शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

वृक्ष अकडा था या अन्याय के सामने तना था ?

वर्षों से एक कहानी पढाई/सुनाई जाती है कि एक घना वृक्ष था। विशाल, मजबूत, जिसकी छाया में इंसान हो या पशु सभी गर्मी से राहत पाते थे। उसकी ड़ालियों पर हजारों पक्षियों का बसेरा था। उस पर लगने वाले फल बिना भेदभाव के सब की क्षुधा शांत करते थे।

पर समय का फेर। एक बार भयंकर तूफान आया। ऐसा लगता था कि सारी कायनात ही खत्म हो कर रह जाएगी। लागातार पानी बरसता रहा। हवाओं ने जैसे सब कुछ उड़ा ले जाने की ठान रखी थी। प्रकृति के इस प्रकोप को वह वृक्ष भी सह नहीं पाया और जड़ से उखड़ गया।

दूसरे दिन उधर से एक ज्ञानी पुरुष अपने शिष्यों के साथ निकले। वृक्ष का हश्र देख उन्होंने अपने शिष्यों को उसे दिखा कर कहा कि देखो अहंकारी का अंत ऐसा ही होता है। घमंड़ के कारण यह विनाशकारी तूफान के सामने भी अकड़ा खड़ा रहा और मृत्यु को प्राप्त हुआ। उधर वह कोमल घास विपत्ति के समय झुक गयी और अब लहलहा रही है। इसे कहते हैं बुद्धिमत्ता।

बहुत बार मन में आया कि उस ज्ञानी पुरुष ने अपने शिष्यों को जो सबक सिखाया क्या वह सही था। वह यह भी तो बता सकते थे कि इसे कहते हैं वीरता, बहादुरी, अन्यायी के सामने ना झुकने का संकल्प। देखो और सीखो इस वृक्ष से। जिसने मरना मंजूर किया पर अन्याय के सामने झुका नहीं। वहीं यह मौकापरस्त घास है, जो लहलहा तो रही है पर हर कोई उसे रौंदता चला जाता है।

6 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जो हैं कोमल-सरल उनको मेरा नमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।

पेड़ अभिमान में थे अकड़ कर खड़े,
एक झोंके में वो धम्म से गिर पड़े,
लोच वालो का होता नही है दमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।

anshumala ने कहा…

किसी कहानी से हम क्या सीख लेते है ये तो हमारे सोचने के तरीके हमारी भावनाओ पर निर्भर है |

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

हम लोगों को पहले वाली शिक्षा दी गई, जबकि आज के हालातों को देखते हुये दूसरी शिक्षा की आवश्यकता है...

राज भाटिय़ा ने कहा…

शर्मा जी आप ने बहुत सुंदर विशलेषण किया आप की बात भी सही है कि पेड ने अन्याय के सामने झुकना स्वीकार नही किया जब की शान से मर गया, बहुत खुब ,यह कहानियां भी समय समय पर अपने अर्थ बदल लेती है, आप का धन्यवाद

Unknown ने कहा…

कमाल की बात कह दी प्रभु !

धन्य हो.............

धन्यवाद !

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

यह कहानी जब भी मैं पढ़ती थी, तभी मुझे इसकी व्‍याख्‍या समझ नहीं आती थी। आज भी नहीं। एक तरफ हम कहते हैं कि पेड़ पर इतने पक्षी बसेरा करते थे तो कहाँ घमण्‍डी हो गया पेड? और पेड़ तो सीधा कहाँ रहता है? वह तो चारों दिशाओं में अपना संसार बसाता है। यह कहा जा सकता है कि प्रकृति के विकराल रूप के समझ कभी ऐसे वृक्ष भी नेस्‍नाबूत हो जाते हैं तो स्‍वयं को कभी बड़ा मानकर अहंकार मत करो।

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