बुधवार, 28 अगस्त 2013

श्रीकृष्ण जी और उनकी सोलह कलाएं

श्री राम ने  बारह कलाओं के साथ अवतार लिया था. श्रीकृष्ण जी ही अब तक  सोलह कलाओं  के साथ अवतरित हुए हैं।  इसीलिए उनके अवतार को संपूर्ण तथा  सर्व गुण संपन्न अवतार माना जाता है.

हमारे वेद-पुराणों में समय-समय पर हुए दिव्यांशों के अवतार के साथ-साथ उनकी कलाओं की भी बात की गयी है. तंत्र शास्त्र में "कला" का बहुत गहरा और रहस्यात्मक विवेचन है. जिसे जीव के सात बन्धनों माया, अविधा, राग, द्वेष, नियति, काल और कला, में से एक बताया गया है. कला के सोलह प्रकार बताए गए हैं। जिसमें भी यह सोलह गुण होते हैं उसे पूर्ण सामर्थ्यवान माना जाता है. इसका सबसे सरल और प्रत्यक्ष उदाहरण चन्द्रमा है. जिसकी सोलह कलाएं होती हैं. हर कला के साथ उसकी रोशनी बढ़ती जाती है. चन्द्रमा वही रहता है पर यह कला ही है जो बढ़ने के साथ उसे तेजस्वी बनाती है. जिस दिन वह सोलह कला संपूर्ण हो जाता है, यानी पूर्णिमा की रात को, तो उसकी छ्टा भी अपूर्व हो जाती है. पर प्रकृति के नियमानुसार उसकी कला के घटने के साथ ही उसकी आभा भी घट जाती है. कला को सरल शब्दों में एक तरह गुण या विशेषता भी कहा जा सकता है. हमारे वेद-पुराणों में कला को अवतार लेने वाली देव्यांशों की शक्ति के रूप में दर्शाया गया है. जिसमें सिर्फ श्रीकृष्ण जी में ही ये सारी खूबियाँ समाविष्ट थीं।  इन सोलह कलाओं और उन्हें धारण करने वाले का विवरण इस तरह का है -  

१. श्री-धन संपदा 
जिसके यहाँ लक्ष्मी का स्थाई निवास हो, जो आत्मिक रूप से धनवान हो और जहां से कोई खाली हाथ न जाता हो. 

२. भू-अचल संपत्ति
जिसके पास पृथ्वी का राज भोगने की क्षमता हो तथा जो  पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग का स्वामी हो. 

३. कीर्ति-यश प्रसिद्धि
जिसके प्रति लोग  स्वतः ही श्रद्घा और विश्वास रखते हों.  ।

४. वाणी की सम्मोहकता
जिसकी वाणी  मनमोहक हो. यानी दूसरे पर अपना असर डालने वाली हो. जिसे सुनते ही सामने वाले का क्रोध शांत हो जाता हो.  मन में प्रेम और  भक्ति की भावना भर उठती हो.  

५. लीला- आनंद उत्सव
पांचवीं कला का नाम है लीला। जिसके दर्शन मात्र से आनंद मिलता हो।

६. कांति- सौदर्य और आभा
जिसके रूप को देखकर मन अपने आप  आकर्षित हो प्रसन्न हो जाता हो.  जिसके मुखमंडल को  बार-बार निहारने का मन करता हो.

७. विद्या- मेधा बुद्धि
सातवीं कला का नाम विद्या है। जो  वेद, वेदांग के साथ ही युद्घ और संगीत कला, राजनीति एवं कूटनीति में भी सिद्घहस्त हो.

८. विमला-पारदर्शिता
जिसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं हो, सभी  के प्रति समान व्यवहार रखता हो.

९. उत्कर्षिणि-प्रेरणा और नियोजन
जो लोगों को प्रेरणा दे कर अपने कर्म करने को प्रोत्साहित कर सके. जिसमें इतनी शक्ति हो कि लोग उसकी बातों से प्रेरणा लेकर अपना लक्ष्य पूरा कर सकें।

१०. ज्ञान-नीर क्षीर विवेक
जो विवेकशील हो. जो अपने विवेक से लोगों का मार्ग प्रशस्त कर सके.

११. क्रिया-कर्मण्यता
जो खुद तो कर्म करे ही लोगों को भी कर्म करने की प्रेरणा दे उन्हें सफल बना सके.

१२. योग-चित्तलय
जिसने मन को वश में कर लिया हो, जिसने  मन और आत्मा का फर्क मिटा योग की उच्च सीमा पा ली हो.  

१३. प्रहवि- अत्यंतिक विनय
जो विनयशील हो. जिसे अहंकार छू भी न गया हो. जो सारी  विद्याओं में  पारंगत होते हुए भी गर्वहीन हो.

१४. सत्य-यथार्य
जो सत्यवादी हो. जो जनहित और  धर्म की रक्षा के लिए कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं करता हो.

१५. इसना -आधिपत्य
जिसमें लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित करने का गुण हो.  जरूरत पड़ने पर लोगों को अपने प्रभाव का  एहसास दिला अपनी बात समझा उनका भला कर सके.  

१६. अनुग्रह-उपकार
जो बिना किसी लाभ या  प्रत्युपकार की भावना से लोगों का उपकार करना जानता हो. जो भी उसके पास किसी कामना से आए  उसकी हर मनोकामना पूरी करता हो.   

हमारे ग्रन्थों में अब तक हुए अवतारों का जो विवरण है उनमें मत्स्य, कश्यप और वराह में एक-एक कला, नृसिंह और वामन में दो-दो और परशुराम मे तीन कलाएं बताई गयीं हैं। 
श्री राम ने  बारह कलाओं के साथ अवतार लिया था. श्रीकृष्ण जी ही अब तक  सोलह कलाओं  के साथ अवतरित हुए हैं।  इसीलिए उनके अवतार को संपूर्ण तथा  सर्व गुण संपन्न अवतार माना जाता है.

5 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कलाओं के अनुसार अवतारों का वर्गीकरण सुना था पर पहली बार पढ़ रहा हूँ, आभार।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…


कृष्णा के व्यवहार में इन कलायों के अनुसार महाभारत में कई जगह विरोधाभास है जैसे छल चातुर्य .इसीलिए विमल तो नहीं है

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

waah acchha laga aapke blog par aakar ....

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कालीपद जी, वह सब भी समय की जरूरत थी।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

निशा जी, आपका सदा स्वागत है।

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