मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

डॉक्टरी नुस्खों की कलिष्ट भाषा

दूर पोस्टिंग पर गए डॉक्टर ने घर पत्र लिखा तो माँ ने बहू से कहा जा सामने वाले केमिस्ट से पढवा कर ला। थोड़ी देर बाद बहू लौटी तो माँ ने पूछा क्या लिखा है चिठ्ठी में ? बहू बोली पता नहीं माँ दूकान वाले ने तो ये दवा पकड़ा दी है :-)  

यह तो हुई मजाक की बात। पर सच्चाई यही है कि अभी भी डाक्टरों के द्वारा लिखे गए नुस्खे और उनमें दी गयी हिदायतें आम मरीजों या उनके घरवालों की समझ से बाहर होती हैं। शायद एक-दो प्रतिशत लोग ही ऐसे होंगे जो दूकान से दवा ले कर फिर से डाक्टर को दिखाने जाते होंगे, नहीं तो सभी केमिस्ट के भरोसे ही चलते और रहते हैं। यह तो हुई दवा की बात, उसके सेवन की मात्रा और बारंबारता को भी सरल भाषा में ना लिख कर वही वर्षों से चली आ रही लेटिन भाषा के चिन्हों से ही दर्शाया जाता है। जैसे BDS, CST, a.c.,a.c. & h.s., c.m.s., alt.dieb, ind, mane, p.c., q.d.am, q.d.pm आदि। यदि इन्हें सरल शब्दों में लिखा जाए जैसे दिन में एक-दो बार, खाने-सोने के पहले, खाली पेट इत्यादि, तो मरीज और उनके घर वालों को सहूलियत हो जाए बजाए बार-बार डॉक्टर या दवा की दूकान पर जा कर पूछने से। वैसे कुछ डॉक्टर इस बात की तरफ ध्यान देने लगे हैं पर अधिकतर नुस्खे अभी भी उसी ढर्रे पर लिखे चले आ रहे हैं। पता नहीं इस ओर संबंधित लोगों का ध्यान जाता नहीं कि जान बूझ कर ऐसा किया जाता है। वैसे भी डॉक्टरों के इर्द-गिर्द ऐसा आभामंडल रच दिया गया है जिससे साधारण आदमी उनसे ज्यादा बात करने में भी संकोच करने लगा है। विडंबना ही है कि डॉक्टरों, अस्पतालों की आकाश छूती फीस चुकाने के बाद भी आम आदमी अपनी समस्या या जिज्ञासा पर डॉक्टर से पूरी तरह खुल कर बात करने झिझकता है। इसमें डॉक्टरों का भी दोष नहीं है। अपनी तरफ से तो वे पूरी बात समझा देते हैं फिर मरीजों की लंबी कतारें उन्हें भी मजबूर कर देती हैं सबको जल्दी-जल्दी निपटाने के लिए। इसी पूछने की जहमत या झिझक के कारण कई बार मरीज द्वारा दवा लेने में गलतियों का होना भी नकारा नहीं जा सकता। ऐसा होने पर इस बात का दोष मरीज या उसके घरवालों का ही माना जाता है।   

मरीज को डॉक्टर से और डॉक्टर को मरीज से अलग नहीं किया जा सकता, पर नुस्खे और हिदायतों को सरल भाषा में लिख कर कुछ तो एक दूसरे की सहायता की जा सकती है। आशा है समय के साथ इस पर भी ध्यान दिया जाएगा।      

2 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

कई दफा तो खुद डॉक्टर को रोग ही समझ नहीं आता.. टेस्ट पर टेस्ट और दवा बदलते रहो ...पूछो तो बताते नहीं ...ठीक हो जाएगा ..बस ये दवा ले लो ...अब जब मर्ज से नहीं पता तो क्या बताएँगे जो आया समझ में लिख दिया, साफ़ साफ़ लिख देंगे तो फिर डॉक्टर कैसे ...
सही लिखा है आपने जब तक मरीज डॉक्टर से खुलकर अपनी बात नहीं बताएगा तब तक वे कैसे समझेंगे लेकिन उन्हें जैसे किसी काम को निपटाने के लगी रहती है नेक्स्ट नेक्स्ट ..

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - राजेंद्र यादव जी की पुण्यतिथि में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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