सोमवार, 24 जनवरी 2011

जब मेरे पास ख़त्म हो जाते हैं तो मैं भी पचास में देता हूँ

गांव का एक लड़का अपनी नयी-नयी साईकिल ले, शहर मे नये खुले माल में घूमने आया। स्टैंड में सायकिल रख जब काफ़ी देर बाद लौटा तो अपनी साईकिल को काफ़ी कोशिश के बाद भी नहीं खोज पाया। उसको याद ही नहीं आ रहा था कि उसने उसे कहां रखा था। उसकी आंखों में पानी भर आया। उसने सच्चे मन से भगवान से प्रार्थना की कि हे प्रभू मेरी साईकिल मुझे दिलवा दो, मैं ग्यारह रुपये का प्रसाद चढ़ाऊंगा। दैवयोग से उसे एक तरफ़ खड़ी अपनी साईकिल दिख गयी। उसे ले वह तुरंत मंदिर पहुंचा, भगवान को धन्यवाद दे, प्रसाद चढ़ा, जब बाहर आया तो उसकी साईकिल नदारद थी।

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नमस्ते सर, मैं आपका पियानो ठीक करने आया हूं। पर मैने तो आप को नहीं बुलवाया। नहीं सर, आपके पडोसियों ने मुझे बुलवाया है।

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अरे भाई, ये सेव कैसे दिये। सर साठ रुपये किलो। पर वह तुम्हारा सामने वाला तो पचास में दे रहा है। तो सर उसीसे ले लिजीए। ले तो लेता पर उसके पास खत्म हो गये हैं। सर जब मेरे पास खत्म हो जाते हैं तो मैं भी पचास में देता हूं ।

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बेटे की नौकरी चेन्नाई मे लग गयी। अच्छी पगार थी, सो उसने पांच हजार की एक साडी माँ के लिये ले ली। पर वह माँ का स्वभाव जानता था, सो उसने साडी के साथ एक पत्र भी भेज दिया कि पहली पगार से यह साडी भेज रहा हूं, दिखने में मंहगी है पर सिर्फ़ दो हजार की है, कैसी लगी बतलाना।
अगले हफ़्ते ही माँ का फोन आ गया, बेटा खुश रहो। साडी बहुत ही अच्छी थी। मैने उसे तीन हजार में बेच दिया है, तुरंत वैसी दस साडियां और भिजवा दे, अच्छी मांग है।

4 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

सभी बहुत सुंदर, यह वाला बेटे की नौकरी चेन्नाई तो सच्ची बात हे, होता हे ऎसा

Kulwant Happy ने कहा…

सचमुच शानदार हैं और बेहतरीन चयन के लिए आपका आभारी।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

बहुत सुंदर, मजा आ गया।

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क्‍या आपको मालूम है कि हिन्‍दी के सर्वाधिक चर्चित ब्‍लॉग कौन से हैं?

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

हा हा
बहुत मस्त
मूड फ्रेश हो गया।

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