शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

शेरा को काम चाहिए

पिछले दस महीनों से कामनवेल्थ खेलों के "मास्कट" शेरा का रूप धरे सतीश बिदला खेलों के समापन के साथ ही बेरोजगार हो गए हैं।
दुबले पतले, शर्मीले स्वभाव वाले बिदला कहते हैं कि शुरू में उन्हें कम्युनिकेशन प्रभाग में काम मिला था। पर बाद में उनके स्वभाव को देख कर उन्हें "शेरा" बनने का मौका प्रदान कर दिया गया। १२वी पास सतीश बताते हैं कि जैसे-जैसे खेलों का समय नजदीक आता गया और शेरा की ख्याति बढ़ती गयी वैसे-वैसे उनके काम करने का समय भी अधाता गया। उनके अनुसार शेरा का सारा 'गेट-अप', जिसका वजन करीब ८ किलो था उस सबेरे९. बजे से शाम ६ बजे तक पहने रहना पड़ता था। उसी को पहने-पहने उन्हें स्कूल, कालेज, बाजार आदि का भ्रमण करना होता था तथा उसी को पहने-पहने विदेशी मेहमानों से भी मिलना होता था। मेरे जीवन के यादगार क्षण वे ठ जब मैं २६ जनवरी की परेड में शेरा बन कर शामिल हुआ था। राष्ट्राध्यक्ष प्रतिभा पाटिल और राहुल गांधी से मुलाक़ात भी नहीं भुला पाऊँगा। शेरा तो मेरा रूप ही हो गया है इसी ने मुझे प्रसिद्धी दिलवाई है। खेलों में भाग लेनेवाले इतने सारे खिलाड़ियों से मिलना, उनका स्नेह पाना सब शेरा की बदौलत ही हो पाया है। यह समय मेरी जिन्दगी का सबसे अहम् हिस्सा है। अब देखें आगे क्या होता है। फिलहाल तो मुझे काम की तलाश है।

ये तो रही शेरा के जीते जागते स्वरूप की बात। जब इन्हीं का यह हाल है तो उन हजारों "माडलों" का क्या हश्र होगा जिन पर लाखों रूपए लगा कर उन्हें जगह-जगह स्थापित किया गया था, सजावट के लिए। वे सारे के सारे अब बेकार की चीज हो गए हैं। उन्हें कहाँ रखा जाए या उनका क्या किया जाए इसे समझ नहीं पा रहे हैं कुर्सियों पर बैठे समझदार लोग। फिलहाल ये सारे "माडल" बेचारे किसी पार्क के कोने में या ऐसी ही किसी निर्जन जगहों पर पड़े धूल खा रहे हैं।

सही भी है न मतलब निकल गया है तो पहचानने की क्या जरूरत है।

5 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

शेरा जी अब अराम करो

P.N. Subramanian ने कहा…

भैय्या खेल तो एक निर्धारित अवधि के लिए ही होगा न

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

यह शेरा तो मुझे भी बहुत पसंद है....

आपका ट्रिप कैसा रहा....

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

शेरा का रोजगार कार्यालय में पंजीयन है कि नहीं?:)

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

अच्छा बताए भैया
शेरा
शेरा सहायता कोष की स्थापना करतें हैं उसे ब्लागर मीट का महा प्रबंधक नियुक्त किये देते है .प्रत्येक हिंदी-ब्लागर समूह (खोमचा) अपने अपने दल के साथ उसकी तनख्वाह का इन्तज़ाम मासिक चंदे से करे तो कैसा रहेगा. अच्छा अप्पू की क्या खबाआअर है. उसे जाब मिली के नईं
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