शनिवार, 11 दिसंबर 2010

जिसे भी हम पूजते हैं, उसकी ऐसी की तैसी कर डालते हैं

हम एक धार्मिक देश के वाशिंदे हैं। हम बहुत भीरू हैं। इसी भीरुता के कारण हम अपने बचाव के लिए तरह-तरह के टोने-टोटके करते रहते हैं। हमें जिससे डर लगता है हम उसकी पूजा करना शुरु कर देते हैं। हमने अपनी रक्षा के लिए पत्थर से लेकर वृक्ष, जानवर और काल्पनिक शक्तियों को अपना संबल बना रखा है। पर जैसे-जैसे हमारी सुरक्षात्मक भावना पुख्ता होती जाती है, हम अपने आराध्यों की ऐसी की तैसी करने से बाज नहीं आते।

घर से ही शुरु करें जब तक मतलब निकलना होता है मां-बाप से और ज्यादा प्यारा और कोई नहीं होता पर जैसे ही उन्हीं कि बदौलत अपने पैरों पर खड़े होने की कुव्वत आ जाती है तो उनके लिए वृद्धाश्रम की खोज शुरु हो जाती है।

हमारे यहां यह बात काफी ज्यादा प्रचलित है कि जहां नारी का सम्मान होता है वहां देवता वास करते हैं। देख लीजिए जहां देवता वास करते हैं वहां नारी का क्या हाल है। अरे देवता ही जब उसकी कद्र नहीं कर पाए तो हम तो गल्तियों के पुतले, इंसान हैं। कभी सुना है कि देवताओं ने अपना मतलब सिद्ध हो जाने पर किसी देवी को इंद्र का सिंहासन सौंपा हो?

हम नदियों को देवी या मां का दर्जा देते हैं पर किसी एक भी नदी के पानी को पीने लायक नहीं छोड़ा है। पीते हैं कहीं, तो वह मजबूरी है।

गाय को सदा मां के समकक्ष माना गया है। पर कभी उनके जिस्म को निचोड़ने के अलावा उनकी सेहत का ख्याल रखा है? अपने शहरों में जगह-जगह घूमती कूड़ा खाती मरियल सी गायें शायद ही दुनिया में और कहीं हों।

पानी को ही ले लीजिए, जल देवता कहते-कहते हमारा मुंह नहीं थकता पर आज जैसी इस देवता की दुर्दशा कर दी गयी है लगता है कि इसके भी देवता कूच कर चुके हैं।

पेड़ों की तो बात ही ना की जाए तो बेहतर है। जीवन देने वाली इस प्रकृति की नेमत की कैसी पूजा आज कल हो रही है जग जाहिर है। कभी ध्यान गया है किसी मंदिर में लगे किसी अभागे वृक्ष की तरफ? उसके तने या जड़ के पास अपनी मन्नत पूरी करने के लिए दीया जला-जला कर उसकी लकड़ी को कोयला कर कर हमें लगता है कि वृक्ष महाराज हमारी मनोकामनाएं जरूर पूरी करेंगें। कोई कसर नहीं छोड़ते अपनी आयू बढाने के लिए उसकी जड़ों में अखाद्य पदार्थ ड़ाल-ड़ाल कर उसको असमय मृत्यु की ओर ढकेलने में। यही हाल वायु का है।

यानि कि हमने किसी भी पूज्य की ऐसी की तैसी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

15 टिप्‍पणियां:

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

shi kha jnab meraa desh mhaan he . akahtar khan akela kota rajsthan

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

आप सही कह रहे हैं। असल में हम केवल स्‍वयं के लिए ही जीते है।

सुज्ञ ने कहा…

सच्ची प्रस्तूति

P.N. Subramanian ने कहा…

आपसे पूर्णतः सहमत.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

`हम एक धार्मिक देश के वाशिंदे हैं।'

हम एक धार्मिक देश के वहशी हैं।:(

anshumala ने कहा…

सही बात कही हम "मै" से ऊपर सोच ही नहीं पाते है |

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

सेव व खरबूजा एक नहीं।
कैंची व सूजा एक नहीं॥
ज्ञान से जान सकते दोनों को-
अंधविश्वास व पूजा एक नहीं॥

राज भाटिय़ा ने कहा…

मुझे तो लगता हे हम पुजा करते नही सिर्फ़ दिखावा ही करते हे, अगर पुजा करते तो उस देवता, उस भगवान का कहना भी मानते, बस उसे सुबह शाम जगा कर तंग ना करते.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सही बात ...भाटिया जी से सहमत....

Taarkeshwar Giri ने कहा…

BAhut hi sunder bat kahi hai apne

निर्मला कपिला ने कहा…

बिलकुल आपसे सहमत। विचारणीय पोस्ट। धन्यवाद।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाकई ऐसी की तैसी करते हैं ..विचारणीय पोस्ट

समयचक्र ने कहा…

आपसे सहमत... विचारणीय पोस्ट...

Krishna Baraskar ने कहा…

"Title thodaa aakramak hai bhai sahab baaki aapne satya hi kaha hai...


‘‘रामजी’’ से दूर रहो, लोग सांम्प्रदायिक, समझेंगे?
’’जय रामजी की’’ ना कहा करो-
’’हिन्दू-सम्मेलन में ‘राम‘ को न बुलाओं’’-

बड़े दोमुहे है लोग इस समाज में भी .. ज़रा पढ़े तो सही आपको भी बड़ा मजा आयेगा :svatantravichar.blogspost.com

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

वैसे भी मतलब के ही सब साथी होते हैं

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