारी से भी खतरनाक है। अब तो यही कामना है कि नवागत 2018 नामक इस शिशु को कम से कम पीड़ा का बोध हो। इस नामुराद बिमारी से तो निजात नहीं पा सकता। पर जाते-जाते इसके मुंह पर संतोष की छाया रहे। हमारे प्रति कृतज्ञ रहे कि इसको जितना भी समय मिला उसे हमने शांति और चैन से गुजारने दिया.......
#हिन्दी_ब्लागिंग 
वर्षों से परंपरा रही है हर साल के अंतिम दिन, एक कार्टून बना, आने वाले वर्ष को बच्चे के रूप में तथा जाते हुए साल को वृद्ध के रूप में दिखाने की। हर बार इसे देख मन में यह बात उठती रही है कि कोई बच्चा एक साल में ही
गज भर की दाढी और झुकी कमर वाला वृद्ध कैसे हो जाता है। पर हर बार बात आयी-गयी हो जाते थी।

पर इधर फिल्मों ने नयी-नयी बिमारियों को आम आदमी से परिचित करवाया तो अपने भी ज्ञान चक्षु खुले। गहन शोध के बाद यह बात सामने आयी कि यह बिमारी तो "पा" फिल्म में ओरो बने अमिताभ बच्चन की प्रोजेरिया नामक बीमारी से भी खतरनाक है। "पा" वाली तो फिर भी अपने रोगी को कुछेक साल दे देती है और उससे ग्रसित एक दूसरे के बारे में देख सुन धीरज धरने वाले दस-पांच रोगी मिल भी जाते हैं। पर नव-वर्ष रूपी बच्चे को लगने वाली बिमारी एक बार में एक ही को लगती है और उसको समय भी देती है तो कुछ महिनों का। खोज से यह बात भी सामने आयी है कि इस रोग को बढाने में आस-पास के माहौल का भी बहुत बड़ा हाथ होता है। प्रदुषित वातावरण का प्रभाव इस पर जहर का असर करता है।

अब ऐसे माहौल में जहां इंसान ने भगवान को ही बेच खाया है, जहां बेटियां अपने बाप के आश्रय में ही सुरक्षित नहीं हैं ! देश की बात तो दूर रही, जहां औलादें अपने मां-बाप को ही नोच-खसोट कर सड़क पर धकेल देती हों, जहां किसी की भी बहु-बेटी की आबरू पर लोग गिद्ध दृष्टि लगाये रखते हों, जहां चोर, उच्चके, कातिल ही भगवान बनते, बनाये जाते हों, जहां इंसान की करतूतों के आगे शैतान भी पानी भरता हो, उस वातावरण में, उस माहौल में वह देवतुल्य अच्छा भला निर्दोष बच्चा कैसे साल भर गुजारता होगा वही जानता है। साल भर में ही अपनी ऐसी की तैसी करवा यहां से निजात पा वह भी सुख की सांस लेता होगा।

कुछ किया भी नहीं जा पा रहा है ! फिर भी अब तो यही कामना है कि नवागत 2018 नामक इस शिशु को कम से कम पीड़ा का बोध हो। वह इस नामुराद बिमारी से तो निजात नहीं पा सकता; पर जाते-जाते इसके चहरे पर संतोष की छाया रहे, हमारे प्रति कृतज्ञ रहे कि इसको जितना भी समय मिला उसे हमने शांति और प्रेम से गुजारने दिया।  उसको आशा बंधे कि उसकी आने वाली पीढ़ी को यहां सुख, चैन और अमन देखने को मिलेगा।  यही कामना है। 

5 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

खुलासा - शोध जिस साल शुरू हुआ था उसी नवागत वर्ष का चित्र है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (04-01-2018) को "देश की पहली महिला शिक्षक सावित्री फुले" (चर्चा अंक-2838) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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नववर्ष 2018 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सतीश धवन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी,
धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हर्ष जी,
आभार

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