रविवार, 16 जनवरी 2011

नोबेल पुरस्कार और जवाहरलाल नेहरू

यह तो सभी जानते हैं कि पुर्वाग्रहों के चलते, शांति पुरस्कार के लिए, नोबेल फाउंडेशन ने गांधीजी की अनदेखी की थी। बाद में नोबेल समिति ने अपनी भूल मान भी ली थी। हालांकि सारी कार्यवाही गोपनीय होती है। लेकिन कुछ समय पहले इस समिति ने 1901 से 1956 तक का पूरा ब्योरा सार्वजनिक किया है, जिससे पता चलता है कि इस फाउंडेशन ने भारत के पहले प्रधान मंत्री के नाम को भी गंभीरता से नहीं लिया। वह भी एक-दो बार नहीं, पूरे ग्यारह बार उनके नाम को खारिज किया गया।

1950 में नेहरुजी के नाम से दो प्रस्ताव भेजे गये थे। उन्हें अपनी गुटनिरपेक्ष विदेश नीति और अहिंसा के सिद्धांतो के पालन करने के कारण नामांकित किया गया था। पर उस समय राल्फ बुंचे को फिलीस्तीन में मध्यस्थता करने के उपलक्ष्य में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। 1951 में नेहरूजी को तीन नामांकन हासिल हुए थे। पर उस बार फ्रांसीसी ट्रेड यूनियन नेता लियोन जोहाक्स को चुन लिया गया था। 1953 में भी नेहरुजी का नाम बेल्जियम के सांसदों की ओर से प्रस्तावित किया गया था, लेकिन इस वर्ष यह पुरस्कार, द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिकी सेनाओं का नेतृत्व करनेवाले जार्ज सी। मार्शल के हक में चला गया। 1954 में फिर नेहरुजी को दो नामांकन प्राप्त हुए, पर फिर कहीं ना कहीं तकदीर आड़े आयी और इस बार यह पुरस्कार किसी इंसान को नहीं, बल्कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय के पक्ष में चला गया। अंतिम बार नेहरुजी का नाम 1955 में भी प्रस्तावित किया गया था। परन्तु इस बार यह खिताब किसी को भी ना देकर इसकी राशि पुरस्कार संबंधी विशेष कोष में जमा कर दी गयी थी।

ऐसा तो नहीं था कि गोरे-काले का भेद भाव या फिर एक ऐसे देश, जो वर्षों गोरों का गुलाम रहा हो, का प्रतिनिधित्व करनेवाले इंसान को यह पुरस्कार देना उन्हें नागवार गुजरा हो।

3 टिप्‍पणियां:

G.N.SHAW ने कहा…

samayanusar aap ka sansay wajib lagata hai.yahi parampara aaj bhi chali aa rahi hai hamare desh me ,jaha yogy loko ko puraskar se wanchit kiya jata raha hai....shayad hamane gore longo se sikh le li hai.आप-बीती-०५ .रमता योगी-बहता पानी

राज भाटिय़ा ने कहा…

एक ज़्तरह से अच्छा ही हुया, लेकिन हमे फ़िर भी अकल नही आई, आज भी कटोरा ले कर मांहने चले जाते हे, का्श कोई ऎसा भारतिया जन्मे जिसे यह ईनाम मिलने की घोषाण हो ओर वो इसे ठुकरा दे

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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गगन जी अन्य कारण भी हो सकते हैं पुरूस्कार से दूरी बने रहने के :
— यदि नोबल पुरुस्कार समिति में भी कोई 'मोहन' जैसा मक्खनपसंदी चरित्र होता तो नेहरू जी अवश्य लगा लिये होते.
— दूसरी बात समिति में यदि मिसेज़ माउन्टबेटन की तरह ही कोई महिला चरित्र होता तो नेहरू जी अवश्य रिझा लिये होते.
— तीसरी बात उनके शांतिवादी प्रयास केवल कबूतर उड़ाने तक ही रहे.
— चौथी बात 'गांधी' नाम को अपनी पीढी की पहचान के साथ लगवाकर उन्होंने गांधी नाम के पूरे महात्म्य को अपने साथ करने का घोर स्वार्थपूर्ण काम होने दिया.
— इन्होने केवल गांधी नाम की गंध का परफ्यूम बनाकर चुनावों में सत्ता हासिल करने का काम किया है. ........ क्या इसके लिये उन्हें नोबल पुरुस्कार दिया जाता.
— यदि आज का गांधी परिवार नेहरू जी के दादा जी के नाम को साथ लेकर चल रहा होता तो लोगों को मौर का पंख लगा कौआ पहचान में आ गया होता.
— कृपया इसे अवश्य पढ़ें : http://krishnajnehru.blogspot.com/2005/04/nehru-died-of-tertiary-syphilis-aortic.html

Nehru’s father was Motilal and Motilal’s father’s name was GHIYASUDDIN GHAZI. Ghazi changed name to GANGA DHAR to escape British army. Thus India had a muslim Nehru and he was a great womanizer. He fathered bastards, and one of which grew up in a christian convent in Bangalore, This enabled Christians to blackmail Nehru and convert North East India. This violent conversion was by foreigners and Kerala christians who came as refugees to India in the fourth century.

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