सोमवार, 6 अगस्त 2012

प्रकृति को नमस्कार है

कभी किसी पहाड, समुद्र, रेगिस्तान या बीहड वनों में सूर्योदय  या सूर्यास्त  देखें। उन्मुक्त विचरते जीव-जंतुओं को निहारें, कल-कल करती नदियों, ऊंचाई से गिरते झरनों का संगीत सुनें। हजारों तरह के फल-फूल, लता-कंद प्रदान करने वाली धरती, जीवन दाई शीतल-मंद-सुगंध वाले समीर को महसूस करें. घुलमिल जाने दें अपने आप को उसमें.  अपने  अस्तित्व को भूला  उसके आँचल में समा जाने दें अपने-आप को, तब उसकी विशालता और अपनी   छुद्रता का एहसास हो पाएगा । प्रकृति एक अजूबा है। इसमें इतने गूढ रहस्य समाए हैं कि उनको खोजने में सदियों का समय भी कम पड सकता है।  

दुनिया के हर देश, हर कोने में कहीं ना कहीं इसने अपनी धरोहर सजा के रखी हुई हैं। ऐसी ही एक अनोखी झील है बर्मा में। जहां साल के एक दिन सूर्य के विशिष्ट कोण से निकली रश्मियों, झील के जल,  साथ की चट्टानों और उस पर की लता-गुल्म-झाड़ियों से एक अद्भुत, आश्चर्यचकित कर देने वाला दृष्य आकार लेता है। जिसे देख कर सहसा उस महाशक्ति को नमन करने को मजबूर होना पडता है। बहुत बार यह नज़ारा प्रदर्शित हो चुका है पर बहुतों ने अभी इसे देखा नहीं है, इसलिए एक बार फिर - 

सर घुमा कर देखने पर यह  अद्भुत करिश्मा सामने आता है.  प्रकृति को नमस्कार है . इसे बचाने में सदा 
सहयोग करते रहें. यह बची रहेगी तभी हमारा जीवन भी सुरक्षित रह पाएगा. इसके सहारे हम हैं,  हमारे सहारे यह नहीं.    
   

8 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

हमारा भी नमन!

P.N. Subramanian ने कहा…

अद्भुत.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अद्भुत दृश्य..

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अद्भुत दृश्य..

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

इसके बारे में जाल खंगालने पर विरोधाभास जताते विवरण भी मिले हैं। कुछ लोगों का दावा है कि कोरीया में बच्चों की एक पुस्तक में दो भाईयों की एक कहानी के साथ इस दृष्य को कलाकार ने अपनी कल्पना और तुलिका के साथ गढा है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार o9-08 -2012 को यहाँ भी है

.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... लंबे ब्रेक के बाद .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच में अद्बुध ... प्राकृति में कितने रहस्य हैं ... आलोकिक सोंदर्य को नमन है ..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

प्रकृति का अद्भुत दृश्य ...

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