मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

श्याम खाटु जी के दर्शनोपरांत तीन दिनों के एक यादगार सफर का समापन

17 अक्टूबर की सुबह दिल्ली से चल कर राजस्थान के झुंझनु शहर के रानी सती जी के मंदिर के दर्शन कर रात सालासर में गुजार दूसरे दिन 18 अक्टूबर, दोपहर सालासर बालाजी के दरबार में हाजरी लगा फिर सुजानगढ़ के डूंगर बालाजी के दर्शन कर अपरान्ह में दिल्ली वापसी के दौरान पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सीकर में खाटु श्याम जी के दर्शनों हेतु रवानगी शुरू हुई.
अब आगे ..........    
18.10.13 दोपहर बाद पौने तीन बजे गाड़ी का रुख राजस्थान के सीकर जिले के खाटु कस्बे की ओर हो चुका था, जो डूंगर बालाजी से करीब 120-125 किलो मीटर पड़ता है. सफर को मद्दे-नज़र रख सबने सुबह हल्का नाश्ता ही किया था. सो घंटे भर बाद 'च्यास' उभर आई थी जिसका निवारण एक चाय प्रदाता गुमटी के पास रुक कर किया गया. शाम के पौने पांच बजे के लगभग हम खाटु में सुविधा जनक आश्रय स्थल की खोज में थे. आज जब हर जगह बाजार हावी है तो उसका असर अब ऐसे धार्मिक स्थलों के पुराने रिवाजों पर भी हो चुका है. पहले जहां धर्मशालाएं लोगों की सुविधा के लिए होती थीं अब उनका रूप नव निर्मित, आधुनिक सर्व सुविधा युक्त सेवा सदन ले चुके हैं. दिखावा तो वे  धर्मशाला का करते हैं पर व्यवहार आधुनिक होटलों जैसा होता है.  दो-तीन जगह देखने के बाद मंदिर के पास ही एक शांत, साफ-सुथरे आश्रय स्थल, लाला मांगे राम सेवा सदन, का चुनाव कर लिया  गया.
सेवा सदन की छत 
छत से जूम कर लिया गया मंदिर का चित्र 
मंदिर की ओर जाता मार्ग 

वहाँ से मंदिर सिर्फ पांच-सात मिनट की पैदल दूरी पर था. जैसा नाम से आभास होता है कि यहाँ श्री कृष्ण जी का मंदिर होगा वैसा नहीं है। असल में यहाँ  घटोत्कच के पुत्र और भीम के पौत्र बर्बरीक की पूजा होती है। कथा इस प्रकार है :-

श्याम खाटु जी महाराज 
महाभारत का युद्ध शुरू होने ही वाला था कि एक दिन श्री कृष्ण जी ने देखा कि एक दीर्घकाय, बलिष्ठ, अलौकिक आभा से युक्त युवक चला आ रहा है जिसके चहरे पर एक दिव्य तेज विद्यमान था। उसकी पीठ पर एक तरकस था जिसमें सिर्फ तीन तीर थे।  प्रभू तो सब जानते ही थे फिर भी उन्होंने युवक को रोक उसका परिचय और इधर आने का प्रयोजन पूछा। युवक ने बताया कि उसका नाम बर्बरीक है, वह महान योद्धा घटोत्कच का पुत्र है और अपनी माता की आज्ञा लेकर इधर होने वाले युद्ध में भाग लेने आया है।  श्री कृष्ण ने पूछा कि तुम किस और से युद्ध करोगे?
जो भी पक्ष कमजोर होगा उसकी तरफ से, बर्बरीक ने जवाब दिया।  प्रभू ने फिर कहा कि क्या तुम इन तीन तीरों से युद्ध लड़ोगे, ऎसी क्या विशेषता है इन में ? बर्बरीक बोला, प्रभू ये दिव्यास्त्र हैं, इनमें से एक अपने लक्ष्य का पता लगाता है, दूसरा लक्ष्य-भेदन करता है और तीसरा यदि लक्ष्य भेद न करना हो तो वह पहले को निरस्त कर देता है. प्रभू ने प्रमाण स्वरूप सामने के एक विशाल और घने पीपल के पेड़ के पत्तों को निशाना बनाने को कहा। जब बर्बरीक निशाना साधने के पहले मंत्र का आह्वान कर रहा था तो उन्होंने पेड़ का एक पत्ता तोड़ अपने पैर के नीचे दबा लिया। बर्बरीक ने अपना  बाण छोड़ा जो सभी पत्रों में छिद्र कर परभू के चरणों के पास आ घूमने लगा. प्रभू समझ गए कि कमजोर कौरवों की तरफ से लड़ते हुए यह युवक कुछ ही समय में पांडवों का नाश कर देगा। इसीलिए उनहोंने जनहित के लिए युवक से कुछ देने को कहा, बर्बरीक के तत्पर होने पर उन्होंने उसका सर मांग लिया। बर्बरीक बिना किसी हिचकिचाहट के इस पर तैयार भी हो गया. पर सर त्यागने से पहले उसने परभू से दो वर चाहे। पहला कि प्रभू उसे अपना नाम दें और दूसरा वह पूरा युद्ध देख सके। परभू ने उसे वरदान दिया कि उसे सदा उनके नाम श्याम के नाम से जाना जाएगा और कलियुग में जो कोई भी सच्चे दिल से उसका नाम लेगा, उसकी आराधना करेगा उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होंगी और उसकी विपत्तियों का नाश हो जाएगा।   इतना कह प्रभू ने बर्बरीक का सर वहाँ स्थापित कर दिया और युद्ध के पश्चात उसे वहीं समाधी दे दी गयी। जहां समाधी दी गयी थी वहाँ आज एक कुंड है. ऐसी धारणा है कि उस कुंड में स्नान करने से सारी शारीरिक व्याधियां दूर हो जाती हैं।
कुंड का मुख्य द्वार 
कुंड की ओर जाती सीढ़ियां 
पवित्र कुंड 
निर्देश
स्नानोपश्चात 

शाम के साढ़े छह बज रहे थे. लाला मांगे राम सेवा सदन में दो कमरे ले लिए गए, किराया था सुबह बारह बजे तक का 700 रुपये प्रति वातानूकुलित कमरे के हिसाब से. खाने का पहले बताना पड़ता था प्रति व्यक्ति 50/- की थाली, एक सब्जी और दाल के साथ, जिसका समय रात आठ से दस का था।  कमरों में सामान वगैरह रख हम सब खाटू श्याम जी के दर्शनों हेतु मंदिर चले गए. उस समय वहाँ सिर्फ 25-30 लोग ही थे। श्याम जी का श्रृंगार सफेद फूलों से बहुत सुंदर तरीके से किया गया था। वहाँ से लौट खाना खा सब  नींद के आगोश में समा गए।
19. 10. 13 सुबह-सुबह सदन की छत पर  कुछ यादगार पल कैद कर फिर नित्य कर्म से निवृत हो हम सब एक बार फिर मंदिर की ओर अग्रसर हो लिए। कुछ का दर्शनोपरांत कुंड में स्नान का भी इरादा था।


मंदिर में रात की अपेक्षा भीड़ ज्यादा थी.  वैसे यहाँ फाल्गुन के माह में मेला भरता है जब यहाँ पैर रखने की भी जगह नहीं होती।  दर्शनों के बाद हम कुंड पहुंचे जहां स्नान के बाद करीब सवा बारह बजे  हल्का नाश्ता कर हमने दिल्ली का रुख कर लिया, जो जयपुर मार्ग पर चौमूं - रींगस-गुड़गांव होते हुए था। रास्ते में मानेसर में एक जगह चाय पकौड़ों का सेवन कर रात नौ के करीब घर पहुँच गए थे।  इस तरह तीन दिनों के एक यादगार, खुशनुमा सफर का समापन हुआ.                      

4 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति-
आभार-
सादर नमन-

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रविकर जी, हार्दिक आभार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

खाटू श्याम की यात्रा का सचित्र संस्मरण
मन में आस्था का संचार करता है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

धन्यवाद शास्त्री जी

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