गुरुवार, 24 मार्च 2011

सोमनाथ के दरवाजे स्वर्ण मंदिर में

भारत की समृद्धि और वैभव के चर्चे सुन कर बाहर से बार-बार आतंकियों के हमले हुए हैं। खण्ड़-खण्ड़ में बिखरे राज्यों और उनके, एक-दो को छोड़, शासकों को बहुतेरी बार जलील होना पड़ता रहा है। पर उनके गरूर और अहम के कारण कभी भी पूरे देश में एका नहीं हो पाया और इसी का फायदा बार-बार लुटेरे उठाते रहे। कैसे-कैसे नहीं लूटा उन्होंने, यहीं के मवेशियों पर यहीं के लोगों के सहारे जितना भी जैसा भी जो भी बन पाया उठा कर ले गये। और हम आशा करते रहे कि भगवान खुद आ कर हमारी रक्षा करेगा।

अठारहवीं शताब्दी में अहमद शाह अब्दाली यहां आ घुसा और मनमर्जी से लूट-पाट की। उसका सारा ध्यान उस समय के सबसे समृद्ध सोमनाथ के मंदिर पर था। उसके हमले की खबर पा आस-पड़ोस के राजाओं ने सैन्य सहायता की पेशकश की थी। पर कहा जाता है कि मंदिर के कर्ता-धर्ताओं ने उनकी पेशकश यह कह कर नामंजूर कर दी थी कि भगवान खुद अपनी रक्षा में सक्षम हैं।

हुआ वही जो होना था। अब्दाली ने पूरे मंदिर को खाली कर दिया, यहां तक कि उसके सुंदर और खूबसूरत दरवाजों को भी नहीं छोड़ा। यह बात जब पंजाब के शूरवीरों को पता चली तो वे आगबबूला हो गये। उन्होंने अब्दाली को ललकारा और युद्ध कर उससे वे दरवाजे वापस प्राप्त कर लिए। पर जब वे उन दरवाजों को सोमनाथ मंदिर के पुजारियों को लौटाने गये तो उन्होंने यह कह कर दरवाजे वापस लेने से इंकार कर दिया कि मलेच्छों के हाथ लगने से ये द्वार अपवित्र हो गये हैं, इसलिए इन्हें मंदिर में पुन: स्थापित नहीं किया जा सकता। तब उन दरवाजों को पंजाब ले आया गया तथा उनमें और मीनाकारी करवा, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की दर्शनी ड़्योढी में प्रतिस्थापित कर दिया गया।

तब से लेकर आज तक वे सोने और हाथी दांत से जड़े विशाल दरवाजे मंदिर की शोभा बढाने में अपना योगदान दे रहे हैं।

14 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

हम ने आज तक सीख नही ली , अब भी आपस मे लड रहे हे, दुसरा भगवान के सहारे अब भी रहते हे, वर्ना हम इतने दुखी ना होते, ओर इसी कमजोरी का लाभ हमारे नेता आज ऊठा रहे हे.ओर हम आज भी सोच रहे हे कि भगवान ही आयेगा कोई चमतकार करने... धन्यवाद इस अति सुंदर जानकारी के लिये

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

bhatia ji sahi kah rahe hain...

Ratan Singh Shekhawat ने कहा…

इस देश और हिन्दू धर्म का जितना अहित इन पंडों (पुजारियों) के कारण हुआ उतना शायद किसी कारण से नहीं हुआ होगा |

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर जानकारी के लिए धन्यवाद|

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

वैसे कहा तो यह गया है की इश्वर भी उन्ही की सहायता करते हैं जो स्वयं अपनी सहयता स्वयं करते हैं ,
आभार उपरोक्त जानकारी हेतु ................

शिवा ने कहा…

सुंदर जानकारी के लिये धन्यवाद

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

जहां गुड वहां मक्खियां... जहां दौलत वहां लुटेरे:)

anshumala ने कहा…

अच्छी जानकारी दी | अब तो भगवान क्या पूरा देश ही उन्हें के भरोसे चल रहा है |

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बढ़िया काम की जानकारी!

Chetan Sharma ने कहा…

dukh to yahi hai ki itani laten padane par bhi akl nahii aayee

RADHIKA ने कहा…

मेरे लिए तो यह एकदम नयी जानकारी थी ,आपका होलिका वाला आलेख पढ़ा ,अभी एक समाचार पत्र में भी होलिका के बारे में कुछ इस तरह की ही जानकारी पढ़ी थी ,तबसे सोच रही थी की क्या ये सच हैं ?अब आपका आलेख पढने से उस सत्य को प्रमाण मिल गया ,धन्यवाद.लेकिन यह उल्लेख आपको कहाँ पढ़ा ?मैं भी मूल स्रोत पढना चाहूंगी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

राधिका जी,
होलिका तथा ईलो जी की प्रेम कथा राजस्थान मे काफी लोक-प्रिय है। वहां अभी भी ईलो जी को देवता स्वरुप पूजा जाता है। इसी को पढ कर यह ख्याल आया था कि कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि होलिका को राजनीति की बली चढा दिया गया हो।
यह मेरी अपनी सोच है।

hamarivani ने कहा…

nice कृपया comments देकर और follow करके सभी का होसला बदाए..

Nina ने कहा…

स्वर्ण मंदिर अमृतसर एक महान सौंदर्य और उदात्त शांति का स्थान है।मंदिर की वास्तुकला हिंदू और मुस्लिम दोनों कलात्मक शैलियों पर आधारित है, फिर भी दोनों का एक अनोखा समन्वय है। महाराजा रणजीत सिंह (1780-1839) के शासनकाल के दौरान, हरि मंदिर संगमरमर की मूर्तियों, सुनहरे सोने के गुलदस्ते और बड़ी मात्रा में कीमती पत्थरों से समृद्ध था।

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