रविवार, 4 सितंबर 2011

शिवजी ने सिर्फ एक बालक के हठ के कारण उसका अंत नहीं किया होगा

शिवजी तो देवों के देव हैं, महादेव हैं, भूत- वर्तमान-भविष्य सब उनके अनुसार घटित होता है, वे त्रिकालदर्शी हैं, भोले-भंडारी हैं, योगी हैं, दया का सागर हैं, बड़े-बड़े असुरों, पापियों को उन्होंने क्षमादान दिया है। उनके हर कार्य में, इच्छा में परमार्थ ही रहता है। वे सिर्फ एक बालक के हठ पर उसका अंत नहीं कर सकते थे। जरूर कोई दूसरी वजह इस घटना का कारण रही होगी। उन्होंने जो कुछ भी किया वह सब सोच समझ कर जगत की भलाई के लिए ही किया।


श्री गणेशजी के जन्म से सम्बंधित कथा सब को कमोबेश मालुम है कि कैसे अपने स्नान के वक्त माता पार्वती ने अपने उबटन से एक आकृति बना उसमें जीवन का संचार कर द्वार की रक्षा करने हेतु कहा और शिवजी ने गृह-प्रवेश ना करने देने के कारण उसका मस्तक काट दिया फिर माता के कहने पर पुन: ढेर सारे वरदानों के साथ जीवन दान दिया। इसके बाद ही वह गणनायक बने, गणपति कहलाए और सर्वप्रथम पूजनीय हुए।

शिवजी तो देवों के देव हैं, महादेव हैं, भूत- वर्तमान-भविष्य सब उनके अनुसार घटित होता है, वे त्रिकालदर्शी हैं, भोले-भंडारी हैं, योगी हैं, दया का सागर हैं, बड़े-बड़े असुरों, पापियों को उन्होंने क्षमादान दिया है। उनके हर कार्य में, इच्छा में परमार्थ ही रहता है। वे सिर्फ एक बालक के हठ पर उसका अंत नहीं कर सकते थे। जरूर कोई दूसरी वजह इस घटना का कारण रही होगी। उन्होंने जो कुछ भी किया वह सब सोच समझ कर जगत की भलाई के लिए ही किया।

माता पार्वती ने भगवान शिव से अनुरोध किया कि वे उनके द्वारा रचित बालक को देव लोक में उचित सम्मान दिलवाएं। शिवजी पेशोपेश में पड़ गये। उन्होंने उस छोटे से बालक के यंत्रवत व्यवहार में इतना गुस्सा, दुराग्रह और हठधर्मिता देखी थी जिसकी वजह से उन्हें उसके भविष्य के स्वरूप को ले चिंता हो गयी थी। उन्हें लग रहा था कि ऐसा बालक बड़ा हो कर देवलोक और पृथ्वी लोक के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। पर पार्वतीजी का अनुरोध भी वे टाल नहीं पा रहे थे इसलिए उन्होंने उस बालक के पूरे व्यक्तित्व को ही बदल देने का निर्णय किया।

भगवान शिव तो वैद्यनाथ हैं। उन्होंने बालक के मस्तक यानि दिमाग में ही आमूल-चूल परिवर्तन कर ड़ाला। एक उग्र, यंत्रवत, विवेकहीन मस्तिष्क की जगह एक धैर्यवान, विवेकशील, शांत, विचारशील, तीव्रबुद्धी, न्यायप्रिय, प्रत्युत्पन्न, ज्ञानवान, बुद्धिमान, संयमित मेधा का प्रत्यारोपण कर उस बालक को एक अलग पहचान दे दी। उसे हर विधा व गुणों से इतना सक्षम कर दिया कि महऋषि वेद व्यास को भी अपने महान, वृहद तथा जटिल महाकाव्य की रचना के वक्त उसी बालक की सहायता लेनी पड़ी।


इन्हीं गुणों, सरल ह्रदय, तुरंत प्रसन्न हो जाने, सदा अपने भक्तों के साथ रह उनके विघ्नों का नाश करने के कारण ही आज श्री गणेश अबाल-वृद्ध, अमीर-गरीब, छोटे-बड़े सब के दिलों में समान रूप से विराजते हैं। शायद ही इतनी लोक प्रियता किसी और देवता को प्राप्त हुई हो।

6 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गज सा धैर्य।

P.N. Subramanian ने कहा…

शिवजी के कृत्य का उद्देश्य अब समझ में आया. आभार. सुन्दर सामायिक प्रस्तुति.

G.N.SHAW ने कहा…

त्रिकालदर्शी का बेटा सर्व - गुण संपन्न न हो - ऐसा हो ही नहीं सकता ! बहुत सुन्दर वर्णन !

Chetan ने कहा…

Is paksh ko ujagar karane ke lie abhaar.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

ॐ गं गणपतये नमः


सुंदर और उपयोगी पोस्ट के लिए आभार !

संजय भास्‍कर ने कहा…

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