सोमवार, 12 जुलाई 2010

मौका देख चौका मारने की फिराक में मौकापरस्तों के तुक्के

दुनिया में ऐसा वैसा कुछ हो जाता है तो ये चैनल वाले भी एक-दो दिन राहत की सांस ले पाते हैं। बैठा लेते हैं चार जनों को टाइम पास करने के लिए, हालांकि मेहमानों से ज्यादा खुद पर कैमरे का फोकस कर कुछ भी अनाप-सनाप बोलते रहते हैं, आने वाला तो मुंह बाए इनका थोबड़ा ही देखता रहता है। कहीं गलती से कुछ बोलने का मौका मिलता भी है तो बहुत छोटा सा लंबा "ब्रेक" आ जाता है

2010 फुटबाल का विश्व कप तो अपनी जगह था ही पर एक और खबर ने दुनिया को चौंका दिया, वह थी एक ऑक्टोपस की खेल के बारे में भविष्यवाणी ! उसकी दोष रहित सटीक भविष्यवाणियों से जब संसार भर में उसकी तूती बोलने लगी तो इस पेशे से जुड़े बाकी मौकापरस्त लोगों को भी होश आया। हालांकि तब तक काम
बहुत आसान हो चुका था। दो ही टीमें मैदान में रह गयीं थीं। फिर भी मौका हाथ से ना जाने देने के लिए एक तरफ सिंगापुर का तोता दाने की लालच में नीदरलैंड़ के झंडे वाला कार्ड़ उठाने लगा तो सुदूर आस्ट्रेलिया में पानी में पड़े मगरमच्छ को स्पेन की बीन सुहानी लगने लगी। इन सब का नाम रोज अखबारों में छपता देख अपने देश के भोपाली नंदी बैल को भी होश आया उसने सोचा कि इस तरह के तुक्के लगाने में तो हम मशहूर हैं ये विदेशी कहां फुटबाल पर लात मारने कि बजाय हमारे पेट को लतियाने लगे। बस उसे भी जोश आ गया। हर बात का जायजा लिया तो रिस्क नहीं के बराबर और फायदे की असीम संभावनाएं देख वो भी अपनी थूथन उठाए पोज देने लगा।

सही मौका था। दो ही टीमें थीं। एक को ही जीतना था। एक भी मैच ना हार कर होड़ में सबसे आगे "पाल बाबा" थे, अपनी पसंद की टीम स्पेन के साथ। इधर नंदी स्वामी ने सोचा कि विपक्षी टीम का पक्ष ले लेते हैं, खुदा-न खास्ता जीत गयी तो दुनिया भर में नाम हो जाएगा और नहीं जीती तो भी अपनी दुकान तो चल ही रही है। भोलेनाथ की कृपा हो गयी तो सारी दुनिया में बल्ले-बल्ले हो जाएगी।

ऐसा ही कुछ खेल एक चैनल ने अपने दफ्तर में भी आयोजित कर ड़ाला। अब क्या करें 24 घंटे क्या परोसें, सुरसा के मुंह रूपी टीवी के पर्दे पर। दुनिया में ऐसा वैसा कुछ हो जाता है तो ये चैनल वाले भी एक-दो दिन राहत की सांस ले पाते हैं। बैठा लेते हैं चार जनों को टाइम पास करने के लिए, हालांकि मेहमानों से ज्यादा खुद पर कैमरे का फोकस कर कुछ भी अनाप-सनाप बोलते रहते हैं, आने वाला तो मुंह बाए इनका थोबड़ा ही देखता रहता है। कहीं गलती से कुछ बोलने का मौका मिलता भी है तो बहुत छोटा सा लंबा "ब्रेक" आ जाता है। खैर मैच के पहले चार ज्योतिषविदों को बुलाया गया था। इधर-उधर की बातें कर उनका पानी उतारने के बाद उनसे भावी विजेता का नाम बताने को कहा गया। तीन ने स्पेन का नाम लिया तो एक महाशय नीदरलैंड़ के पक्ष में हो लिए, ठीक नंदी बाबा के तौर पर।

अब जो होना था वही हुआ। खेल खत्म पैसा हजम। सब अपनी-अपनी राह लग गये अपने अपने मतलबों को पूरा करते हुए। पर एक बात समझ में नहीं आती कि चैनलों पर आ कर जब हर बार फजीहत होती है तो फिर क्यों बार-बार इसका रुख कर लेते हैं लोग ? शायद जेब में रोकड़ा और पर्दे पर थोबड़ा आ जाता है, इसलिए !!!

4 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

लग गया तो तीर नहीं तुक्का तो है ही।
स्पेन जीत गया तो जोषी हो गया और
हार जाता तो समुद्री प्राणी था कहते आदमी
के इतनी समझ नहीं होती इसमें।

सब सटोरियों की चाल बाजी थी।
अरबों खरबों रुपयों का खेल चल रहा था।
पाल बाबा की आड़ में।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जय हो ऑक्टोपस की!

राज भाटिय़ा ने कहा…

खाली बेठे अब क्या करे यह लोग अगर असली खबर देते है तो नेता नही छोडते,इस लिये मेरे जेसे निठल्लो को बुला लिया...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

चल गई जी चवन्नी ताऊओं की.:)

रामराम.

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