गुरुवार, 15 सितंबर 2016

पंचकुला का कैक्टस पार्क

आज कैक्टस लोकप्रियता में सिर्फ गुलाब और ऑर्किड के पौधों से ही पीछे है। आज इस को देखने के लिए दक्षिणी अमेरिका जाने वालों की संख्या में दिन प्रति दिन इजाफा हो रहा है। हालांकि हमारे  पंचकुला के  कैक्टस पार्क में प्राकृतिक रूप से पनपे पौधे नहीं हैं पर फिर भी दुर्लभ प्रजातियों को देखने के लिए लोग यहां जरूर आना चाहेंगे 

अभी पिछले दिनों चंडीगढ़ के उपनगर हरियाणा के पंचकुला शहर जाने का मौका मिला तो वहां स्थित नागफनी बाग़ यानी कैक्टस पार्क को देखने का भी अवसर प्राप्त हो गया। कांटेदार पौधे भी इतने सुंदर हो सकते हैं कि वे मन मोह लें, यहां आ कर ही जाना। करीब सात एकड़ में फैले इस सुव्यवस्थित, करीने से सजे बगीचे का अपना ही सम्मोहन है। 
















मेरे कानूनी भाई
तरह-तरह के रूप-रंग, आकार-प्रकार, देसी-विदेशी करीब ढाई हजार किस्मों के कांटेदार पौधे सहज ही किसी को भी थम कर उन्हें निहारने को मजबूर कर देते हैं। कोई इतना ऊँचा है कि सर की टोपी गिर जाए, कोई ऐसा है जो मुट्ठी में समा जाए, किसी में फूल भी लगे हैं तो कोई अपने काँटों से ही सम्मोहित कर लेता है। कोई गोल-मटोल है तो कोई सींकिया पहलवान। कोई गुच्छे में परिवार की तरह है तो कोई अकेला मस्त-मलंग। यहां मेक्सिको का पेड़ नुमा कैक्टस भी है तो साथ ही एरिजोना की वह किस्म भी है जिसकी ऊंचाई चालीस फिट तक पहुँच जाती है। दुनिया की दुर्लभ, लोकप्रिय, दर्शनीय, मशहूर प्रजातियों जैसे Opuntias, Ferocactus, Agaves, Echinocereus, Columnar और Mammillarias को भी यहां देखा जा सकता है। यहां की नर्सरी से अपने मनपसंद पौधे ख़रीदे भी जा सकते हैं।   













पंचकुला के सेक्टर पांच में डॉक्टर जे. एस. सरकारिया द्वारा, जो एक सर्जन, पेंटर, प्रकृति प्रेमी तथा 'नेशनल कैक्टस ऐंड सकुलेंट्स प्लांट्स' के संस्थापक यानी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न इंसान थे, 1987 में इसकी नींव रखी गयी थी। उनकी अथक मेहनत, लगन और पौधों के प्रति प्यार ने इस बाग़ को शहर का "लैंड मार्क" तो बनाया ही अपने प्रकार का एशिया का सबसे बड़ा पार्क भी बना दिया जिसने पंचकुला को भी विश्व में एक पहचान दिला दी। इसीलिए इस पार्क को सरकारिया कैक्टस पार्क के नाम से भी जाना जाता है। इसमें तीन सरोवर और करीब पच्चीस टीले नुमा निर्माण किए गए हैं जो बरबस दर्शकों का मन मोह लेते हैं। टाइलों लगा घुमावदार मार्ग पर्यटकों को पूरे बाग़ को देखने में सहायक सिद्ध होता है।  













कुछ साल पहले तक इसके कांटेदार होने की वजह से हमारे यहाँ इसे घरों में लगाना शुभ तथा निरापद नहीं माना जाता था पर समय के साथ-साथ इसको भी लोग पसंद करने लगे हैं और आज कैक्टस लोकप्रियता में सिर्फ गुलाब और ऑर्किड के पौधों से ही पीछे है। इस को देखने के लिए आज दक्षिणी अमेरिका जाने वालों की संख्या में दिन प्रति दिन इजाफा हो रहा है। हालांकि हमारे पंचकुला के कैक्टस पार्क में प्राकृतिक रूप से पनपे पौधे नहीं हैं पर फिर भी दुर्लभ प्रजातियों को देखने के लिए लोग यहां जरूर आना चाहेंगे जो पंचकुला शहर के लिए शुभ संकेत ही है। पर इसके लिए व्यवस्थापकों और सरकारी महकमे को इस पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है। अभी वहां जाने पर सिर्फ एक सज्जन को खड़े पाया जो गेट किपरी के साथ ही अनमने भाव से टिकट भी दे रहा था। 







अपने को #कैक्टस पार्क का #हेड माली बताने वाले #जागर नामक इस शख्स के पास हमें बताने के लिए एक वाक्य तक नहीं था। उल्टे बात करने का लहजा ऐसा था जैसे हम अवांछनीय तत्व हों। करीब पांच बजे शाम का समय था। देश के हर शहर-कस्बे में उग आई कैक्टसी बिमारी यहां भी पार्क के सुनसान, निर्जन, पथ-मार्ग से दूर कोनों में मौजूद थी। जिसे शायद गेट-कीपर महोदय का संरक्षण प्राप्त था। हमें आता देख एक-दो जोड़े तो ऐसे भागे जैसे इंसान को देख खरगोश झाड़ियों से भागता है। इसलिए जरूरी है कि इस बिमारी के चलते लोग यहां आने से झिझकें उसके पहले ही सुरक्षा गारद की उचित व्यवस्था कर दी जाए। नहीं तो यह सुंदर, अनुपम, अनोखी जगह सिर्फ मनचलों की ऐशगाह बन कर रह जाएगी।     







यदि आपका कभी भी चंडीगढ़ जाना हो तो वहाँ के सुखना झील, रॉक-गार्डेन इत्यादि दर्शनीय स्थलों की सैर के साथ ही चंडीगढ़ की कार्बन कॉपी पंचकुला के इस मनोहारी, अजूबे से पार्क को देखने का समय जरूर निकालें।सिर्फ दस रुपये में यहां गुजारा गया समय आपको निराश नहीं करेगा।    

10 टिप्‍पणियां:

P.N. Subramanian ने कहा…

सुंदर जानकारी सुंदर तस्वीरें।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुब्रमनियन जी, हार्दिक धन्यवाद

अजय कुमार झा ने कहा…

वाह आपकी इस अद्भुत चित्रमय पोस्ट पढ़ कर तो यूं लगा मानो चलचित्र की भांति पूरा कैक्टस गार्डन हम भी घूम लिए | बहुत सुन्दर पोस्ट बन पड़ी है , बहुत ही मनमोहक ..कभी उधर आये तो जरूर घूमना चाहेंगे हम भी | शानदार पोस्ट गगन शर्मा जी

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अजय जी, सदा स्वागत है आपका

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी, आभार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-09-2016) को "अब ख़ुशी से खिलखिलाना आ गया है" (चर्चा अंक-2468) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

पोस्ट शामिल करने का शुक्रिया। स्नेह बना रहे।

शोभा ने कहा…

म. प्र. में रतलाम के पास सैलाना में एक पुराना कैक्टस गार्डन है,वहां भी तरह तरह के कैक्टस है, देखने योग्य है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शोभा जी,
आभार

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