गुरुवार, 30 सितंबर 2010

जब ध्येय एक ही है तो फिर विवाद क्यों ?

विड़ंबना है या देश का दुर्भाग्य। ध्येय एक ही होने के बावजूद दसियों सालों से अयोध्या का विवाद क्यों है? जबकि हर पक्ष वहां पूजा, अर्चना ही करना चाहता है।
जिसकी पूजा करनी होती है वह श्रद्धेय होता है। उसके सामने झुकना पड़ता है। अपना बर्चस्व भूलाना पड़ता है।यहां लड़ाई है मालिक बनने की। अपने अहम की तुष्टी की। वही अहम जिसने विश्वविजयी, महा प्रतापी, ज्ञानवान, देवताओं के दर्प को भी चूर-चूर करने वाले रावण को भी नहीं छोड़ा था।
या फिर नजरों के सामने हैं - तिरुपति, वैष्णव देवी या शिरड़ीं ?

7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

विड़ंबना ही है...

विवेक सिंह ने कहा…

यई तो.... !

Unknown ने कहा…

सही चिन्तन !

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

समयचक्र ने कहा…

बहुत उम्दा विचार ...आभार
आज ब्लॉग "समयचक्र" हैकर का शिकार हो गया था ....हैकर से बचे अपने पास वार्ड बदल लें ....

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif ने कहा…

हालत बहुत ज़्यादा ही खराब है...

============="हमारा हिन्दुस्तान"

"इस्लाम और कुरआन"

Simply Codes

Attitude | A Way To Success

संगीता पुरी ने कहा…

सही है ..

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